यूपी के जंगलराज से भयमुक्त होने के लिए वरिष्ठ पत्रकार ने अपनाया था यह नायाब तरीका

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Shambhunath Shukla : तीव्र शहरीकरण किसी इलाके को हुआ है तो वह शायद एनसीआर का इलाका ही होगा। देखते ही देखते दिल्ली के करीब बसे नोएडा व गाजियाबाद में इस तेजी से बहुमंजिली इमारतें खड़ी हुई हैं कि यह पूरा इलाका कंक्रीट के जंगल में ही बदल गया है। इसमें भी गाजियाबाद जिले का इंद्रा पुरम इलाका तो अव्वल है। अभी ज्यादा दिन नहीं बीते जब यहां से गुजरने मेें दिन को भी डर लगता था। मैने यहां पर अपना 200 मीटर का एक भूखंड इसलिए गाजियाबाद विकास प्राधिकरण को वापस कर दिया था क्योंकि 1993 में उन्होंने इस भूखंड के लिए 264000 रुपये मांगे थे जो कि मेरे लिए बहुत ज्यादा रकम थी और मैने वह आवंटित भूखंड सरेंडर कर दिया।

साल 2008 में जब मैं नोएडा अमर उजाला के दिल्ली-एनसीआर-हरियाणा संस्करण का कार्यकारी संपादक था तब अक्सर नोएडा के अपने दफ्तर से लौटते हुए देर हो जाया करती और ड्राइवर अपने घर चला जाता तब मुझे अपनी एवियो कार स्वयं ड्राइव करते हुए वसुंधरा आना पड़ता। सीआईएसएफ वाली रोड से मैं कनावनी पुलिया आता और वहां से लेफ्ट टर्न लेकर जनसत्ता अपार्टमेंट। उस समय सीआईएसएफ रोड पर रोज राहजनी अथवा कार लूट हुआ करती थी। मुझे भी कभी-कभी सन्नाटे में डर लगता और एक दिन मैने अपने एक गूजर मित्र से अपनी व्यथा कही। उसने कहा कि सर जी आप चाहो तो रिवाल्वर का लायसेंस ले लो पर क्या फायदा आप चलाओगे हो नहीं उलटे उसकी सुरक्षा करने में जान जा सकती है। आपकी सुरक्षा का उपाय मैं ढूंढ़ता हूं।

एक दिन वह आया अपने साथ मास्टर ब्रह्मपाल नागर की रागिनी का कैसेट लेकर। और मेरी गाड़ी के स्टीरियो में उसे फुल आवाज में बजाया तथा कहा कि सर जी अब आप को कोई खतरा नहीं है। आप दो काम करो एक तो रात को लौटते वक्त कार का एसी मत ऑन करना और दरवाजों की खिड़कियों के सारे शीशे खोलकर रखना। तथा फुल आवाज में यह कैसेट बजाते हुए चले जाना। किसी की हिम्मत नहीं है कि आपकी कार को रोक ले या ओवरटेक कर ले। उसकी उक्ति कारगर रही और मैं बड़े मजे से कभी रात 11 बजे तो कभी 12 बजे आता रहा मगर किसी ने गाड़ी नहीं रोकी। एक रागिनी ने मेरे अंदर आत्मविश्वास भर दिया। जब मैने ब्रह्मपाल को यह बात बताई तो उन्होंने मुझे अपनी रागिनी के कई कैसेट भेंट कर दिए। अब तो उन्हें नहीं सुन पाता मगर मास्टर ब्रह्मपाल नागर की रागिनी एक जमाने में पूरे एनसीआर में धाक तो भरती ही थी।

वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ला के फेसबुक वॉल से.



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