Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

जब भैरोंसिंह शेखावत ने पत्रकार जयशंकर गुप्ता से पूछा था- ‘मैं स्वयं भी तो संघ का ही स्वयंसेवक हूं, आप लोग हममें भेद कैसे कर सकते हैं’

Jaishankar Gupta : बात पुरानी है, तब की जब हम इंडिया टुडे के साथ थे और पूर्व उप राष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत राजस्थान के मुख्यमंत्री। हमारा राजस्थान में आना जाना और ठाकर साहब (भैरोंसिंह शेखावत) से मिलना जुलना लगा रहता था। उस समय भाजपा में एक लाबी खासतौर से संघ से जुडे कुछ नेताओं की मंडली लगातार उनके विरुद्ध सक्रिय रहती थी। एक दिन भोजन पर हम ठाकर साहब के साथ थे। बात बात में उन्होंने पूछ लिया ”आप लोग अक्सर लिखते रहते हैं मेरे विरुद्ध संघ की लॉबी सक्रिय है। मैं स्वयं भी तो संघ का ही स्वयंसेवक हूं। आप लोग हममें भेद कैसे कर सकते हैं।”

<p>Jaishankar Gupta : बात पुरानी है, तब की जब हम इंडिया टुडे के साथ थे और पूर्व उप राष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत राजस्थान के मुख्यमंत्री। हमारा राजस्थान में आना जाना और ठाकर साहब (भैरोंसिंह शेखावत) से मिलना जुलना लगा रहता था। उस समय भाजपा में एक लाबी खासतौर से संघ से जुडे कुछ नेताओं की मंडली लगातार उनके विरुद्ध सक्रिय रहती थी। एक दिन भोजन पर हम ठाकर साहब के साथ थे। बात बात में उन्होंने पूछ लिया ''आप लोग अक्सर लिखते रहते हैं मेरे विरुद्ध संघ की लॉबी सक्रिय है। मैं स्वयं भी तो संघ का ही स्वयंसेवक हूं। आप लोग हममें भेद कैसे कर सकते हैं।"</p>

Jaishankar Gupta : बात पुरानी है, तब की जब हम इंडिया टुडे के साथ थे और पूर्व उप राष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत राजस्थान के मुख्यमंत्री। हमारा राजस्थान में आना जाना और ठाकर साहब (भैरोंसिंह शेखावत) से मिलना जुलना लगा रहता था। उस समय भाजपा में एक लाबी खासतौर से संघ से जुडे कुछ नेताओं की मंडली लगातार उनके विरुद्ध सक्रिय रहती थी। एक दिन भोजन पर हम ठाकर साहब के साथ थे। बात बात में उन्होंने पूछ लिया ”आप लोग अक्सर लिखते रहते हैं मेरे विरुद्ध संघ की लॉबी सक्रिय है। मैं स्वयं भी तो संघ का ही स्वयंसेवक हूं। आप लोग हममें भेद कैसे कर सकते हैं।”

सवाल गूढ था मगर मैंने कुछ ज्यादा सोचे बगैर कहा कि बात पब्लिक परसेप्शन यानी जन छवि की है। अटल जी और आडवाणी जी, दोनों संघ की वैचारिक पाठशाला से ही निकले हैं लेकिन अगर कहीं सांप्रदायिक दंगा हो जाए और अटल जी वहां गए हों, भले ही वहां उनकी भूमिका चाहे जो भी रही, लोग यही कहेंगे कि अटल जी वहां आग बुझाने गए होंगे। उन्होंने किसी को मारा नहीं, बचाया होगा लेकिन यही बात आडवाणी जी के बारे में नहीं कही जा सकती। ठीक इसी तरह की छवि का भेद जनता के बीच आपकी और पार्टी में आपके विरोधियों-ललित चतुर्वेदी, हरिशंकर भाभडा और घनश्याम तिवाडी के बीच बन गया है। अगर आप दंगा ग्रस्त इलाकों में किसी को मारकर भी आ रहे होंगे तो कोई मानेगा नहीं, मुसलमान भी कहेंगे कि आप ने वहां लोगों की जानें बचाई होंगी। लेकिन इसके उलट अगर चतुर्वेदी, भाभडा और तिवाडी जी ने वहां किसी को बचाया भी होगा तो लोग मानेंगे नहीं और कहेंगे कि जरूर इन लोगों ने सांप्रदायिक दंगे की आग में घी डाला होगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

यह सुनकर शेखावत जी ने कहा था, अच्छा तो आप लोग ऐसा सोचते होंगे! फिर जोर का ठहाका लगा था। शेखावत जी वाकई राजनेता (स्टेट्समैन) थे। अटल जी के वह सच्चे उत्तराधिकारी होते लेकिन न जाने क्या सोचकर और किस योजना के तहत उन्हें मुख्यधारा की राजनीति से अलग कर उपराष्ट्रपति भवन में बिठा दिया गया। एक बात और। आज शेखावत जी के जन्म दिन पर पर उनकी उस छवि और उनसे जुडी स्मृतियों को प्रणाम करने के साथ ही बडी ईमानदारी से कहना चाहूंगा कि कट्टर छवि के जिन नेताओं का जिक्र हमने ऊपर किया, अगर आज उनकी तुलना संघ अथवा उसकी पाठशाला से निकले मौजूदा प्रभावशाली नेताओं से करनी हो तो आडवाणी, चतुर्वेदी, भाभडा और तिवाडी जी भी इनके मुकाबले सहिष्णु और नरमपंथी लगेंगे।

वरिष्ठ पत्रकार जयशंकर गुप्ता के फेसबुक वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement