विजय शंकर सिंह-
श्रीलंका… वे झोला उठाकर चलते बने…
श्रीलंकाई प्रधानमंत्री महिंद्रा राजपक्षे ने प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफ़ा दे दिया है। श्रीलंका में जनता सड़को पर है और देश, आर्थिक आपातकाल में। राष्ट्रवाद और बिना सोचे विचारे लागू की गई आर्थिक नीतियां, अंततः देश को बरबादी की ओर ही ले जाती हैं।
श्रीलंका द्वारा तमिल अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ चलाए गए बर्बर सैन्य अभियान के समय हथियार ख़रीदने के लिए लिये गये अंतरराष्ट्रीय क़र्ज़ों ने देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया।
शीतल पी सिंह-
तबाही सँभाल पाने में बुरी तरह से फेल होने वाले श्रीलंकाई प्रधानमंत्री महिंद्रा राजपक्षे ने प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफ़ा दे दिया है ।
श्रीलंका में जनता सड़क पर है और बार बार आर्थिक आपातकाल लगाना पड़ रहा है ।
राजनीति में राष्ट्रवाद और ऊटपटाँग आर्थिक नीतियों के प्रयोग ने श्रीलंका को इस हालात में पहुँचा दिया था । तमिल अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ चलाए गए बर्बर सैन्य अभियान के समय हथियार ख़रीदने के लिए लिये गये अंतरराष्ट्रीय क़र्ज़ों ने देश की अर्थव्यवस्था को बीमार कर दिया था ।
अपने देश का भी हाल कहाँ सही है। आज का ही लीजिए। डालर के सामने रुपये ने दुम दबाने का विश्व रिकॉर्ड बनाया, आज़ादी के बाद अब तक रुपये की औक़ात इतने नीचे कभी नहीं गई थी
आज एक डालर = 77.48 रुपए
2014 में एक डालर=62.33 रुपए
अश्विनी कुमार श्रीवास्तव-
राजा- महाराजाओं के दौर में जब भी कोई राजा भारी भरकम और अनाप शनाप टैक्स लगाने लगता था तो जनता समझ जाती थी कि राज्य की आर्थिक हालत खराब हो चुकी है … और राजा किसी भी तरह से अपने खजाने को दोबारा भरने के लिए जनता से अनाप- शनाप तरीके अपनाकर ज्यादा से ज्यादा टैक्स वसूली में लगा हुआ है।
भारत में ऐसे कई राजा हुए, जिनकी ऐसी ही जबरन टैक्स वसूली के किस्से इतिहास में भरे पड़े हैं। जाहिर है, उनमें से शायद ही कोई ऐसा हो, जिसकी छवि अच्छे और सफल राजा के रूप में इतिहास में दर्शाई गई हो। अतिशय और अनाप – शनाप टैक्स वसूली करने वाले राजा इतिहास में खलनायक ही समझे जाते हैं।
बहरहाल, हम जिस समय को आज जी रहे हैं, यह भी भविष्य में इतिहास का ही हिस्सा बनने वाला है। भारत की मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार इस वक्त टैक्स वसूली बढ़ाने के लिए तरह तरह के उपाय करने में लगी है। जबकि जनता पहले से ही परोक्ष – अपरोक्ष रूप से लगभग हर चीज या क्रियाकलाप पर टैक्स भर रही है। सभी तरह के परोक्ष- अपरोक्ष टैक्स अगर मिला लिए जाएं तो शायद अपनी कमाई का ज्यादातर हिस्सा जनता सरकार को ही बतौर टैक्स लौटा दे रही है।
लेकिन इनकम टैक्स देने वाले या अन्य परोक्ष टैक्स देने वाले लोगों की कम संख्या देखकर सरकार और उसके समर्थकों को लग रहा है कि टैक्स वसूली तो अभी न के बराबर है। लिहाजा एक के बाद एक उपाय इस्तेमाल करके सरकार जनता से टैक्स के नाम पर और निचोड़ने में लगी हुई है।
सरकार की टैक्स वसूली के जुनून की हालत फिलहाल यह हो चुकी है कि जहां कहीं किसी भी सेक्टर में उसे बढ़िया मुनाफा या कमाई नजर आ रही है, वह वहां से ही मुर्गी का पेट फाड़कर सारे अंडे लेने की कोशिश में इतना ज्यादा टैक्स लगा दे रही है कि वह सेक्टर ही ध्वस्त हो जा रहा है।
मसलन, Crypto क्षेत्र पर अभी एक खबर देखी, जिसके मुताबिक सरकार यहां के 30 परसेंट टैक्स से बचने के लिए कुछ समय तक दुबई आदि देशों में रहकर या यहीं से इंटरनैशल एक्सचेंज आदि से crypto trading कर रहे लोगों पर इंटरनेशनल ट्रांसाक्शन टैक्स के नाम से 25 प्रतिशत तक टीडीएस लेने की तैयारी कर रही है। बाकी के टैक्स जैसे कि प्रॉफिट का 30 परसेंट और अन्य पेनाल्टी वसूली तो बदस्तूर जारी ही रहेगी।
खबर में crypto के एक youtuber ने यह कहा भी था कि इस तरह की टैक्स वसूली का सिस्टम बनाकर तो हमारे कमाए गए 100 रुपए पर 70-80 रुपए तो सरकार ही ले लेगी।
बहरहाल, सरकार आज 70-80 या पूरा सौ भी टैक्स के नाम पर जनता से वसूल लेगी तो भी धर्म और राष्ट्र के मुद्दों की भावनाओं के ज्वार में कहीं से कोई आवाज उठने नहीं वाली। वैसे भी , अब जनता को ऐसी घनघोर टैक्स वसूली की आदत पड़ ही चुकी है।
2014 से पहले सरकार दोषी थी। अब विपक्ष दोषी है। देखिए नीचे की पुरानी खबर में जब रुपए के गिरने पर मोदी जी नाराज होते थे सरकार पर….
ये है पुरानी खबर… जब मनमोहन पीएम थे और मोदी विपक्ष के नेता…
रुपए और सरकार में गिरने का कांपटीशन: मोदी
मोदी ने कहा कि सरकार और रुपये में गिरने का कंपटीशन चल रहा है। मोदी ने कहा कि डॉलर के मुकाबले रुपये की सेहत तेजी से गिर रही है और कोई दिशा तय करने वाला नहीं है। रुपये का स्तर एक बार 60 तक पहुंच गया और सरकार कोई कदम नहीं उठा रही है। मोदी ने कहा कि जब भारत आजाद हुआ था, तब भी मुल्क की स्थिति आर्थिक रूप से सुदृढ़ थी। लेकिन अब तो ऐसा लगता है कि देश महज एक बाजार बन कर रह गया है।
निर्यात के मुकाबले आयात बढ़ता ही जा रहा है। सरकार की नीतियों की वजह से असंतुलन पैदा हो गया है। इस वजह से व्यापार घाटा बढता ही जा रहा है। मोदी ने कहा कि कई लोग हो-हल्ला मचाते हैं कि देश में एफडीआई नहीं आ रहा है। दरअसल सरकार को यह तय करना होगा कि एफडीआई को लेकर कैसी नीति बने जो सभी के लिए लाभप्रद है।
कोई भी निवेशक तभी पूंजी निवेश करता है जब उसे मुनाफे की उम्मीद हो। यदि उसे नुकसान का डर होगा तो वह कतई निवेश नहीं करेगा। मोदी ने कहा कि हर राष्ट्र अपने अच्छे और बुरे दौर से गुजरता है। हम भले ही ऊंचाई पर हों, मगर हमारे देश का नेतृत्व आम आदमी का विश्वास खो चुका है।
प्रधानमंत्री के बयान ‘पैसे पेड़ पर नहीं उगते’ की खिंचाई करते हुए मोदी ने कहा, ‘हम गुजरातियों का मानना है कि पैसे खेतों और कारखानों में पैदा होते हैं, जहां मजदूरों का पसीना बहता है। देश का किसान खेतों में और मजदूर कारखानों में पैसे उगाता है।’
डॉलर के मुकाबले रुपये के गिरते स्तर पर मोदी ने चुटकी ली कि वह हैरान हैं कि यूपीए और रुपये में नीचे गिरने की होड़ लगी है। उन्होंने कहा कि जब देश आजाद हुआ था, तब एक डॉलर की कीमत एक रुपये के बराबर थी।
जब अटलजी की सरकार थी, तब यह 42 रुपये पर जा पहुंची और यूपीए सरकार में इसकी कीमत साठ रुपये तक आ गई।
एशिया की तीसरी अर्थव्यवस्था भारत में एफडीआई के आगमन में कमी के बारे में बोलते हुए मोदी ने कहा कि निवेशकों को भारत पर भरोसा नहीं रहा।