पंकज चतुर्वेदी-
काफ़्का ने एक बार गुस्ताव जैनुक को एक चीनी कहानी सुनाई :
“दिल दो शयनकक्ष वाला घर होता है। सुख को ज़ोर से नहीं हँसना चाहिए। उससे दूसरे कमरे में सोया हुआ दुख जाग जाएगा।”
“और सुख? क्या वह दुख के शोर से नहीं जागेगा?”
“नहीं, सुख बहरा होता है। इसलिए बग़ल के कमरे में दुख की आवाज़ नहीं सुन सकता।”
{‘काफ़्का के संस्मरण’ से}
[अनुवाद : वल्लभ सिद्धार्थ]