
Soumitra Roy : पत्रकारिता के लिए इससे बड़ा काला अध्याय और क्या होगा? इसे पत्रकार को खरीदना कहते हैं। जब सरकार खुद विज्ञापन निकालकर कलम की सौदेबाज़ी करे तो समझ लें कि लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ अब सिर्फ जुमला है, असल में यह ढह चुका है। बेहतर होगा कि अखबार खरीदना बंद करें, न्यूज़ चैनल का बहिष्कार करें।
वैसे ये पहली बार भी नहीं हुआ है। लेकिन ऐसे प्रलोभनों से ही कलम की धार कमज़ोर होती है। कल को शायद घाटे में डूब रहे मीडिया संस्थान भी इसे बढ़ावा दें, ताकि उनके वेतन का पैसा बच जाए। दुर्भाग्य से पीसीआई इस मामले में भी खामोश ही रहेगी।
कई अखबारों में काम कर चुके पत्रकार, फोटोग्राफर, ट्रेवलर और ब्लागर सौमित्र रॉय की एफबी वॉल से.
इसी मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार का विश्लेषण पढ़ें-
मुख्यधारा का मीडिया भारत के लोकतंत्र की हत्या कर चुका है : रवीश कुमार
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