Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

तथ्य बताने, याद दिलाने की बजाय प्रचार वाली ‘खबरों’ को प्राथमिकता देते अखबार

संजय कुमार सिंह

आज सभी अखबारों की लीड अलग है। ऐसे मौकों पर पता चलता है कि कौन सा अखबार किस मुद्दे को सबसे ज्यादा महत्व देता है। यह उसी दिन संभव है जिस दिन आम राय से लीड बनाने लायक कोई खबर नहीं हो। आज लीड की चर्चा के बाद बसपा सांसद को पार्टी से निकालने और उससे संबंधित खबरों की चर्चा करूंगा। दानिश अली को बसपा से निलंबित किया जाना राजनीतिक नजरिये से न सिर्फ दिलचस्प बल्कि बेहद महत्वपूर्ण है। सबको पता है। पर आज की खबरें देखिये। मुझे लगता है कि आज जब दूसरी बड़ी खबर नहीं थी तो पुराने मामले याद दिलाते हुए इसे लीड भी बनाया जा सकता था। मेरे पांच अखबारों में ऐसा नहीं है। मैंने यहां कुछ पुराने मामले याद दिलाने की कोशिश की है। कुछ नया या अनूठा नहीं है और विकीपीडिया पर उपलब्ध है। मैंने सिर्फ हिन्दी में पेश कर दिया है।

1. इंडियन एक्सप्रेस

Advertisement. Scroll to continue reading.

जलवायु परिवर्तन को अपनाने के लिए भारत मौजूदा समय में जीडीपी का 5.6 प्रतिशत खर्च कर रहा है। वित्त वर्ष 2016 में यह जीडीपी का 3.7 प्रतिशत था। अखबार ने उपशीर्षक से बताया है कि 2019 में उत्सर्जन 3.13 बिलियन टन कार्बन डायऑक्साइड के समतुल्य था। यह अमेरिका का आधा और चीन का एक चौथाई है। केंद्रीय पर्यारण मंत्री भूपेन्दर यादव ने दुबई में चल रहे कॉप28 में यह बात कही। इंडियन एक्सप्रेस ने इस खबर को अपने रिपोर्टर की बाईलाइन और फोटो के साथ छापा है। संभावना है कि उसने अपने रिपोर्टर को कर करने भेजा होगा या वे केंद्रीय मंत्री के साथ सरकारी खर्चे पर गये होंगे।

एक समय यह रिवाज था कि रिपोर्टर की यात्रा प्रायोजित हो तो उसकी सूचना दी जाये। नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अपने साथ रिपोर्टर को ले जाना बंद कर दिया। भक्तों ने प्रचारित किया कि कांग्रेस की सरकार में पत्रकारों को सरकारी खर्च पर विदेश ले जाया जाता था। मोदी जी को अपने प्रचार के लिए इसकी जरूरत नहीं है। बाद में खबरें छपीं कि मोदी जी के साथ कारोबारी-उद्यमी विदेश यात्रा पर जाते थे। राहुल गांधी ने सीधा सवाल पूछा कि फलां कारोबारी आपके साथ कितनी बार विदेश यात्रा पर गये तो उसका जवाब नहीं आया। इससे आप समझ सकते हैं कि वास्तविकता कुछ होती है प्रचारित कुछ और किया जाता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

2. टाइम्स ऑफ इंडिया

आईएस (इस्लामिक स्टेट) से जुड़े 15 लोग पकड़े, इनमें  मुंबई ट्रेन विस्फोट का आरोपी भी। खबर के अनुसार एनआईए के छापे 44 स्थानों पर मारे गये जो महाराष्ट्र और कर्नाटक में हैं। इसमें हमास के झंडे, हथियार और नकदी बरामद हुई है। दुबई की बैठक से संबंधित खबर यहां सिंगल कॉलम में है और इस खबर के साथ बताया गया है कि विस्तार पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने के पीछे है। यह खबर ओपेक सेक्रेट्री जनरल की लीक चिट्ठी पर आधारित है जिसमें 13 सदस्य देशों से कहा गया है कि उत्सर्जन की बजाय ऊर्जा या फॉस्सिल फुएल को लक्ष्य करने वाले किसी भी फॉर्मूला को ब्लॉक कर दिया जाये। कहने की जरूरत नहीं है कि इससे वहां लोगों को आश्चर्य हुआ है। और यह भी बड़ी खबर या खबर का हिस्सा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

3. द हिन्दू

इसकी लीड खबर है, राम मंदिर के आस-पास की संपत्ति की कीमतों में भारी तेजी आ गई है। अगर मेरी याद्दाश्त सही है तो ऐसी खबरें पहले भी आई हैं और जमीन खरीद-बेचकर पैसे कमाने के उदाहरण सार्वजनिक हैं। इन मामलों में किसी कार्रवाई की खबर तो मैंने नहीं पढ़ी लेकिन इस मामले को उठाने वाले पत्रकार के खिलाफ एफआईआर की खबर मैंने जरूर पढ़ी थी। धंधा, सौदा और कमाई करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की खबर तो नहीं थी लेकिन पत्रकार के खिलाफ भी कार्रवाई नहीं की। कहने की जरूरत नहीं है कि इस तरह मामले को ठंडे बस्ते में पहुंचा दिया गया था। अब फिर यह मामला सामने आया है तो उद्घाटन के शोर में दब जायेगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

4. हिन्दुस्तान टाइम्स

देश मोदी की गारंटी का स्वागत करता है :विकसित भारत पर प्रधानमंत्री। इसके साथ की तस्वीर का कैप्शन है, शनिवार को संकल्प यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों से बात की। श्रिया गांगुली की बाईलाइन वाली यह खबर इस प्रकार है – प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को सामाजिक-आर्थिक समूहों पर अपने प्रशासन की पहल के प्रभाव को रेखांकित करते हुए कहा, विधानसभा चुनावों के हालिया दौर में भारतीय जनता पार्टी के मजबूत प्रदर्शन से साबित होता है कि लोग अपने वादों को पूरा करने के लिए सरकार पर भरोसा करते हैं और केंद्र व कल्याण कार्यक्रमों के लाभार्थियों के बीच की खाई पाट दी गई है। विकसित भारत संकल्प यात्रा के दौरान एक ऑनलाइन संबोधन में  प्रधानमंत्री ने कहा, “देश भर में लोगों ने ‘मोदी की गारंटी वाली गाड़ी’ का बड़े उत्साह के साथ स्वागत किया है।” उन्होंने कहा, ”इन चुनाव नतीजों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि मोदी की गारंटी वैध है।” कहने की जरूरत नहीं है कि विधान सभा चुनाव जीतने के बाद लोकसभा चुनाव जीतने का हैटट्रिक बनाने के उनके प्रचार के क्रम में यह प्रयास अपनी पीठ खुद थपथपाने जैसा है। खासकर तब जब ईवीएम की गड़बड़ी से संबंधित कई खबरें हैं। उनका कोई स्पष्टीकरण नहीं है।  

Advertisement. Scroll to continue reading.

5. द टेलीग्राफ

370 पर फैसले के पहले घाटी में डर का माहौल। नेताओं ने बंदी, सख्ती से संबंधित अपनी चिन्ता जताई। अनुच्छेद 370 हटाने से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट का बहुप्रतीक्षित फैसला कल आना है। खबर के अनुसार महबूबा मुफ्ती ने अफसोस जताया है कि शीर्ष अदालत ने फैसला देने में चार साल से ज्यादा लगा दिया। उन्होंने कहा है और अखबार ने लिखा है, यह इस तथ्य के बावजूद है कि पहले के फैसलों के अनुसार जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा की सहमति के बिना इसे नहीं बदला जा सकता है। स्वतंत्रता के तुरंत बाद संविधान सभा ने जम्मू और कश्मीर के संविधान बनाये तथा उसे भंग कर दिया। उन्होंने कहा, मैं समझती हूं कि फैसला सीधा होना चाहिये कि केंद्र ने 5 अगस्त 2019 को जो किया  वह अवैध था, संविधान और जम्मू व कश्मीर के खिलाफ था तथा जम्मू व कश्मीर के लोगों से जो वादे किये गये थे, उसके भी खिलाफ था।  

Advertisement. Scroll to continue reading.

यह तो हुई पांच अखबारों की सबसे बड़ी या प्रमुख खबर की बात। कहने की जरूरत नहीं है कि ज्यादातर प्रचारात्मक ही हैं और एक अखबार की लीड दूसरे के पहले पन्ने पर भी नहीं है। बेशक, ऐसे मौकों पर एक्सक्लूसिव छापने का रिवाज रहा है पर एक्सक्लूसिव का मतलब सरकार का समर्थन या प्रचार नहीं होता है। पर जो है वह आपके सामने है। आइए अब बसपा सांसद को पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए निलंबित किये जाने की खबर देखें। यह खबर सभी अखबारों में पहले पन्ने पर एक से तीन कॉलम में है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने शीर्षक में लिखा है, बसपा ने सांसद दानिश अली को मोइत्रा की बर्खास्तगी पर उनके वॉक आउट के लिए निलंबित किया। सबको पता है कि दानिश अली को महुआ मोइत्रा का साथ देने के लिए निलंबित किया गया है और उनपर दूसरे दलों के नेताओं से मिलने का आरोप रहा है। पर यह पार्टी विरोधी गतिविधि नहीं है। ऐसे में जिस मौके पर उनके खिलाफ कार्रवाई हुई वह महत्वपूर्ण है और खबर में पत्र के शब्दों का ही उपयोग करने तथा तथ्य बताने में जो फर्क है वह हिन्दुस्तान टाइम्स के शीर्षक में दिख रहा है।

द टेलीग्राफ का शीर्षक है, बसपा ने दानिश अली के खिलाफ कार्रवाई की। द हिन्दू में यह खबर दो कॉलम में है है। शीर्षक है, बसपा ने सांसद दानिश अली को दल विरोधी कार्रवाइयों के लिए निलंबित किया। टाइम्स ऑफ इंडिया का शीर्षक एकदम यही है। इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर तीन कॉलम में है। शीर्षक है, महुआ मोइत्रा मामले में एथिक्स कमेटी की आलोचना के बाद बसपा ने दानिश अली को निलंबित किया। लालमणि वर्मा की बाइलाइन वाली यह खबर इस प्रकार है, उत्तर प्रदेश के अमरोहा से बसपा सांसद कुंवर दानिश अली को पार्टी अध्यक्ष मायावती ने शनिवार को “पार्टी विरोधी गतिविधियों” के लिए निलंबित कर दिया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

लोकसभा की एथिक्स कमेटी द्वारा टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा को उनके खिलाफ कैश-फॉर-क्वेरी आरोपों की जांच के दौरान “अनैतिक आचरण का दोषी” पाए जाने के बाद उनके निष्कासन की मांग करने वाली एथिक्स कमेटी ने  समिति अध्यक्ष द्वारा मोइत्रा से पूछे गए “सवाल के इरादे को तोड़ने-मरोड़ने/बदलने के लिए” दानिश अली को फटकार लगाने की जरूरत बताई थी।

समिति के सदस्य, दानिश अली उन पांच विपक्षी सांसदों में से एक थे, जिन्होंने मोइत्रा से पूछे गए सवालों को “अमर्यादित और अनैतिक” कहा और इसका विरोध किया। अली सितंबर में लोकसभा के पटल पर भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी के सांप्रदायिक अपमान का भी निशाना बने थे। वह मामला विशेषाधिकार समिति के समक्ष है। खबर के अनुसार, अगस्त में जब दानिश अली ने इंडिया समूह की बैठक से पहले जदयू नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात की तो हलचल मच गई थी। बीएसपी इंडिया समूह में नहीं है। अली ने बाद में स्पष्ट किया था कि उनकी मुलाकात निजी थी और वे नीतीश कुमार को तब से जानते हैं जब वे छात्र नेता थे। अली को संबोधित निलंबन पत्र में, बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने कहा है, “आपको अनेकों बार मौखिक रूप से कहा गया कि पार्टी की नीतियों, विचारधारा और अनुशासन के विरुद्ध जाकर कोई भी बयानबाजी व कृत्य आदि न करें परन्तु इसके बाद भी आप लगातार पार्टी के विरुद्ध जाकर कृत्य कार्य करते रहे हैं।’

Advertisement. Scroll to continue reading.

मायावती, दानिश अली और पुराने मामले

इस मामले में तथ्य यह भी है कि नोटबंदी के समय बसपा नेता मायावती और उनके भाई से 104 करोड़ रुपये जमा करने के बारे में नोटिस भेजने की खबर छपी थी। बाद में क्या हुआ  कोई नहीं जानता। भले इसके दोनों मतलब हों कि मामला डराने के लिए था या निपट गया, कुछ नहीं निकला पर मुद्दा तो है। यही नहीं, 14 अप्रैल 2016 की एक खबर के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने मायावती के खिलाफ आय से ज्यादा संपत्ति का एक मामला स्वीकार कर लिया था। तब कहा गया था कि यह राजनीति से प्रेरित है। 2019 में मायावती के पूर्व सचिव पर कर चोरी के मामले में छापा पड़ा था। यही नहीं मायावती के भाई की 400 करोड़ की नोयडा की संपत्ति 2019 में जब्त की गई थी। 2011 का एक रिश्वत का मामला भी है जिसे सीबीआई ने बंद करने से मना कर दिया था। ऐसे में दानिश अली के खिलाफ कार्रवाई का मतलब समझना मुश्किल नहीं है लेकिन लगता नहीं है कि अखबार वालों को यह सब याद है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मायावती कई बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं हैं। इनमें 2007 से 2012 का पांच साल का कार्यकाल चौथा और पूरे पांच साल का है। इस दौरान वे विधानपरिषद सदस्य थीं। 2012 में इस्तीफा दे दिया था। विकीपीडिया के अनुसार, 2007-08 के मूल्यांकन वर्ष में मायावती ने ₹26 करोड़ का आयकर चुकाया और देश के शीर्ष 20 करदाताओं में से एक रहीं। इससे पहले सीबीआई ने उनके खिलाफ आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति रखने का मामला दर्ज किया था। मायावती ने अपने खिलाफ हो रही सीबीआई जांच को अवैध बताया। उनकी पार्टी ने दावा किया कि उनकी आय पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों द्वारा दिए गए उपहारों और छोटे योगदान से आती है। तीन अगस्त 2011 को दिल्ली हाईकोर्ट ने मायावती के खिलाफ केंद्र सरकार की अपील को खारिज कर दिया था। इसमें कहा गया था कि “उन्होंने अपने सभी दानदाताओं की पहचान का खुलासा करके अपने दायित्वों का पूरी तरह से निर्वहन किया है, उपहार उनके समर्थकों द्वारा दान किए गए थे”।

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील न दायर करने का फैसला किया। 13 मार्च 2012 को राज्यसभा के लिए अपने नामांकन पत्र के साथ दाखिल हलफनामे में मायावती ने 111.26 करोड़ रुपये की संपत्ति का खुलासा किया। आय से अधिक संपत्ति का मामला आखिरकार 6 जुलाई 2012 को – नौ साल बाद – सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति पी सदाशिवम (भारत के 40वें मुख्य न्यायाधीश जो 2013 से 2014 पद पर रहे और 05 सितंबर 2014 को केरल के राज्यपाल बना दिये गये) और दीपक मिश्रा की पीठ द्वारा रद्द कर दिया गया; अदालत ने पाया कि मामला अनुचित था। अभियोजन निदेशालय से प्राप्त राय के आधार पर, सीबीआई ने अपील दायर नहीं करने का निर्णय लिया। 4 अक्टूबर 2012 को कमलेश वर्मा द्वारा एक समीक्षा याचिका दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि मामला केवल तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया गया था और सबूतों की पर्याप्त समीक्षा नहीं की गई थी। 8 अगस्त 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने मामले को फिर से खोलने के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। कानूनी सलाह लेने के बाद, सीबीआई ने अंततः 8 अक्टूबर 2013 को अपनी फ़ाइल बंद कर दी। यह फाइल न खुले उसकी शर्तें मायावती जानती हैं और वही बता सकती हैं कि इन्हें पूर्ण करने की क्या मुश्किलें हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement