Avyact Agrawal : क्या कीमोथेरेपी जान ले लेती है? कैंसर होने पर कीमोथेरेपी नहीं करवाना चाहिए? मैं आई सी यू में झटके आने पर एक इन्सेफेलाइटिस के बच्चे को ऑक्सीजन लगा रहा था। तभी मां चिल्लाने लगी “सर ऑक्सीजन मत लगाना. मेरे पड़ोसी के बच्चे को ऑक्सीजन लगी थी और वो मर गया था। यहां भी अस्पताल में तीन मौत देख चुकी, सभी को ऑक्सीजन लगी थी।”
साफ है मां को जो दिख रहा था वह यह कि जो भी मृत्यु हुई उसके सामने, सभी में जीवित अवस्था में ऑक्सीजन लगा था। वो 1000 मृत्यु देखती अस्पताल में तो 1000 में उसे ऑक्सीजन लगा होना दिखता। जिससे उसकी सहज बुद्धि को ऑक्सीजन मृत्यु का कारण है, लग सकता था।
यही यदि उसके इर्द गिर्द के 20 लोग और कहें तो उनकी यह धारणा और भी दृढ़ होगी। लेकिन उसे जो नहीं दिख सकता था वह यह कि , उन सभी मरीजों में ऑक्सीजन नहीं लगी होती तब भी उनकी मृत्यु होती शायद और ज़ल्दी। उसे जो नहीं दिख सकता था वह यह है कि, ऑक्सीजन लगाए हुए मृत्यु की ओर बढ़ते अनेक लोग समय पर ऑक्सीजन मिल जाने से वापस भी आ गए थे।
इस मां जैसी धारणा एवं प्रतिक्रिया ऑक्सीजन के सबंध में कम पाई जाती है क्योंकि ऑक्सीजन का उपयोग कहीं अधिक कॉमन है। इसे दवा नहीं माना जाता एवं चिकित्सक इसके संभावित साइड इफ़ेक्ट नहीं बताते। लेकिन एक नज़रिया इस मां जैसा अवश्य हो सकता है, सामने दिखती मृत्यु की वजह से।
कीमोथेरेपी क्योंकि दवाओं का समूह है, इंजेक्शन है, इसलिए संभावित साइड इफ़ेक्ट बताए जाते हैं. इससे जुड़ी यह धारणा कि मृत्यु कीमोथेरेपी से होती है, बलवती होती जाती है। होता क्या है। कैंसर आज से कुछ बरसों पहले, समझो 40 वर्ष पहले तक बेहद जानलेवा बीमारी थी। कैंसर का अर्थ मृत्यु था। आज विभिन कैंसर के लगभग 50 प्रतिशत लोग पूर्णतः ठीक किये जा सकते हैं जिनमें से कुछ कैंसर जैसे ALL (ब्लड कैंसर का एक प्रकार) Hodgkin’s लिंफोमा इत्यादि के 90 प्रतिशत केस तक ठीक किये जा सकते हैं। यह संभव हुआ है सर्जरी, कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी के आविष्कार के बाद।
कीमोथेरेपी है क्या। यह कैंसर कोशिकाओं को खत्म करने दी जाने वाली ओरल एवं इंजेक्शन दवाओं का समूह है। क्या कीमोथेरेपी मार देती है मरीज़ को, यह समझने निम्न प्रकार समझना अति आवश्यक है। कीमोथेरेपी दो तरह की होती हैं- 1. Curative 2. Palliative. पहली क्यूरेटिव का अर्थ है, जब हम कैंसर को पूर्णतः खत्म कर मरीज़ को स्वस्थ, कैंसर फ्री कर सकें। कैंसर फ्री होना कैंसर में कीमोथेरेपी के अत्तिरिक्त कुछ अन्य बातों पर भी निर्भर है। जैसे कैंसर किस अंग का है, किस स्टेज में है, किन कोशिकाओं से उत्पन्न है। किस उम्र में हुआ है, अन्य बीमारियां तो साथ नहीं जैसे शुगर,लिवर, किडनी की बीमारियां। अतः मात्र स्टेज महत्वपूर्ण नहीं। अनेक बार लोग कहते हैं न पहली स्टेज में ही पता चल गया था तब भी कीमो न बचा पाई। तो उत्तर यह है कि स्टेज के अत्तिरिक्त किन कोशिकाओं एवं किस अंग का कैंसर था यह भी रिज़ल्ट् निर्धारित करेगा।
उदाहरण : ब्लड कैंसर में ALL में बच्चे 90 प्रतिशत तक बच सकते हैं तो AML में मात्र 20 से 30 प्रतिशत। Breast Cancer में Er PR triple negative cancer में बचने की संभावना कम होती है। गाल ब्लैडर, पैंक्रियास, ब्रेन कैंसर आरंभिक स्टेज में भी खतरनाक माने जाएंगे।
स्टेज क्या होती है… कैंसर की स्टेज का अर्थ है कैंसर प्रारंभिक अंग में ही है या कहीं और फैल गया है। ज़ैसे ब्रेस्ट कैंसर ब्रेस्ट में होने पर स्टेज 1 कहलायेगा। किन्तु यदि यह आसपास के लिम्फ नोड (ग्रंथियां) में फैल गया है तो स्टेज 2 कहा जाएगा। किसी अन्य अंग में फैल गया है जैसे फेंफड़े में तो स्टेज 3 पर है। एक से अधिक विभिन अंगों में है तो स्टेज 4 का कैंसर कहा जाएगा।
अतः क्यूरेटिव कीमोथेरेपी, सर्जरी, रेडियोथेरेपी (किस कैंसर में क्या बेहतर है यह चिकत्सक तय करेंगे) बहुत से मरीजों को बचा सकती है, बशर्ते कुछ और बातें साथ हों। स्टेज 2 कैंसर तक सर्वाइवल बेहद अच्छा होता है। ज़ैसे ब्रेस्ट कैंसर में लगभग 60 से 70 प्रतिशत लोगों को बचाया जा सकता है। किंतु 30 से 40 प्रतिशत जो मृत्यु होंगी, उनमें यह धारणा बन सकती है कि कीमो ने जान ली। इससे बेहतर कुछ न किया होता।
कीमो के अत्तिरिक्त संक्रमण से बचाव, आहार, भावनात्मक सपोर्ट, रक्त की आपूर्ति, सर्जरी का स्तर इत्यादि कारक ज़िम्मेदार होंगे survival में।
Palliative chemotherapy : यह वह प्रकार है जिसकी वजह से धारणाएं घर कर जाती हैं कि कीमोथेरेपी जानलेवा है।
Palliative कीमो उन मरीजों में दी जाती है जहाँ कैंसर से मृत्यु तो अवश्यम्भावी हो लेकिन मरीज़ की तकलीफें कम की जा सकें।
ज़ैसे स्टेज 4 कैंसर, या ब्रेन में बड़ा ट्यूमर जिसका आपरेशन संभव न हो। इससे मरीज़ को दर्द तकलीफों से राहत मिलेगी जब तक वह जीवित है। मृत्यु होने पर परिजनों को लग सकता है कीमो से भी नहीं बचा पाए या कीमो ने ही मार दिया। कीमो से क्या मृत्यु नहीं हो सकती? उत्तर : मृत्यु हो सकती है लेकिन सम्भावना बेहद कम है। संभावित साइड इफ़ेक्ट ऑन्कोलॉजिस्ट को पहले ही पता होते हैं। संभावित साइड इफ़ेक्ट अनेकों होते हैं जिनमें से अधिकांश या तो होते ही नहीं या होते हैं तो मैनेज किये जा सकते हैं।
ज़ल्दी डिटेक्शन : ब्रेस्ट कैंसर, सर्विक्स कैंसर, मूंह का कैंसर बेहद आरंभिक अवस्था जिसे carcinoma in situ कहते हैं, में पता किये जा सकते हैं। मैमोग्राफी, pap स्मीयर जैसी आसान जांचों से। इन जांचों को 40 वर्ष के ऊपर की महिलाओं को साल में एक बार करवाना चाहिए। सेल्फ एग्जामिनेशन में गांठ दिखने पर तुरंत डॉक्टर से मिलना चाहिए। अन्य दावे चमत्कारिक रूप से ठीक करने के… इन दावों में कोई भी शोध कार्य, निरंतरता नहीं होती। बहुत बार कैंसर होता ही नहीं समझ लिया जाता है।
कैंसर एक बीमारी नहीं अनेकों बीमारियों का समूह है जो एक दूजे से सर्वथा भिन्न हैं। कोई एक ही दवा सभी कैंसर में असरकारक हो ही नहीं सकती। सम्पूर्ण विश्व कैंसर को लेकर चिंतित है। यदि किसी के पास वाकई कोई चमत्कारिक तरीका हो इस क्षेत्र में तो वह अरबपति बन सकता है, नोबेल पा सकता है। कुछ लोगों का मात्र उपचार करने की जगह करोड़ों लोगों को बचा सकता है।
लेख लिखने के पहले मैंने अपने ऑन्कोलॉजिस्ट मित्रों से बात की, उन्होंने बताया अनेकों मरीज़ बहुत समय इन अवैज्ञानिक, बिना शोध के चमत्कारों को आज़माने में निकाल कर उनके पास आते हैं। या बीच ट्रीटमेंट में ये सब करने लगते हैं। याद रखें आंकड़ों से आंख मूंद नहीं सकते आप। भारत संक्रामक एवं असंक्रामक बीमारियों में दुनिया का सर्वाधिक बीमार लोगों का देश है और इसकी प्रमुख वज़ह मैं अवैज्ञानिक thought process एवं धारणाओं को मानता हूँ।
आपका
डॉ अव्यक्त अग्रवाल
सोशल मीडिया के चर्चित लेखक डाक्टर अव्यक्त अग्रवाल की एफबी वॉल से.
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