संजय कुमार सिंह
आज (19-12-23) सभी अखबारों में संसद से बड़ी संख्या में सदस्यों को निलंबित किये जाने की खबर ही लीड है। हेडलाइन मैनेजमेंट के इस जमाने में जब सरकार के खिलाफ जीरो बराबर खबर भी नहीं छपती है, तब यह खबर इतनी प्रमुखता से क्यों छप रही है? जब तमाम खबरें दबाई और छिपाई जाती रही हैं तो इस खबर तो इतनी प्रमुखता मिलना क्यों जरूरी या सामान्य है। मुझे लगता है कि इसे समझना मुश्किल नहीं है। नरेन्द्र मोदी अगले लोकसभा चुनाव के लिए नैरेटिव बना रहे हैं। पिछली बार मीडिया ने उनका साथ दिया था, दस साल से दे रहा है। अब भी दे रहा है। इस खबर को प्रमुखता देने का कारण और मकसद मोदी सरकार को मजबूत दिखाना और विपक्षी नेताओं को भ्रष्टाचारी और इस नाते लाचार-मजबूर दिखाना लग रहा है।
अमर उजाला में आज बैनर हेडलाइन है, मोदी की गारंटी …. अगली पारी में देश बनेगा तीसरी आर्थिक शक्ति, मिलेगा जनता का आशीर्वाद। जहां तक सांसदों के निलंबन की खबर का सवाल है, शीर्षक ही सरकारी है। आप भी देखिये, कार्यवाही में बाधा पहुंचा रहे राज्यसभा के 45 और लोकसभा के 33 सांसद निलंबित। आप जानते हैं कि इतनी बड़ी संख्या में सासंद कब निलंबित हुए थे, कहना मुश्किल है। ऐसे में अखबार का काम था यह बताना कि ऐसा पहली बार हुआ है या पहले कब हुआ था। क्योंकि यह कोई आम बात नहीं है और ऐसे में यह भी बताना चाहिये कार्यवाही में बाधा क्यों और कैसे पहुंचा रहे थे। कहने की जरूरत नहीं है कि यह सब खबर में अंदर हो भी तो शीर्षक से लग रहा है कि सांसदों को कार्यवाही में बाधा पहुंचाने का हक नहीं है जबकि संसद में हंगामा, वाक आउट, सासंदों का सदन के बीच में आ जाना, नारे लगाना आम था और अक्सर ऐसी खबरें व तस्वीरें दिखती थीं। सांसद मार-पीट नहीं कर रहे होंगे, संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचा रहे होंगे। विरोध कर रहे होंगे या नारे लगा रहे होंगे। तो यह उनका काम है और ससंद शायद इसीलिए है।
मोदी की गारंटी का यह प्रचार उन्हें मजबूत तो बनायेगा और उनके नाकाम वादे या कारनामे कौन याद दिलायेगा?
यही नहीं, इन सब बातों में सबसे महत्वपूर्ण है कि वे ऐसा किसलिए कर रहे थे यह शीर्षक या उपशीर्षक में नहीं है। अखबार ने लिखा है, सुरक्षा सेंध मामले में हंगामा लेकिन हंगामा और कार्यवाही में बाधा पहुंचाना अलग चीजें हैं? अगर हां तो स्पष्ट होना चाहिये और नहीं तो हंगामा मचाने वाले सासंद निलंबित शीर्षक होना चाहिये था। दोनों शीर्षक के भाव में जो अंतर है वही इस शीर्षक को सरकारी कहने का कारण है। विपक्ष ने इसे बेहद तानाशाही और इस कारण लोकतंत्र का मजाक बनाना कहा है (हिन्दुस्तान टाइम्स) लेकिन अखबारों में इसे नहीं के बराबर महत्व मिला है। सरकार की इस योजना के पहले निशाने राहुल गांधी थे क्योंकि वही सबसे प्रभावी और सक्षम थे। भारत यात्रा शुरू करने से पहले नेशनल हेराल्ड का मामला आ गया और फिर संसद से निलंबित करने के लिये मानहानि का मामला। यह अलग बात है कि उनके मामले में कोशिश कामयाब नहीं हुई पर महुआ मोइत्रा से इसकी शुरुआत की गई है। और तरीका बिल्कुल अलग अपनाया गया है। मोदी की गारंटी की शुरुआत देखें तो स्पष्ट हो जायेगा कि (विपक्षी) सांसद यानी भ्रष्टाचारी और उसके मुकाबले अकेला सब पर भारी नरेन्द्र मोदी जो थोक भाव में सांसदों को निलंबित करा सकता है और सांसद कुछ नहीं कर सकते हैं।
हालत ऐसी बना दी गई है कि कांग्रेस के समर्थक भी कह रहे हैं, ये करना चाहिये, वो नहीं किया आदि आदि। सच्चाई ये है कि समय कम है और मीडिया के सहयोग से इस रणनीति के कामयाब होने की संभावना वैसे ही है जैसे पिछली बार मुल्ले टाइट करने का मूल मु्द्दा था। भ्रष्टाचार तब भी मुद्दा था। रॉबर्ट वाड्रा से लेकर 1,56,000 करोड़ का टूजी घोटाला या विनोद राय का योगदान। लेकिन हुआ कुछ नहीं। चुनाव के पहले मुद्दा यह होना चाहिये था या बताया जाना चाहिये था कि इस सरकार ने क्या अच्छे काम किये हैं और इसलिए इसे ही वोट देना चाहिये। पर सरकार ऐसा कुछ खुद तो नहीं ही बताती है, मोदी जी गारंटी लेकर आ गये हैं और अखबार डुगडुगी बजा रहे हैं।
दूसरी ओर, आज अखबारों के पहले पन्ने से एक खबर पूरी तरह गायब है और यह है कांग्रेस ने कल अपने देश के लिए दान अभियान की शुरुआत की। इसकी घोषणा पहले ही की गई थी और इसकी शुरुआत 138 वीं सालगिरह के मौके पर की गई है। कल ही पता चला कि इस नाम से वेबसाइट बनाकर दान देने वालों को भाजपा और दूसरे वेबसाइट पर ले जाया जा रहा था। आप इसे मजाक कहें, भाजपा की श्रेष्ठता मानें, कांग्रेस की नालायकी समझें या फिर एंटायर पॉलिटिकल साइंस का कोई ज्ञान – खबर तो यह हर तरह से है। लेकिन आज यह खबर किसी अखबार में पहले पन्ने पर दिखी क्या? मेरे अखबारों में यह सिर्फ द टेलीग्राफ में पहले पन्ने पर है। वैसे भी, कांग्रेस ने अगर यह अभियान शुरू किया है तो यह खबर है और उसका वेबपता छपना चाहिये। लेकिन पहले तो नाम और रीडायरेक्ट करने का खेल हुआ और फिर जो सही नाम है उसे नहीं छापकर (या छापने में संकोच करेक) अखबारों ने कांग्रेस का नुकसान किया है। यही नहीं, नाम पर कब्जा कर लेने से कुछ ना कुछ दान मुफ्त में मिलेगा ही। देने वाला भ्रमित होगा सो अलग। फिर भी यह पहले पन्ने की खबर नहीं है। मोटा मोटी भाजपा और उसके समर्थकों ने डोनेट फॉर देश नाम के वेबसाइट खरीद लिये हैं और प्रचारित कर रहे हैं कि कांग्रेस को इन्हें ब्लॉक करना चाहिये था। नहीं किया गया तो भाजपा ने उपयोग कर लिया और शायद इसमें कुछ गलत नहीं है क्योंकि मोदी है तो मुमकिन है।
कहने की जरूरत नहीं है कि 2014 के हवा-हवाई मुद्दे जनता के बीच अदाणी के 20,000 करोड़ या कोयले की कीमत के 12,000 करोड़ या हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट या सेबी के पूर्व प्रमुख का अदाणी के यहां नौकरी करना और फिर भी जांच नहीं होने जैसे मामलों से ज्यादा प्रचारित हैं। ईडी, सीबीआई भेजकर कांग्रेस नेताओं की छवि और खराब की गई है। 350 करोड़ की नकदी को शेल कंपनियों के 20,000 करोड़ से ज्यादा बुरा प्रचारित किया गया है। इसमें ट्रोल सेना का योगदान रहा और ऐसे हालात बना दिये गये कि मोदी विरोधी भी कांग्रेस से उसके सांसद के यहां बरामद नकद पर सवाल करने लगे। जबकि सरकार कार्रवाई नहीं करती है तो उससे सवाल किया जाता है। यहां तो कार्रवाई हो ही रही थी तो कांग्रेस को क्या करना या कहना था। अपराध साबित होगा तब कांग्रेस को कुछ करना होगा पर भाजपा ने जांच शुरू नहीं की पॉस्को का मामला वापस हो गया। इसकी भी जांच नहीं हुई कार्रवाई नहीं हुई वरना गलत आरोप लगाने पर कार्रवाई क्यों नहीं होनी चाहिये?
2019 में क्या हुआ आप जानते हैं। पुलवामा की चिन्ता नहीं है पर 350 करोड़ की है जबकि पीएम केयर्स में इससे कई गुना ज्यादा राशि पड़ी हुई है। ना मीडिया सवाल उठा रहा है और न ट्रोल सेना। ऐसे में इस बार मोदी की गारंटी चुनाव जीतने की सीढ़ी बनेगी और बनाने की कोशिश चल रही है। भले इसका कोई आधार न हो, इससे कोई उम्मीद न हो। नवभारतटाइम्स.कॉम की 9 दिसंबर 2023 की एक खबर है, करप्शन के खिलाफ लड़ाई मोदी की गारंटी! इसमें कहा गया है, …. एक्स पर उनका पोस्ट देखिए, ‘जनता से जो लूटा है, उसकी पाई-पाई लौटानी पड़ेगी, यह मोदी की गारंटी है।’ पीएम मोदी ने करप्शन के खिलाफ ऐलान-ए-जंग कर 2024 से पहले विपक्षी I.N.D.I.A. गठबंधन के खिलाफ जबरदस्त प्रहार किया है। खबर के इस अंश में मैं ‘इंडिया’ को ठीक कर सकता था पर मुझे यह भी बताना है कि अखबारों की सेवा में कितना अंतर है।
इसका पता इस बात से भी चलता है कि राहुल गांधी ने भी ऐसा कहा है। वे भी अदाणी की कमाई को भ्रष्टाचार कहते हैं। गरीबों को बांटने की बात भी कही है। पर वह छपा कहां और उसे प्रचारित करने वाले भक्त कहां हैं? मोदी की गारंटी – 50 दिन के सपनों के भारत से लेकर नोटबंदी के नुकसान जन धन खाता धारकों के बीमा से लेकर 15 लाख के झूठ तक के बावजूद स्थापित की जा रही है। मुझे लगता है इसे ठीक नहीं किया गया तो भाजपा तीसरी बार जीत सकती है। भले इसमें ईडी सीबीआई का दुरुपयोग, चुनाव आयोग में मनमानी नियुक्ति और एक या ज्यादा अदालतों के एक या कई फैसले हों।
जहां तक सरकार चलाने की बात है एक साथ इतने सांसदों का निलंबन कोई तरीका नहीं है। यह कांग्रेस मुक्त भारत की जगह विपक्ष या विरोधी मुक्त संसद बनाने जैसी स्थिति है। प्रशासन के नाम पर सरकार क्या कर रही है वह सबको पता है। पुराने आरोपों और दावों का क्या हुआ सबने देखा है। फिर भी मीडिया अगर विज्ञापन के लिए या ईडी के डर से सरकार का विरोध नहीं कर सकता है तो यह मुल्ले टाइट करवाने की कीमत है। टाइट कितना हुआ, कैसे हुआ या हुआ कि नहीं वह अलग मुद्दा है लेकिन अमित शाह ऐसा दावा कर चुके हैं और मैं इस बारे में लिख चुका हूं। वैसे भी खुलेआम ऐसी बातें करने वालों को ईनाम मिलता रहा है। और यह कोई छिपा हुआ नहीं। कुल मिलाकर हुआ यह है कि मंदिर बनवाने का लालच देकर सत्ता में आई भाजपा ने 80-20 करने की पूरी कोशिश की और गलत होने के बावजूद 80 में से ज्यादातर का समर्थन उसे मिलता रहा।
इसमें सही गलत या लोकतंत्र या निष्पक्षता का ध्यान नहीं रखा गया। ईडी सीबीआई को जो कहा गया वह हुआ और स्वतंत्र बताने का ढोंग भी चला। मीडिया का समर्थन एक गलत तस्वीर बनाने में कामयाब रहा है और अखबार खुलकर एक रणनीति के तहत खबरें दे रहे हैं। उदाहरण के लिए, द हिन्दू में आज पहले पन्ने पर एक खबर है, केंद्र ने सीएजी की बहुत कम रिपोर्ट संसद में रखी। इससे पहले सीएजी की रिपोर्ट से संबंधित एक खबर द टेलीग्राफ में छपी थी और चर्चित हुई थी। उसके बाद सरकार ने जो किया सो किया टेलीग्राफ के संपादक भी बदल गये। इस खबर में कहा गया है कि संसद में कम रिपोर्ट रखे जाने का कारण सीएजी के कर्मचारियों की संख्या कम होना और बजट में कटौती है। आम आदमी ऐसी चीजें न समझे और सीएजी की पिछली रिपोर्ट गलत साबित होने के बावजूद उसे प्रचारित करने, उसका लाभ उठाने और इस व दूसरे आधार पर लोगों को बदनाम करना जारी रखे तो मीडिया की भूमिका बड़ी है लेकिन वह अपने हिसाब से देश सेवा कर रहा है और ‘देश’ उसकी सेवा कीमत चुका रहा है।
विधायक खरीदने, निर्वाचित सरकार गिराने और जनादेश का मजाक बनाने के तमाम उदाहरणों के बावजूद जनादेश उसी के पक्ष में आये तो जनादेश प्राप्त करने (या लेने-देने) के तरीके पर विचार करने की जरूरत है। लेकिन लोग विपक्षी गठबंधन को महत्व दे रहे हैं और हारने वालों के प्रतिनधित्व की बात कर रहे हैं जबकि अभी तक तिकोना चौकोना मुकाबला होता रहा है और उसे कभी गलत नहीं माना गया। अब 80-20 करने की कोशिश को छोड़कर 49-51 करने की कोशिश चल रही है और इसीलिए हारने वालों के प्रतिनिधित्व की भीख मांगी जा रही है पर आम आदमी से धर्मनिरपेक्षता की अपेक्षा नहीं की जा रही है। चुनाव आयोग का ध्यान भी इस ओर नहीं है।
आज की मूल या लीड खबर और इन तथ्यों के साथ खबर यह भी है कि एएसआई की ज्ञानव्यापी रिपोर्ट अदालत में सील कवर में दायर की गई है (हिन्दुस्तान टाइम्स)। यह और इसके बाद मथुरा का मामला 1991 के पूजा स्थल कानून के बावजूद है। कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है तो उसे एक से तीन साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है। कायदे से इसमें मुकदमा करना भी शामिल होना चाहिये पर कानून को चुनौती तो दी ही जा सकती है। लेकिन धार्मिक सद्भाव बनाये रखने की कोशिश वाले इस कानून के बावजूद नये मुद्दे उठ ही रहे हैं जबकि लोगों को ऐसी कोशिश ही नहीं करनी चाहिये पर ‘अखबार में नाम’ के तहत कल खबर थी कि पिता पुत्र की जोड़ी ने धार्मिक महत्व के कितने मामले अदालत में उठाये हैं।