नितिन त्रिपाठी-
एक डेढ़ दशक पूर्व की बात है. नई सफारी ख़रीदी थी. रात्रि का वक्त था, लखनऊ में ताज होटल के पास ब्रिज पर जा रहे थे. सामने से एक माफिया साहब का क़ाफ़िला आ रहा था. पचीस तीस हूटर बजाती गाड़ियाँ, गाड़ियों से बाहर झांकते असलहे. वह जनता जो एंबुलेंस को कभी साइड नहीं देती, अपनी अपनी गाड़ियाँ किनारे कर ले रही थी. मेरी गाड़ी सामने से थी हम चलते रहे. सामने से आ रहे क़ाफ़िले में से एक लोफड़ ने बंदूक़ की नोक से मेरी गाड़ी का साइड मिरर तोड़ दिया. मैं लकी था ऐसे ही एक केस में अगले दिन वह एक इंजीनियर को गाड़ी समेत किडनैप कर ले गये थे.
यह प्रदेश की राजधानी का हाल था, जैसे जैसे पूर्व में बढ़ो आतंक बढ़ता जाता था.
मेरा स्वयं शहर से बाहर कहीं निकलना हो तो गाड़ी में इतने हथियार और लोग लेकर निकलते थे कि छोटे मोटे देशों से युद्ध जीत जायें, फिर भी जब तक घर वापस न पहुँचो घर वालों को भय रहता था. मेरा तो राजनीति में रहने का मेन उद्देश्य ही यह था कि पर्सनल सेफ्टी रहेगी. हमें कौन सा ठेकेदारी करनी थी हाँ यह ज़रूर रहा कि गन लाइसेंस आदि मिल जाते हैं. टोल टैक्स पर कभी टोल नहीं देना पड़ता था. और था कि जब अपनी सरकार आएगी तो दो से चार पुलिस वाले परमानेंट रख लिये जाएँगे.
यूपी बच्चों और परिवार को पालने के लिए सेफ़ प्लेस नहीं था, भय का माहौल था.
योगी सरकार आई, अब इस सब भौकाल की ज़रूरत ही न रही. पिस्टल लास्ट टाइम टेस्ट कब किया था याद ही नहीं. पुलिस सिक्योरिटी लेना छोड़िए अब तो कहीं भी जाना हो स्वयं ही गाड़ी चला कर पहुँच जाते हैं. सपा सरकार में थे कभी टोल नहीं पे किया-कोई नहीं करता था, हम करते तो बेवकूफ कहलाते, भाजपा सरकार में बड़े बड़े विधायकों को करना पड़ जाता है.
अब यूपी वैसा ही बन रहा है जैसा शेष सामान्य विश्व है पचास सालों से. अब यह बताने में शर्म नहीं आती कि हम यूपी से हैं. विदेशों में भी भारतीय कम्युनिटी में अब गर्व से स्वयं को यूपी का बताते हैं.
मुख़्तार अंसारी का जाना एक काले अध्याय का समापन है. यद्यपि वह लंबे समय से थे जेल में, फिर भी कहीं न कहीं उनका नेटवर्क काम पर था ही. सौ नहीं तो दस ताक़त थी ही.
पहले सब छोटे मोटे गये, फिर अतीक और मुख़्तार गये. आज की तारीख़ में यूपी में कोई अब बड़ा संगठित माफिया-गुंडा नहीं बचा जिससे आम जनता को भय लगता हो.
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