सीबीआई निदेशक की आगंतुक डायरी को लेकर हुए खुलासों के मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ…इसके बारे में हम आपको बताएंगे…सीबीआई के निदेशक रंजीत सिन्हा के घर की आगंतुक डायरी को लेकर ज़ी मीडिया के अखबार डीएनए ने एक बड़ा खुलासा किया था…ज़ी मीडिया ने आपको बताया था कि रंजीत सिन्हा के घर की इस आगंतुक डायरी में ऐसे रसूखदार लोगों के नाम थे जो 2G स्पेक्ट्रम घोटाले और कोयला घोटाले में आरोपी रहे हैं। ज़ी मीडिया के इस खुलासे से सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा काफी बेचैन हैं..और सोमवार को उनके वकील ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि ज़ी मीडिया का अख़बार DNA उनके पीछे पड़ा है…रंजीत सिन्हा के वकील का कहना था कि याचिकाकर्ता प्रशांत भूषण.. सुप्रीम कोर्ट में जो कुछ भी कर रहे हैं…वो सारी जानकारी पहले से ही DNA अख़बार के पास होती है…और सीबीआई डायरेक्टर के खिलाफ अदालत में जो भी कार्यवाही हो रही है…वो प्रशांत भूषण नहीं, बल्कि एक अखबार कर रहा है…इसलिए ये जानकारी अदालत के सामने आनी ज़रूरी है कि सीबीआई डायरेक्टर के घर की आगंतुक डायरी…किसने.. किसको दी?… रंजीत सिन्हा के वकील ने अदालत में कहा कि DNA अख़बार Zee News का है…जो कि सुभाष चंद्रा का है।
रंजीत सिन्हा के वकील ने ये भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट के नियमों के मुताबिक कोई भी याचिका जब हलफनामे के साथ कोर्ट में दायर होती है…तो उसमें दी जाने वाली जानकारी कहां से आई और किसने दी…ये अदालत को बताना ज़रूरी होता है…इसलिए प्रशांत भूषण को एंट्री रजिस्टर और अन्य दूसरी जानकारियां देने वाले व्यक्ति का नाम अदालत के सामने देना चाहिए। इसके जवाब में प्रशांत भूषण ने कहा कि भ्रष्टाचार और गलत काम करने वालों के खिलाफ जानकारी देने वाला ह्विस-ब्लोअर होता है…और ह्विस-ब्लोअर की पहचान गुप्त रखी जानी चाहिए…इसलिए इस मामले में वो ह्विस-ब्लोअर का नाम सार्वजनिक नहीं करना चाहेंगे। आखिर में अदालत ने प्रशांत भूषण को निर्देश दिया कि वो ह्विस-ब्लोअर का नाम सीलबंद लिफाफे में अदालत को दें… अब इस मामले की अगली सुनवाई 22 सितंबर को होगी।
कोर्ट के इस निर्देश पर याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा, ‘कोर्ट ने आज जो ऑर्डर पास किया है कि मैं कोर्ट को ये बताऊं कि एक सील्ड कवर में कि ह्विसल-ब्लोअर कौन है और वह कहां पर रहता है.. उस पर मैने कोर्ट को ये बोला कि इस बारे में मुझे ह्विसल-ब्लोअर और सेंटर फॉर पब्लिक इंटेरेस्ट लिटिगेशन से पूछना पड़ेगा और उसके बाद ही मैं इसपर फैसला ले सकता हूं।’
जबकि रंजीत सिन्हा के वकील विकास सिंह ने कहा, ‘हमारी दलील थी कि कानून इस देश में सबके लिए बराबर है और प्रशांत भीषण के लिए कोई कानून अलग नहीं है तो हमारे कानून में इस तरह का एफिडेविट इस तरह के एलीगेशन डालने से पहले आपको बोलना ज़रुरी है कि आपको ये दस्तावेज कहां से मिला.. इनके हलफनामे में इसका कोई जिक्र नहीं था। आगंतुक डायरी से हुए खुलासों से सीबीआई डायरेक्टर रंजीत सिन्हा पर गंभीर सवाल उठे हैं…इस पूरे मामले में सीबीआई डायरेक्टर का आचरण संदेह पैदा करता है। बड़ा सवाल ये है कि जो जांच एजेंसी 2जी घोटाला और कोयला घोटाले की जांच कर रही हो…और उस जांच एजेंसी का चीफ उस गंभीर मामले के आरोपियों या प्रतिनिधियों से अपने घर में एक बार नहीं बल्कि बार-बार मिल रहा हो…तो क्या ऐसे में जांच को निष्पक्ष माना जा सकता है।
सवाल ये भी है कि क्या जांच एजेंसी के चीफ का इस तरह का रवैया अपने आप में एक अपराध नहीं है…अगर हम केंद्र सरकार के सेवा नियमों को देखें तो किसी भी सरकारी कर्मचारी या अधिकारी को ये अधिकार नहीं है कि वो आरोपी या आरोपी के प्रतिनिधियों से निजी मुलाकात करे…वो भी अपने घर पर। अगर कोई आरोपी किसी अधिकारी को जानता है…तो अधिकारी ख़ुद ही अपने आप को उस मामले की जांच से अलग कर लेता है…जिससे जांच पर कोई सवाल ना खड़े हो सकें…लेकिन सीबीआई डायरेक्टर रंजीत सिन्हा ने कभी अपने आपको जांच से अलग नहीं किया।
2G घोटाला हो या फिर एयरसेल-मैक्सिस डील या कोयला घोटाला…इन दोनों ही केस की मॉनिटरिंग सुप्रीम कोर्ट कर रहा है…इस सबके बावजूद रंजीत सिन्हा आरोपियों के प्रतिनिधियों से अपने घर पर मिलते रहे हैं…जो कि जांच को पटरी से उतारने और भ्रष्टाचार के आरोपों को बल देता है…और आमतौर पर ऐसे अधिकारी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई भी होती है।
सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा ने अपने वकील के ज़रिए ज़ी मीडिया पर सवाल उठाए.. उस पर ज़ी मीडिया कॉरपोरेशन लिमिटेड ने अपनी आधिकारिक प्रतिक्रिया दी है। ज़ी मीडिया का कहना है कि सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा के खिलाफ अपने अखबार DNA के खुलासे पर वह कायम है… ज़ी मीडिया ने पहले भी देशहित में… कई गंभीर घोटालों का पर्दाफाश किया है…ज़ी मीडिया बिना किसी डर और पक्षपात के ऐसे खुलासे आगे भी करता रहेगा… जनहित की खबरों को प्रसारित करने के लिए कंपनी अपने पत्रकारों को पूरी स्वतंत्रता देती है।
हमने इस अहम मुद्दे पर DNA अखबार के एसोसिएट एडिटर रमन कृपाल ने कहा, ‘हम अपने खुलासे पर कायम हैं…और ये भी मैं कहना चाहूंगा इसके साथ ही कि हमारा जो जानकारी का प्राथमिक स्रोत था वो प्रशांत भूषण नहीं हैं, हमें वह आगंतुक डायरी सीबीआई निदेशक के आवास के घर से मिली। आवास के मुख्य द्वार पर कुछ 8-10 अधिकारी हैं। वहां आईटीबीपी और सीबीआई के अधिकारी हैं..वहां कुल 30 अधिकारी हैं। बहुत सिंपल सी बात है उनकी लिखावट मिलाइए। ये इतना आसान है कि पूछिये मत, ये अगर कर दें तो पूरे मामले का खुलासा हो जाएगा कि कौन सच है और कौन गलत है कि ये जो प्रविष्टियां हैं, गलत डाली गई हैं, उससे पता चल जाएगा लेकिन ये मतलब.. 300 पेज को फर्जी बनाना इतना आसान नहीं है और जब भी हमने किसी से पूछा तो सबने प्रविष्टियों की पुष्टि की। पहले दिन किसी ने पुष्टि नहीं की, सीबीआई डायरेक्टर ने मना किया, रिलायंस वालों ने भी मना किया। अब दोनों ने ई-मेल भेजकर पुष्टि कर दी है। अब वे ऐसा कह रहे हैं…इससे क्या…इसलिए हम कह रहे हैं कि आगंतुक डायरी के बारे में सुप्रीम कोर्ट को जांच करने दीजिए। रजिस्टर की लिखावट मिलाइए और खत्म कीजिए किस्सा।’
सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को CBI निदेशक रंजीत सिन्हा ने सीधे-सीधे आरोप लगाया कि ज़ी मीडिया और उसका अखबार DNA उनके पीछे पड़ा है.. और रंजीत सिन्हा ने DNA अखबार के सूत्र के बारे में जानकारी मांगकर स्वतंत्र पत्रकारिता पर हमला किया है.. हमने इस मुद्दे पर एस्सेल ग्रुप के चेयरमैन, डॉक्टर सुभाष चंद्रा से भी कुछ सवाल पूछे… डॉ. सुभाष चंद्रा के जवाब क्या थे… ये भी आपको सुनना चाहिए।
CBI निदेशक के वकील के आरोप पर प्रतिक्रिया देते हुए एस्सेल ग्रुप के चेयरमैन, डॉक्टर सुभाष चंद्रा ने कहा, ‘देखिये, मैं इसपर रंजीत सिन्हा डायरेक्टर CBI के जो हैं उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में जो कहा कि हम एक मीडिया हाउस के रूप में इस ट्रायल को पीछे से चला रहे हैं, यह बिल्कुल गलत है… मैं एक ज़ी मीडिया कॉरपोरेशन का अंशधारक होने के नाते आपसे बात कर रहा हूं क्योंकि मैं कोई ज़ी मीडिया के कॉरपोरेशन जो कि कई प्रकार के टीवी चैनल, अखबार, ऑनलाइन मीडिया सब चीजें चलाती है उसमें मेरा कोई सीधा दखल नहीं रहता है…क्योंकि हमने जो आप जैसे पत्रकार लोग हैं सबको आजादी दिया हुआ है और हमने यही कहा है कि आप बिना भय और पक्षपात के आप अपना काम करिये और जन हित को जरूर ध्यान में रखिये और हम इतनी उम्मीद करते हैं कि हमारे पत्रकार लोगों से कि वो ईमानदार रहें, वो किसी लोभ-लालच में आकर के किसी की गलत स्टोरी न दें किसी के बारे में अच्छा न लिखें या जो भी है, ये सब हम ध्यान रखते हैं।’
डॉ. चंद्रा ने आगे कहा, ‘अब रहा सीबीआई निदेशक के सवाल का कि हम कुछ इसमें करते हैं मेरा नहीं ख्याल कि हमारे लोग, DNA के जिन लोगों ने ये स्टोरी ब्रेक की वो कोई गलत तथ्यों के आधार पर वो करेंगे, अगर गलत तथ्यों के आधार पर वो करते ऐसा, तो मैं समझता हूं कि आजतक हमें 20-50 लीगल नोटिस जिनलोगों के नाम दिए हैं हमने उसमें वो सब करते।
इस सवाल पर कि क्या ‘सोर्स’ का खुलासा होना चाहिए। इस पर डॉ. चंद्रा ने कहा, ‘देखिये हमारे यहां एक पहले भी केस हुआ ज़ी मीडिया के ज़ी न्यूज में जो कि विषय सुप्रीम कोर्ट तक गया था इसी प्रकार का एक सवाल था, तो उस समय भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था तीन-चार साल पहले की बात हो गई कि, पत्रकार को हम बाध्य नहीं करेंगे कि वह अपना सूत्र बताए… तो मेरे ख्याल से इस विषय में भी मुझे नहीं लगता कि सुप्रीम कोर्ट भी इसमें दखल देगा, लेकिन कोर्ट कोर्ट है वो कुछ भी आदेश दे सकती है।’
क्या मीडिया ‘खुलासे’ करना बंद कर दे? इस पर डॉ. चंद्रा ने कहा, ‘ये कठिनाई है, कठिनाई का समय है, ऐसा है ये देश भर के लिए पूरी कठिनाई का विषय चल रहा है… केवल पत्रकार समुदाय के ऊपर नहीं है, कोयला घोटाला के ऊपर ज़ी मीडिया ने बिल्कुल खुलासा किया, उसके ऊपर एक पार्टी ने UPA सरकार के लोगों ने मिलकर हमारे ऊपर गलत लांछन लगाए, मानो कि हम उनसे पैसा मांग रहे थे अब उसके ऊपर दिल्ली पुलिस ने हमारे खिलाफ नकली FIR दर्ज की, वो दर्ज करने के बाद उन्होंने चार्जशीट जब फाइल की तो ट्रायल कोर्ट ने उस चार्जशीट को फेंक दिया। फिर वो लोग अपील में गए… हाई कोर्ट ने ये कहा कि आप चार्जशीट फाइल करिये अबतक दिल्ली पुलिस ने चार्जशीट फाइल नहीं की है, क्यों नहीं की है क्योंकि उनके पास मुझे नहीं लगता कि उनके पास कोई साक्ष्य है हमारे खिलाफ…तो ये विषय ऐसा है कि अगर आप खुलासे करते हैं…एक अंशधारक के रूप में हम आपको आजादी देते हैं, तो एक पत्रकार के रूप में आप खुलासे करते हैं तो मेरा फर्ज एक अंशधारक होने के नाते आपके साथ खड़े रहना है और वो हम खड़े रहे हैं…और कंपनी खड़ी रही है..जिन लोगों ने गलत FIR आपकी कंपनी के खिलाफ, मेरे खिलाफ की है, करवाई है वो सब पकड़े जाएंगे, सब सामने आएंगे ऐसा मेरा विश्वास है, क्योंकि हमने सुप्रीम कोर्ट में भी ‘अंडर सेक्शन 32 फ्रीडम ऑफ स्पीच बाइ द सिटिजन एंड मीडिया’ वो भी हमारी लंबित है… इसी मामले में। तो मुझे लगता है कि सुप्रीम कोर्ट भी देखेगी कि ये क्या हुआ था वास्तव में, तो मुझे नहीं लगता कि आपको कोई डरने की आवश्यकता है।
‘दबाव’ का सामना कैसे करते हैं? इस पर एस्सेल ग्रुप के चेयरमैन ने कहा, ‘इस प्रकार के दबाव आते हैं कभी-कभी फोन आ जाते हैं, लेकिन हम तो ये कहते भई आपका विषय आपका जो पक्ष है, आपका जो रुख है वो आप रखिये और हम जरूर निवेदन करेंगे पत्रकार लोगों से, संपादकों से कि भई उनका पक्ष भी आपको लेना चाहिये… लेकिन कभी-कभी अगर कोई हमारा पत्रकार या संपादक कोई गलती करते हैं, कोई गलती हो जाती है और वो अगर कोई व्यक्ति अगर हमारे सामने तथ्य रखता है तो उसमें भी हम कहते हैं भई ये उनका तथ्य है आप देख लीजिए, आखिर तो ये निर्णय अंतिम रूप से संपादक का है। इन सारे मामलों में संपादक ही है जो अंतिम निर्णय करता है। जो हमारे ज़ी मीडिया में हम पूरी तरीके से अनुसरण करते हैं, दबाव के अलावा मुझे कुछ दोस्तों ने सलाह भी दी कि कोयला घोटाला में आप एक खास व्यक्ति के खिलाफ कर रहे हैं और आप ये न करें क्योंकि आपकी विश्वसनीयता खराब होगी… अब मैंने सुन लिया, हंसा, चुप कर गया क्योंकि मुझे पता था कि वो साहब भी उनके द्वारा भेजे गए हैं, उनको भी मैं आज आपके माध्यम से ये कहना चाहूंगा कि हमारा किसी व्यक्ति विशेष के प्रति कैंपेन चलाना या उनके विरुद्ध कुछ काम करना ये हमारा कतई विषय नहीं है… चाहे वो कोयला से संबंधित लोग हों, चाहे वो अभी सिन्हा साहब हों या कोई भी हो…हमारा व्यक्तिगत कोई किसी से रंजिश नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘…तो अब अगर कोई लोग सोचते हैं ऐसा और सलाह देते हैं आप ये मत करिये तो हम सुन लेते हैं, क्या करें… अब दूसरी एक बात मैं साथ में कहूंगा कि ये NDA की सरकार अभी आई है श्री नरेंद्र मोदी जो देश के प्रधानमंत्री हैं, उन्होंने खुले तौर पर कहा कि ना मैं खाऊंगा, ना मैं खाने दूंगा…जब वो व्यक्ति ऐसा बोलता है और पूरे देश ने उनकी बात का स्वागत किया… तो वो कैसे रोक लेंगे सब चीजें, जब तक उनके सामने खुले तौर पर जो चल रहा है, जो बदमाशियां हो रही हैं वो जब नहीं आएंगी, लोगों की नजरों में गलत चीजों को कौन लाएगा, मीडिया लाएगा, हम लाएंगे, आप लाएंगे, जब हम सामने उनको लाएंगे तो उस पर चर्चा होगी, मंथन होगा, कोई अगर गलत खबर आ गई है सबके बीच में तो वो अपने-आप निकल के आएगी कि ये गलत थी, जो सही है वो रहेगी, रहेगी तो उनको अमल में लाया जाएगा… तो मेरा ये मानना है कि हमको भी मीडिया के रूप में देश के प्रधानमंत्री जो कि ईमानदारी से ये काम करने में लगे हैं कि वो भ्रष्टाचार खत्म करें तो हमारा भी फर्ज बनता है कि उनका साथ दें, नहीं तो अकेले तो वो कुछ भी नहीं कर सकेंगे… उनको हमें ये जो चीजें हैं ये इस दिशा में कदम हैं।
डॉ. चंद्रा ने कहा, ‘अभी मैं देख रहा था आधा घंटा पौन घंटा पहले हमारे ज़ी बिजनेस चैनल के ऊपर कि जो Forgo टैक्स हैं, पिछले साल UPA सरकार ने एक साल में पांच लाख करोड़ रुपये के Taxes Forgo किये. चाहे वो कॉरपोरेट जगत में किसी चीज की, किसी इंडस्ट्री के रहे हों, किसी और के रहे हों, चाहे वो IT Industry के रहे हों, एक तरफ तो आप ये कर रहे हैं, दूसरी तरफ किसानों को सत्तर हज़ार करोड़ रुपए का जब उनको टैक्स माफ किया गया या कुछ कर माफ किया गया तो सबने चिल्ला दिया। अर्शशास्त्रियों ने कहा कि ये तो गलत हो रहा है, अरे आप ये नहीं देख रहे हो कि पांच लाख करोड़ रुपये का आप ये कर रहे हो, तो ये समस्याएं हैं इस देश की जो कि हमें आपको खासकर आप लोगों को उजागर करना पड़ेगा और आप कर रहे हैं इसके लिए मैं आपको बधाई देता हूं।’
(जी ग्रुप की वेबसाइट जी न्यूज पर प्रकाशित रिपोर्ट का संपादित अंश)
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दुष्यंत कुमार
September 17, 2014 at 9:12 am
चौथे पैराग्राफ़ की तीसरी पंक्ति में प्रशांत भूषण की जगह भीषण लिखा है। ठीक कर लें।