Yogesh Bhatt : एक ‘संघर्ष’ का ‘संघर्षमय’ अंत. आज की पीढ़ी में बहुत कम लोग होंगे जो वेद भाई (वेद उनियाल) के नाम से परिचित होंगे। वेद भाई संघर्ष का वो नाम है , जो जिया भी संघर्ष में और विदा भी संघर्ष करते करते हुआ। वेद उनियाल उत्तराखंड राज्य आंदोलन का वो नाम है, जिसने इस आंदोलन को उम्र भर जिया। न कोई कारोबार, न कोई सियासत, न कोई रोजगार, सिर्फ और सिर्फ संघर्ष। राज्य आंदोलन के दौर में वह सिर्फ प्रथम पंक्ति के योद्धा ही नहीं, बल्कि चिंतक, विचारक और प्रमुख रणनीतिकार भी रहे। अस्सी-नब्बे के दशक के दौरान जनांदोलनों, जन सरोकारों से जुड़े लोग बखूबी वेद उनियाल से वाकिफ हैं।
वेद उनियाल मूलत: हार्डकोर वामपंथी थे ,नक्सली धारा के छात्र नेता भी रहे। देहरादून डीएवी कालेज के छात्रसंघ महासचिव के रूप में उनके राजनीतिक जीवन की शुरूआत हुई। इसके बाद चाहे शिक्षा का आंदोलन हो, किसान आंदोलन हो, रोजगार आंदोलन हो या फिर जनसरोकारों से जुड़ी कोई भी लड़ाई, शायद ही कोई ऐसा आंदोलन रहा हो , जिसमें उनकी भूमिका न रही हो। राज्य आंदोलन के दौर में जब राजनीतिक विचारधारा का सवाल उठा, तो वेद भाई ने क्षेत्रीय दल को तरजीह देते हुए यूकेडी को चुना और उसके शीर्ष नेतृत्व में शामिल रहे।
अनगिनत आंदोलन, भूखहड़ताल, जेल और पुलिसिया दमन, ये सब वेद भाई के जीवन संघर्ष का अभिन्न हिस्सा रहे। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि वह कभी भी सुविधाभोगी और अवसरवादी नहीं रहे। आंदोलन के दौर में ही वे गंभीर रूप से गठिया के शिकार हो गए , लेकिन बावजूद इसके उनका संघर्ष बरकरार रहा। उनके व्यक्तित्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि तब गैर कांग्रेसी-गैर भाजपाई मोर्चा बनाने का जिम्मा उनके ही पास था। इतना ही नहीं उत्तराखंड क्रांति दल का राजनीतिक घोषणा पत्र बनाने की जिम्मेदारी भी उन्हीं पर होती थी। निसंदेह वेद भाई जैसे जीवट, ओजस्वी और प्रखर आंदोलनकारी तेवर वाला जज्बा हर एक में नजर नहीं आ सकता। ये उनकी जीवटता ही थी कि दो दशक तक उन्होंने एक गंभीर रोग का डटकर मुकाबला किया।
लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि जिस उत्तराखंड के लिए उन्होंने सब कुछ दांव पर रखा, वो उत्तराखंड, और सिर्फ उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि उनके आंदोलन के दौर के साथी तक न तो उनके संघर्ष को मान्यता दिला सके और न ही आंदोलनकारी के रूप में उचित सम्मान। अपने जीवन का अंतिम सोपान वेद भाई ने बेहद कठिनाई से जिया। एक तरफ बीमारी, दूसरी तरफ आर्थिक तंगी और इसी दौरान पुत्र शोक का वज्रपात उन्हें झेलना पड़ा। चंद गिने-चुने लोग ही रहे होंगे जिन्होंने कठिन वक्त में वेद भाई की सुध ली होगी। दुभाग्यपूर्ण तो यह था कि उनके अंतिम संस्कार के दौरान चंद आंदोलनकारी चेहरे, कुछ रिश्तेदार और पड़ोसी ही शामिल रहे।
वेद भाई के जाने के बाद आज सरकारों पर सवाल उठ रहे हैं। सरकार को दोष दिया जा रहा है कि उसने एक राज्य आंदोलनकारी नेता के लिए कुछ नहीं किया। यह बात बिल्कुल सही है, लेकिन यह भी सच है कि दोष सिर्फ सरकार का ही नहीं, बल्कि उन आंदोलनकारी शक्तियों का भी है, जो आज अपनी ही हैसियत खो बैठे हैं। निसंदेह यदि वेद भाई भाजपा या कांग्रेस में होते, तो शायद स्थिति कुछ अलग होती। मगर जब राज्य बनने के बाद सत्ता की मलाई चाटने वाली तमाम संघर्षशील ताकतों ने ही उनकी सुध नहीं ली, तो फिर सरकार से उम्मीद ही क्या की जाती? वैसे भी मौजूदा दौर में न तो आंदोलनकारियों की कोई हैसियत है और न उनके संघर्ष को कोई मान्यता।काश, वेद भाई की अंतिम यात्रा से ही सही आंदोलनकारी ताकतें (अगर कहीं बची हैं तो) कुछ सबक ले पातीं।
पत्रकार योगेश भट्ट की एफबी वॉल से. इस पोस्ट पर आए ढेर सारे कमेंट्स में से कुछ प्रमुख यूं हैं…
Subhash Sharma आर्थिक तंगी तो वेद भाई ने आजीवन झेली । फ़िर हर हाल में खुश रहना और राज्य की चिंता करना तो उनकी आदत में शुमार हो गया था । दो वर्ष पूर्व उनके एक मात्र पुत्र की मृत्यु तो, उनके साथ ज्यादती ही थी । परेशानियों की इंतेहा हो गयी थी । राज्य आंदोलन को गति देने के लिये उन्होंने लगभग 16 दिनो (या शायद उससे ज्यादा) की भूख हड़ताल की, तो वो भी पूरी ईमानदारी से । जिन पुलिस अधिकारी ने प्रशासन के आदेश पर उनकी भूख हड़ताल तुड़वाने के लिये उनको जबरन गोद में उठा कर अस्पताल में पहुँचाया था, उन्होंने मुझे बताया था कि, सूख कर हड्डियों का ढाँचा रह गये थे वेद भाई ! इसी भूख हड़ताल ने उनके लीवर, उनका नर्वस सिस्टम बहुत ज्यादा डेमेज कर दिया था । यही बीमारी बढ़ती गयी और धीरे धीरे उनके शरीर के अधिकाँश हिस्सों को प्रभावित करती चली गयी । हाँ, मस्तिष्क से वे पूरी तरह स्वस्थ थे । आदरणीय भाभीजी ने जिस तरह वेद भाई का साथ निभाया, वो तो अनुकरणीय है ही । परन्तु ओमी भाई ने भी वेद भाई का साथ बहुत ही ईमानदारी से निभाया । उनके इस तरह जाने का बहुत दुख है, पर नियति के आगे किसी का वश नहीँ । वेद भाई का फ़िर से क्रान्तिकारी अभिवादन।
Suresh Belwal भगवान वेद भाई की पवित्र आत्मा को शांति प्रदान करे । कुछ व्यक्ति शायद मानव कल्याण के लिए ही पैदा होते हैं और अपना काम करके चले जाते हैं । ऐसे दधीचि को मेरा प्रणाम।
Sarswati P Sati वेद भाई का जाना संघर्षों के एक इतिहास की पुस्तक का गुम हो जाना जैसा है। अफ़्सोश यह प्रांत उनके लायक न बन पाया
Ganesh Kothari जिसने भी राज्य की चिंता की ..वो ज्यादातर लोग आर्थिक रूप से तन्ग ही हैँ और ज़िसने कुछ भी नहीं किया वो मौज में …वाह रे उत्तराखंड की प्रबुद्ध और जागरुक जनता …
Prabhat Dhyani श्रद्वांजलि। उत्तराखण्ड़ राज्य निर्माण का सपना देखने वाले तथा उस सपने को हकीकत में साकार करने के लिये अपने सर्वस्व को झोंक देने वाले बड़े भाई वेद उनियाल जी का निधन उन तमाम साथियों के लिये बड़ी क्षति है जो समय-समय पर उनका मार्ग दर्शन प्राप्त करते थे।तथा उनसे प्रेरणा लेते थे। साथियों से निवेदन है कि वेद भाई उत्तराखण्ड़ राज्य निर्माण के बाद हुयी प्रदेश में मची लूट तथा राज्य अवधारणा को दरकिनार करने से बहुत दुःखी व मायूश थे। वे इस बात को लेकर भी साथियों से बहुत ज्यादा निराश थे कि प्रदेश में मजबूत क्षेत्रीय विकल्प नहीं बन पाया जिसके कारण राज्य विरोधी ताकतें मजबूत होती गयी। उनके निधन पर उनके प्रति हम सबकी सच्ची श्रद्वांजलि यही होगी कि हम उस विचार व संकल्प को पूरी प्रतिबद्वता के साथ साकार करें।
Rajeev Uniyal हार्दिक अश्रुपूर्ण नमन मैंने वेद भाई को नजदीक से देखा है सदैव ऊर्जा से ओतप्रोत रहते थे और एक सुनहरे भविष्य का सपना उनकी आंखों में रहता था दुखद है कि सरकार और समाज दोनों ही ने उन्हें उचित सम्मान नहीं दिया वैसे वेद भाई किसी सम्मान व मान की परवाह करते भी नहीं थे और सदैव संघर्षशील रहते थे
Dhirendra Kumar Uniyal भगवान वेद भाई कि आत्मा को शांति प्रदान करे ॥ सभी निकट जनो को धैर्य व साहस प्रदान करे ॥ सच्चे आंदोलनकर्ता किसी के मोहताज नहीं होते वो सबके दिलो मे होते हैं चाहे वो बाबा उत्तराखण्डी हों , चाहे बाबा बमराडा हों , चाहे श्रीदेव सुमन हों ॥ स्वार्थ वस सब श्रद्धाजंलि व माल्यापर्ण तक हीं सीमित रहते हैं जबकि हमे उनके आदर्शों पर चलकर उनके सपनों को साकार करना पडेगा जिसके लिये हम कटिबद्ध हैं ॥
Arya Surendra सच लिखा, अच्छा लिखा। पोस्ट में उठाया गया सवाल न तो सरकार और न ही किसी भी संगठन को कठघरे में खड़ा करता है। यह सामाजिक संवेदना का विषय है। इस स्तर पर पूरे समाज मे हो रहे क्षरण पर हमारा ध्यान नहीं जाता। ज्यादातर आंदोलन, संघर्ष और हड़ताले एक छोटे वर्ग के हित लाभ से जुड़े एजेंडे पर राजनीतिक उद्देश्य से होते हैं इसलिए उस एजेंडे/संघर्ष और उसके नेतृत्व से बड़े समाज का कोई भावात्मक लगाव नहीं रहता जो बाद में उसके व्यवहार में उदासीनता के रूप में दिखाई देता है।
Amitabh Srivastava He was always ready with answers for every question we asked him. The more difficult the problem the brighter his solution. But unfortunately he had no answers about his own life’s problems. RIP.
Geeta Ram Gaur इस महान संघर्षशील व्यक्तित्व को दिल से भावनात्मक श्रद्धांजलि ईश्वर इन्हें अपने श्री चरणों में स्थान दें , भाई जी आपके इस लेख ने उनसे जुडे लोगों को आईना दिखाने का काम किया है और आत्म अवलोकन करने पर मजबुर कर दिया है , साथ ही आपने सच्ची श्रदांजलि लेख के माध्यम से भी दी है_ॐ शांति -3
Dataram Chamoli भट्ट जी आपने सही कहा कि आंदोलनकारी ताकतें (अगर कहीं बची हैं तो) कुछ सबक लें। सवाल अकेले वेद उनियाल जी का नहीं है। इससे पहले स्वर्गीय बी. एस. परमार उत्तराखंडी के अंतिम दिन भी बहुत खराब रहे। इलाज और रोटी के लिए वे मोहताज रहे। अफसोस कि उक्रांद के काशी सिंह ऐरी, दिवाकर भट्ट, पुष्पेश त्रिपाठी जैसे साधन संपन्न नेताओं ने उनका हाल जानने की जरूरत तक नहीं समझी थी। खैर, हम आम लोग तो यही प्रार्थना कर सकते हैं कि ईश्वर वेद जी की आत्मा को शांति प्रदान करे।
Ashish Uniyal योगेश भाई आपका लेख लुंजपुंज होती संवेदनाओं को कितना झकझोर पाएंगा, यह तो नहीं बताया जा सकता लेकिन आपके दिखाए इस दर्पण में आंदोलनकारी ताकतों को अपना चेहरा अवश्य देखना चाहिये!