उन्मेष गुजराथी, दबंग दुनिया
मुंबई: अभिव्यक्ति के साधनों में से एक विज्ञापन को आधार बनाकर विभिन्न संस्थाएं, व्यक्ति अपने कार्यो को जनता तक पहुंचाने का काम करते हैं। समाचार पत्रों, चैनलों, सोशल मिडिया, रेडियो, मोबाइल के संदेशों के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति दी जा सकती है। विज्ञापन देने वाली कंपनियां किसे विज्ञापन दें, यह तो विज्ञापन देने वाली कंपनी के अधिकार क्षेत्र में रहता है, लेकिन कई बार यह देखने को मिलना है कि अच्छा सर्कुलेशन होने के बवाजूद विज्ञापन देने में दोहरी नीति अपनायी जाती है, जो लोग ऊंची पहुंच वाले हैं, वे अपना स्वार्थ सिद्ध करने में कोई गुरेज नहीं करते।
दरअसल समाचार पत्रों में विज्ञापन देने वाले विभाग भी अपनी जेब भरने की फिराक में रहते हैं। दरअसल, इसके पीछे भी दबाव तंत्र काम करता है। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में ख्यात समाचार पत्रों में विज्ञापन को लेकर जिस तरह की कमीशनखोरी जारी है, उससे यह सिद्ध होता है कि मिडिया क्षेत्र में भी दबावतंत्र हावी है और कुछ बड़े समाचार पत्रों को सभी नियमों को तोड़ते हुए भरपूर विज्ञापन दिए जाते हैं और कुछ समाचार पत्र ऐसे हैं, जिन्हें जानबूझ कर विज्ञापन से वंचित रखा जाता है।
राज्य सरकार के सूचना व जनसंपर्क महानिदेशालय तथा अन्य विभागों की ओर से वितरित किए जाने वाले सरकारी विज्ञापनों में बड़ी मात्रा पर स्वेच्छाधिकार के बूते पर सरकारी नियमों को ताक पर रखते हुए कुछ चुने हुए समाचार पत्रों को ही विज्ञापन दिया जाता है। इस संबध में एडिटर्स फोरम ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसकी सुनवाई मा. न्यायमूर्ति शंतनु केमकर और न्यायमूर्ति एम.एस. कर्णिक की खंडपीठ के सामने हुई। इस पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने गंभीर नाराजी जताई हैं। बॉम्बे हाईकोर्ट ने महानिदेशक (सूचना और जनसंपर्क), आयुक्त मुंबई महानगर पालिका, प्रबंध निदेशक और उपाध्यक्ष सिडको, मुख्याधिकारी एमआईडीसी समेत कुल 17 विभागों को नोटिस जारी करने के निर्देश दिए गए हैं।
छोटे अखबारों के साथ पक्षपात : मध्यम और छोटे समाचार पत्रों के विज्ञापन वितरित करते समय काफी पक्षपात किया जाता है। इस संदर्भ में एडिटर्स फोरम ने समय-समय पर सरकार और प्रशासन को इस सबंध में अवगत भी कराया गया था। लेकिन इस पर अभी तक किसी प्रकार को दखल सरकार ने नहीं ली, इस कारण एडिटर्स फोरम ने इस के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की। कुछ समाचार पत्र तो अपने समाचार पत्र के प्रकाशन की संख्या बहुत ज्यादा बताकर बड़े बड़े विज्ञापन प्रकाशित करके का षडयंत्र रचते हैं। छोड़े बड़े समाचार पत्रों का भेद बताकर लाखों रूपए कमाने का धंधा भी इस क्षेत्र में खूब फल फूल रहा है। विज्ञापन के रूप में चल रहे काले कारनामों पर अंकुश लगाना इसलिए मुश्किल है, क्योंकि उनके साथ बड़े समाचार पत्र का सहयोग प्राप्त है। जब पत्रकारिता को चौथा स्तंभ कहा जाता है तो फिर छोटे, मध्यम तथा बड़े का भेद क्यों किया जाता है।
सूची में नाम नहीं होने पर भी मिलता विज्ञापन : वरिष्ठ अधिवक्ता सतीश तलेकर ने बताया कि जब यह याचिका कोर्ट में प्रलंबित होने पर भी 18 फरवरी को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों नई मुंबई अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे का भूमि पूजन और मैग्नेटिक महाराष्ट्र यानि बदलते महाराष्ट्र और समृद्धि परिवर्तन की कहानियों पर राज्य सरकार की ओर से करोड़ रुपए के विज्ञापन विशेष समाचार पत्रों में दिया गया था। विशेष रूप से जिस समाचार पत्र का नाम सरकार के विज्ञापन सूची में नहीं हैं, उन्हें भी फुल पेज विज्ञापन सरकार की ओर से दिया गया है। यह जानकारी एडिटर्स फोरम ने शॉर्ट एफेडेवीट सी.एच.एस.डब्ल्यू.एस.टी.122/2018 दाखिल करते हुए, इस मामले को बॉम्बे हाईकोर्ट के सामने रखी गई है।
करोड़ों रुपए का विज्ञापन कैसे? : वरिष्ठ अधिवक्ता सतीश तलेकर के अनुसार विज्ञापन देने के दौरान मध्यम और छोटे अखबारों पर अन्याय हो रहा है। नियमों को ताक पर रखते हुए जिन विशेष अखबारों और जिनका नाम सरकारी विज्ञापन सूची में नहीं हैं, ऐसे समाचार पत्रों को करोडों रुपए के विज्ञापन कैसे दिया जाता है? साथ ही कहा है कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की फुल पेज फोटो की जरूरत न होने के बावजूद विज्ञापनों में फोटो लगाकर करोड़ों रुपए सरकार क्यों खर्च कर रही है? राजनीतिक पार्टियां सरकारी विज्ञापन के जरिए आगामी चुनाव प्रचार कर रही है, ऐसा सवाल भी बॉम्बे हाईकोर्ट के सामने उपस्थित किया है। जिस पर न्यायाधीश केमकर और न्या.कर्णिक इस मामले को गंभीर बताते हुए। 17 विभागों को फौरन नोटिस भेजने के निर्देश दिए हैं।
सरकार विभागों के अधिकारी और नेताओं के मिली भगत के चलते अपने हित में समाचार प्रकाशित करवाने के लिए अखबारों को करोडों रुपए का विज्ञापन दिया जाता है। बहुत से समाचार पत्रों का सरकारी विज्ञापन सूची में नाम भी नहीं हैं, बावजूद इसके मिली भगत के कारण लाखों रुपए के विज्ञापन दिए जा रहे हैं। इसके चलते छोटे समाचार पत्रों से साथ अन्याय हो रहा हैं। सरकार के इस रवैए से ऐसा लग रहा है कि सरकार लोकतंत्र का गला घोट रही है।
-सतीश तलेकर, वरिष्ठ अधिवक्ता
नोटिस पाने वाले 17 विभागों के नाम : 1) मुख्य सचिव 2) सचिव सामान्य प्रशासन (मावज) 3) सचिव राजस्व व वन 4) सचिव ग्रामीण विकास 5) सचिव समाज कल्याण 6) बस्ट प्रशासन 7) सचिव शहरी विकास 8) महानिदेशक सूचना और जनसंपर्क 9) आयुक्त समाज कल्याण 10) सभी निदेशक, उप निदेशक, जिला सूचना अधिकारी, (सूचना और जनसंपर्क) 11) आयुक्त ( राजस्व ) 12) आयुक्त मुंबई मनपा 13) आयुक्त नागपुर मनपा 14) आयुक्त बिक्री कर विभाग 15) जिला सूचना अधिकारी वर्धा 16) प्रबंध निदेशक तथा उपाध्यक्ष सिडको 17) मुख्य कार्यकारी अधिकारी एमआईडीसी इन विभागों को नोटिस जारी करने के आदेश बॉम्बे हाईकोर्ट ने दी है।
सरकार और राजनीतिक पार्टियों के हस्तक्षेप की वजह से विशेष समाचार पत्रों को विज्ञापन देने का काम किया जा रहा है। साथ ही नियमों का भी उल्लंघन करके लाखों रुपए के विज्ञापन अपने हितचिंतक समाचार पत्रों के दिए जा रहा हैं, जिससे लोकतंत्र खतरे में आ गया है। एडिटर्स फोरम ने कई बार राज्य सरकार और संबंधित विभागों को इस बारे में अवगत भी किया था, लेकिन सरकार ने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया, इसके चलते बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। बॉम्बे हाईकोर्ट ने 17 विभागों को फौरन नोटिस भेजने के निर्देश दिए हैं।
-सतीश तलेकर, वरिष्ठ अधिवक्ता
लेखक Unmesh Gujarathi दबंग दुनिया, मुंबई संस्करण के स्थानीय संपादक हैं. उनसे संपर्क 9322755098 के जरिए किया जा सकता है.