6 महीने बाद देशभर के 90% अखबार होंगे बंद, लाखों अखबार कर्मी होंगे बेरोजगार

डीएवीपी के खिलाफ कोर्ट जायेगा ‘अखबार बचाओ मंच’, पहले राजनीतिक दलों से मांगों फिर अखबारों से मांगना हिसाब! अस्तित्व बचाने की आखिरी कोशिश में ‘अखबार बचाओ मंच’ न्यायालय की शरण में जायेगा। मंच ये तर्क रखेगा कि जब राजनीतिक दल अपने चंदे का हिसाब और टैक्स नहीं देते तो फिर अखबारों पर एक-एक पैसे का …

सरकारी विज्ञापन वितरण प्रणाली पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने जताई नाराजी, 17 विभागों को नोटिस जारी

उन्मेष गुजराथी, दबंग दुनिया

मुंबई: अभिव्यक्ति के साधनों में से एक विज्ञापन को आधार बनाकर विभिन्न संस्थाएं, व्यक्ति अपने कार्यो को जनता तक पहुंचाने का काम करते हैं। समाचार पत्रों, चैनलों, सोशल मिडिया, रेडियो, मोबाइल के संदेशों के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति दी जा सकती है। विज्ञापन देने वाली कंपनियां किसे विज्ञापन दें, यह तो विज्ञापन देने वाली कंपनी के अधिकार क्षेत्र में रहता है, लेकिन कई बार यह देखने को मिलना है कि अच्छा सर्कुलेशन होने के बवाजूद विज्ञापन देने में दोहरी नीति अपनायी जाती है, जो लोग ऊंची पहुंच वाले हैं, वे अपना स्वार्थ सिद्ध करने में कोई गुरेज नहीं करते।

2019 के अंत तक बंद होंगे 90% छोटे और मध्यम अखबार बंद हो जाएंगे!

आज़ादी के 70 साल बाद अभी वर्तमान का यह समय छोटे और मध्यम अखबारो के लिए सबसे कठिन है। यदि सरकार के DAVP पॉलिसी को देखा जाय तो लघु समचार पत्रों को न्यूनतम १५ प्रतिशत रुपये के रूप में तथा मध्यम समाचार पत्रों को न्यूनतम ३५ प्रतिशत रुपये के रूप में विज्ञापन देने का निर्देश है। गौरतलब है कि भारत विविधताओं का देश है यहां विभिन्न भाषाएं हैं। ग्रामीण तथा कस्बाई इलाकों में भिन्न-भिन्न प्रकार के लोग रहते हैं। बड़े अखबार समूह की पहुंच वहां तक नहीं है। यदि विज्ञापन के आवंटन में भाषा और मूल्य वर्ग का ध्यान नहीं रखा गया तो निश्चित ही उस विज्ञापन की पहुंच विस्तृत तथा व्यापक नहीं होगी और विज्ञापन में वर्णित संदेश का प्रसार पूरे देश के समस्त क्षेत्रों तक नहीं हो पायेगा। पूर्व मंत्री द्वारा राज्यसभा में एक प्रश्र के उत्तर में नीति के पालन की बात कही गयी थी। परन्तु आज वह बयान झूठ साबित हो रहा है।

DAVP ने फोड़ा प्रकाशकों के ऊपर एक और बम, रिकवरी नोटिस जारी

इस मोदी सरकार ने बड़े अखबारो से मिलकर छोटे और मध्यम अखबारों को खत्म करने का कुचक्र चला दिया है. इससे एक तीर से दो शिकार होंगे. बड़े अखबार को विज्ञापन बढ़ेगा जिससे वो मोदी सरकार के प्रति ज्याद निष्ठावान होंगे और छोटे व मध्यम अखबार बंद होंगे जिसके कारण भाजपा को लेकर होने वाले खुलासे देखने पढ़ने को नहीं मिलेंगे. वर्तमान सरकार ने न्यूजप्रिंट पर GST लगा दिया है जिसके कारण अखबारों पर भारी बोझ पड़ा है. जिन प्रकाशकों ने अपना प्रसार कम किया है, उनसे वसूली क्यों नहीं किया जाय, इसका नोटिस DAVP ने जारी कर दिया है. DAVP के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है.

दैनिक जागरण और टाइम्स आफ इंडिया सहित 51 अखबारों को डीएवीपी ने किया सस्पेंड

पेड न्यूज़ समेत कई शिकायतों को लेकर की बड़ी कार्रवाई…  पेड न्यूज और अन्य कई शिकायतों के मामले में प्रेस काउंसिल आफ इंडिया के आदेश पर डीएवीपी ने देशभर के 51 समाचार पत्रों को दो महीने के लिए सस्पेंड करते हुए विज्ञापन पैनल से बाहर कर दिया है।

डीएवीपी ने कम प्रसार संख्या के आधार पर 187 अखबारों को नया विज्ञापन रेट जारी किया! (देखें लिस्ट)

नई विज्ञापन नीति के तहत डीएवीपी की तरफ से कहा गया था कि अखबार स्वेच्छा से अपनी असली प्रसार संख्या की घोषणा कर दें अन्यथा मौके पर चेकिंग के दौरान गड़बड़ी पाई गई तो अखबार के टाइटिल निरस्त कर दिए जाएंगे. इसके बाद सैकड़ों अखबारों ने अपनी झूठी प्रसार संख्या को खारिज करते हुए कम प्रसार संख्या के आंकड़े डीएवीपी को सौंप दिए.

डीएवीपी की नीतियों के कारण ‘तरुणमित्र’ अखबार में छंटनी, 20 से ज्यादा हुए बेरोजगार

लखनऊ से प्रकाशित हिन्दी दैनिक तरुणमित्र ने आर्थिक दबाव के कारण 20 से अधिक मीडिया कर्मियों को नमस्ते कह दिया है. डीएवीपी ने फाइलों में छपने वाले समाचार पत्रों को हटाने के चक्कर में उन अखबारों को भी पैनल से हटा​ दिया है, जहां सैकड़ों मीडियाकर्मियों की रोजी रोटी जुड़ी हुई थी.

मोदी की नई विज्ञापन नीति : छोटे अखबार वाले अगर चोर हैं तो बड़े वाले पूरे डकैत हैं!

Sanjay Sharma : केंद्र सरकार की प्रिंट मीडिया विज्ञापन नीति 2016 को लेकर लघु और मध्यम अखबारों के प्रकाशक लगातार लड़ाई लड़ रहे है। इस लड़ाई के तहत हम लोगों के द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट में कई याचिका दायर की जा चुकी है। मध्य प्रदेश में बीते वर्ष योजित एक याचिका के बाद DAVP के कुछ अधिकारी लघु और मध्यम अखबारों को फर्जी साबित करने और नीति को सही ठहराने के प्रयास में जुटे है।

मोदी सरकार ने गिराई गाज : 269556 पत्र-पत्रिकाओं के टाइटिल निरस्त, 804 अखबार डीएवीपी विज्ञापन सूची से बाहर

नरेंद्र मोदी सरकार की सख्ती की गाज छोटे अखबारों और पत्रिकाओं पर पड़ी है. इससे दूर दराज की आवाज उठाने वाली पत्र-पत्रिकाओं का संचालन ठप पड़ गया है, साथ ही इससे जुड़े लाखों लोग बेरोजगार भी हो गए हैं. ऐसे दौर में जब बड़े मीडिया घराने पूरी तरह कारपोरेट के चंगुल में आ चुके हैं और असल मुद्दों को दरकिनार कर नकली खबरों को हाईलाइट करने में लगे हैं, मोदी सरकार उन छोटे अखबारों और पत्रिकाओं की गर्दन दबोचने में लगी है जो अपने साहस के बल पर असली खबरों को प्रकाशित कर भंडाफोड़ किया करते थे. हालांकि दूसरा पक्ष यह है कि उन हजारों लोगों की अकल ठिकाने आ गई है जो अखबारों पत्रिकाओं की आड़ में सिर्फ और सिर्फ सरकारी विज्ञापन हासिल करने की जुगत में लगे रहते थे और उनका पत्रकारिता से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं हुआ करता था. वो अखबार पत्रिका के जरिए ब्लैकमेलिंग और उगाही के धंधे में लिप्त थे.

उर्दू अख़बारों का फर्ज़ीवाड़ा

डीएवीपी में अपने अख़बार को इम्पैनल कराने के लिए उर्दू अख़बार वाले तबियत से झूठ का सहारा लेते हैं

डीएवीपी में फर्ज़ीवाड़ा करने वालों पर शिकंजा कैसे जाने की ख़बर से बहुत खलबली है. काग़ज़ों पर चलने वाले अख़बारों और अपने समाचारपत्र का सर्कुलेशन दसों हज़ार में बताने वालों में बैचेनी है. अगर ईमानदारी से कार्रवाई हुई तो दर्जनों अख़बारी घपलेबाज़ों को रिकवरी के नाम पर अपने मकान बेचने पड़ जायेंगे. वेसे तो फर्ज़ीवाड़ा करके सरकारी विज्ञापन का पैसा हड़पने में सभी भाषाओँ के अख़बारों का हिस्सा है लेकिन इसमें उर्दू अख़बार किसी से काम नहीं हैं.