अजय कुमार, लखनऊ
आबकारी नीति में बदलाव के संकेत… उत्तर प्रदेश के दारू के धंधे में आगामी वित्तीय वर्ष 2018-19 से समाजवादी रंग उतार कर भगवा रंग चढ़ाने की तैयारी की जा रही है। इस बदलाव से किसको कितना फायदा होगा,यह तो समय ही बतायेगा,लेकिन जो तस्वीर उभर कर आ रही है,उससे यही लगता है कि एक बार फिर यूपी में फोंटी की कम्पनी का दबदबा बढ़ सकता है। सिंडिकेट राज पुनः लौटेगा? क्योंकि नई पॉलिसी कुछ ऐसी बनाई जा रही है जिससे आर्थिक रूप से कमजोर शराब कारोबारियों के पास अपना धंधा समेटने के अलावा कोई चारा बचेगा ही नहीं।
अगले वित्तीय वर्ष के लिये यूपी में आबकारी नीति में बदलाव के लिये जो ड्राफ्ट बनाया जा रहा है, उसकी सुगबुगाहट ने छोटे शराब कारोबारियों की नींद उड़ा दी है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश में अब देसी व अंग्रेजी शराब और बीयर व भांग की दुकानों के लाइसेंस का हर साल होने वाला नवीनीकरण नहीं होगा। इस बार फरवरी-मार्च में अंग्रेजी और बीयर की दुकानों का एक साथ तथा देसी शराब का अलग से तीन-चार दुकानों का एक ग्रुप बनाकर लाटरी ड्रा करवाया जाएगा। जिस भी कारोबारी के नाम ड्रा खुलेगा उसे दुकानों का समूह आवंटित कर दिया जाएगा। यही नहीं, शराब व बीयर की थोक आपूर्ति के लिए बड़ी शराब निर्मात्री कंपनियां प्रदेश में डिपो भी खोलेंगी। इस नई नीति के जरिये आबकारी मद से अगले वित्तीय वर्ष में 22 हजार करोड़ रुपये का राजस्व जुटाने का लक्ष्य है।
बहरहाल, नई आबकारी नीति से सरकार की नीयत पर सवाल उठनेक लगे हैं। एक तरफ तो बीजेपी सरकार सुशासन की बात कर रही है, दूसरी तरफ मनमाने तरीके से पूंजीपतियों/सिंडीकेट चलाने वालों को पनपने का मौका प्रदान कर रही है। याद होगा विपक्ष में रहते बीजेपी ने एक शराब करोबारी की कम्पनी को स्कूलों में पंजीरी बांटने का ठेका दिये जाने पर काफी हो-हल्ला मचाया था, लेकिन योगी सरकार ने भी पंजीरी का ठेका इसी शराब कारोबारी की कंपनी को देने में संकोच नहीं दिखाया।
इसी प्रकार अखिलेश सरकार से अलग दिखने का दावा करने वाली योगी सरकार ने पूर्ववती सरकार की तरह ही शराब के धंधे में फोंटी की कम्पनी को फायदा पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त करने में कोताही नहीं की। अखिलेश सरकार ने विशेष जोन बना कर फोंटी की शराब कम्पनियों को फायदा पहुंचाया था तो योगी सरकार 5 से 7 दुकानों की सामूहिक लॉटरी निकालने जा रही है, इससे छोटे शराब कारोबारी जो किसी तरह से एक दुकान लेकर अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं,वह किनारे होकर बेरोजगार हो जायेंगे। छोटे कारोबारियों की चिंता की बजाये आबकारी विभाग की नजर आवेदकों से आवेदन शुल्क के रूप में होने वाली मोटी कमाई पर लगी है। सामूहिक दुकानों की लॉटरी निकलेगी तो उससे तमाम आवेदकों में से किसी एक के हाथ दुकान आयेगी,बाकी का आवेदन शुल्क आबकारी विभाग के खाते में चला जायेगा।
आबकारी एसोसिएशन के कुछ पदाधिकारी तो साफ-साफ कहते हैं कि आबकारी मंत्री जय प्रताप सिंह से अधिक प्रमुख सचिव आबकारी की तूती बोल रही है।नीतिगत फैसलों से लेकर ट्रांसर्फर-पोस्टिंग तक में इस अधिकारी के बिना विभाग में पत्ता नहीं हिलता है। विभाग के कर्मचारियों की अराजकता का आलम यह है कि उनके उल्टे-सीधे कामों पर कोई लगाम लगाने वाला नहीं है। लखनऊ आबकारी विभाग में तैनात एक महिला अधिकारी पर तो घूस तक का आरोप और जांच में इस बात की पुष्टि भी हो चुकी है कि रिश्वत मांगी गई थी, परंतु जिलाधिकारी के कहने और बीजेपी के लखनऊ पश्चिम के विधायक सुरेश चन्द्र श्रीवास्तव की शिकायत के बाद भी इन महिला अधिकारी का निलंबन तो दूर तबादला तक नहीं हो पाया है।
उधर, प्रस्तावित आबकारी नीति की सुगबुगाहट को लेकर विवाद भी शुरू हो गए हैं। पिछले दिनों शराब लखनऊ शराब एसोसिएशन का एक प्रतिनिधि मण्डल लखनऊ में सांसद और गृह मंत्री राजनाथ सिंह से मिला था। इससे पूर्व यह फुटकर शराब कारोबारी आबकारी मंत्री से भी मिले थे,लेकिन इनको अभी तक आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिल पाया है। संगठन के महामंत्री कन्हैया लाल मौर्य ने बताया कि प्रस्तावित नीति उचित नहीं है। प्रदेश की नई आबकारी नीति पर काम पिछले कई महीनों से चल रहा है। ऐसे में ये तय माना जा रहा है कि आबकारी नीति बदलेगी और अब शराब व बीयर की दुकानों के लाइसेंस का नवीनीकरण नहीं होगा। 2002 से पहले ही तरह सिंडीकेट का दौर शुरू होगा,जिसे राजनाथ सिंह ने यूपी का सीएम रहते तोड़ा था,लेकिन लगता है कि योगी राज में यह वापस आ सकता है।
लेखक अजय कुमार लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.