Sanjay Verma-
सैनिकों सा श्रृंगार किये एंकर एंकरनियां दिवाली से पहले बमों की बारिश का रोमांचकारी नजारा दिखा रहे हैं । रोजाना डिनर के बाद रोमांच की यह खुराक हमारी बेमजा, ठहरी हुई जिंदगी में कुछ हलचल होने का अहसास कराती है , हम गुड फील करते हैं । इजराइल फिलिस्तीन युद्ध का बस इतना ही मतलब है हमारे लिए !
पर काश टेलीविजन जलते मांस की सड़ांध भी हमारी नाक तक पहुंचा सकता। काश किसी मासूम बच्चे का छोटा सा शरीर चिथड़ों में बदलने की भयावहता को हमें महसूस करा पाता !
टीवी न्यूज की बर्बादी और हमारी असंवेदनशीलता का स्यापा कभी और , फिलहाल इस बात पर विचार कीजिए इस युद्ध के मूल में क्या है ?
इस जंग की मूल वजह कुछ कहानियां हैं !
यह युद्ध संसाधनों के लिए नहीं हो रहा , कहानियों के लिए हो रहा है । कहानियां जो हमारे पूर्वजों ने सुनाई और हमने मानी।
यहूदियों ईसाइयों और मुसलमानों के पास जेरूसलम को लेकर अपनी अपनी धार्मिक कहानियां हैं । वे अपनी कहानी को बचाने के लिए अपने बच्चों की कुर्बानी दे रहे हैं।
युवाल नोहा हरारी कहते हैं- आधुनिक सभ्यता का जन्म कहानियों की कोख से हुआ है । सत्तर हजार साल पहले जेनेटिक म्यूटेशन की वजह से हमारे दिमाग में कुछ ऐसे बदलाव हुए कि हम काल्पनिक बातों पर यकीन करने लगे ।कहानी पर यकीन करने लगे । इन कहानियों ने इंसानों को बड़े समूह बनाने की सुविधा दी। समूह मतलब वे लोग जिनके इनके पास एक साझा कहानी हो। युवाल के अनुसार ईश्वर ,धर्म , राष्ट्र , पैसा , बैंक सब कहानियां ही तो हैं ,जो हमारे विश्वास पर चल रहे हैं ।
सभ्यता की राह में कुछ कहानियों ने इंसानों की सचमुच मदद की पर कोई कहानी इतनी बड़ी कैसे हो सकती है कि उसके लिए हम इस सुंदर दुनिया में फूल खिलाने के बजाय बारूद बोने लगें ।
इजराइल फिलिस्तीन युद्ध का हमारे लिए मतलब यही है कि कहानियों की विध्वंसक ताकत को समझिए । कहानी हमारे लिए होनी चाहिए हम उनके लिए नहीं ।
आपका तो पता नहीं लेकिन मैं कहानियों से छुटकारा पाने की लगातार कोशिश कर रहा हूं । मेरे लिए यही ज्ञान है यही मोक्ष !