श्रीगंगानगर। बेशक देश की सेनाएं हर पल युद्ध के लिये तैयार रहती हैं, लेकिन ये भी सच है कि युद्ध पल मेँ ही शुरू नहीं किया जा सकता। बहुत कुछ सोचना और करना पड़ता है। जन भावनाओं से सरकार चुनी तो जा सकती है। परंतु जनभावनाओं से युद्ध नहीं लड़ा जाता। ना ही जनभावना युद्ध आरंभ करवाने में सक्षम है। हां, राज अविवेकी, नासमझ और लाचार व्यक्तियों के हाथ में हो तो दोनों बातें संभव हैं। युद्ध पल में शुरू भी हो सकता है और जनभावनाएं को देख सरकार भी युद्ध शुरू कर दे तो कोई बड़ी बात नहीं। कल रात को एक बड़े टीवी चैनल पर ‘राजस्थान गंगानगर सीमा पर हलचल’ की बात ने ऐसी हलचल मचाई कि फेसबुक और व्हाट्सएप पर चर्चा होने लगी। स्वाभाविक है। क्योंकि हम बार्डर पर रहते हैं। हलचल हमें भी प्रभावित करेगी। परंतु कुछ हो तो! केवल खबर बनाने के लिये सनसनी फैलाना ऐसे हालात में ठीक नहीं है।
असल में बड़े चैनल के पास इस बार्डर की ग्राउंड रिपोर्ट तो होती नहीं। हम जैसे ये काम करते हैं। अब ये मेरी समझ और विवेक पर निर्भर है कि मैंने लोगों में युद्ध का भय पैदा करना है या संतुलित जानकारी जन जन को देनी है। सीमा पर हलचल, बार्डर पर अलर्ट, सामान्य बात है। कौन-सा ऐसा क्षण है, जब बार्डर पर बीएसएफ अलर्ट नहीं रहती। चौकस नहीं होती। उसका तो काम ही यही है। बीएसएफ अलर्ट है, चौकस है, तभी तो सुरक्षित हैं सब। गंगानगर से दूर रहने वाले गंगानगर के परिवारों ने जब यह खबर देखी, सुनी होगी तब उनके मन में क्या हुआ होगा, इसकी कल्पना करके देखो। वह बेचैन हो जाता है। उसे अपने परिजनों की फिक्र होने लगती है। तमाम काम छोड़ व्यक्ति इसी सोच मेँ पड़ जाता है कि गंगानगर में क्या हो रहा होगा?
बेशक, बच्चे युद्ध के नाम से रोमांच महसूस करते होंगे। उनको युद्ध की बातों मेँ रस भी मिलता होगा, किन्तु जिसे 1971 का युद्ध याद है, वह जानता है कि युद्ध में क्या होता है! युद्ध केवल सेना नहीं लड़ती, पूरा देश भी साथ लड़ता है। एक एक व्यक्ति युद्ध में शामिल होता है।
सेना बार्डर पर युद्ध लड़ती है और व्यक्ति अपने अंदर। सामान्य काम काज होता दिखता जरूर है, मगर होता नहीं। निश्चित रूप से दशकों मेँ बहुत कुछ बदला है। फिर भी ये दिल है तो हिन्दुस्तानी ही ना। अपने देश के लिये इसने धड़कना बंद नहीं किया है। थोड़ा बहुत ही सही उसके लिये धड़कता आज भी है। इसलिये जैसे ही सीमा पर हलचल, अलर्ट जैसे समाचार पढ़ने को मिलते हैं, सुनाई देते हैं, उसके अंदर भी हलचल शुरू हो जाती है। खबर पढ़ और सुन कर उसमें सत्यता की तलाश करता है। बेचैन हो जाता है। कोई माने या ना माने, लेकिन ये सच है कि कोई भी सरकार देश की जनता को बता कर युद्ध शुरू नहीं करती। ये त्रेता या द्वापर युग नहीं है जब योद्धा दुश्मन को सावधान कर वार किया करते थे।
अब तो घात और प्रतिघात है। ना तो दुश्मन देश ये कहेगा कि मोदी जी, सावधान, हम परमाणु बम डालने वाले हैं। और ना ही मोदी जी ऐसा कुछ बताने वाले। युद्ध की जानकारी तो युद्ध शुरू होने के बाद ही होती है। हां, कोई पीएम जब ऐसी परिस्थिति मेँ अचानक जनता को संदेश देते हुए इशारों इशारों मेँ कुछ कह दे तो बात अलग है। वरना युद्ध की सूचना ना तो मीडिया के पास होती है, ना आम जन के पास। कोई ऐसा सूत्र नहीं होता जो ये बता सके कि इस दिन, इतने बजे युद्ध शुरू हो जाएगा। सब अंदाज हैं। कयास है। मीडिया का अपना अनुभव और नजरिया है। सभी को भी ऐसे मौके पर बहुत अधिक विवेक का इस्तेमाल करना होता है। युद्ध से पहले युद्ध लड़ना कोई समझदारी नहीं। युद्ध के लिये खुद को मानसिक रूप से तैयार करना अलग बात है और बिना युद्ध शुरू हुए युद्ध लड़ना दूसरी बात। अफवाह युद्ध से पहले का युद्ध है। दो लाइन पढ़ो-
ख्वाब में आने का वादा था
रात नींद दगा दे गई।
लेखक गोविंद गोयल भारत पाक सीमा पर स्थित जिला श्रीगंगानगर के वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.
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