ज़ी न्यूज़ के अंदरुनी हालात की एक-एक जानकारी और अंदर की स्थिति की डिटेल नीचे है.
- सवाल – क्या ज़ी न्यूज़ में कोरोना का पहला केस 15 मई को सामने आया, जैसा ज़ी मीडिया ने दावा किया है और सुधीर चौधरी अपने शो डीएनए में हर दिन ये जानकारी दे रहे हैं ?
जवाब – नहीं ये सफेद झूठ है। इससे दो हफ्ते पहले 29 अप्रैल को एक कैमरामैन ब्रजेश चौहान (( बदला हुआ नाम)) कोरोना पॉजिटीव पाए गए थे। इससे हड़कंप मच गया था। ब्रजेश चौहान ( बदला हुआ नाम)) पॉजिटीव पाए जाने से पहले के दो-तीन दिन के अँदर न्यूज़रूम और कैमरा डिपार्टमेंट में गए थे। कई लोग से मिले थे। उनके साथ ही ज़ी न्यूज़ के लिए कैब चलानेवाले एक ड्राइवर को भी कोरोना पॉजिटीव पाया गया था। इस पर एचआर के ग्रुप में स्टाफ ने आशंकाएं जताईं और स्थिति स्पष्ट करने की मांग की थी। तब एचआर ने कहा था कि संक्रमित कैमरामैन फील्ड में ही रहता था वो दफ्तर नहीं आया था। ये सच नहीं था। कैब ड्राइवर के संक्रमित होने की बात को एचआर ने साफ तौर पर नकार दिया था। ये भी सच पर पर्दा डालने वाला कदम था।
- सवाल – ज़ी मीडिया ने अपनी आधिकारिक विज्ञप्ति में दावा किया है कि ‘early diagnosis and pro-active intervention’ के उसके एप्रोच की वजह से 28 पॉजिटीव स्टाफ की पहचान हुई ?
जवाब – ये दावा पूरी तरह गलत है। जब 15 मई से दो हफ्ते पहले एक कैमरामैन और एक कैब ड्राइवर को कोरोना पॉजिटीव पाया गया..तो उनके डायरेक्ट कॉन्टैक्ट में आए सभी लोगों की पहचान नहीं कराई गई। एहतियाती उपाय करते हुए उन सबकी टेस्टिंग होनी चाहिए थी। जब ज़ी मीडिया के पत्रकारों ने ज़ी के फैसिलिटी डिपार्टमेंट (कैब का ऑपरेशन करने वाला विभाग ) से कैब ड्राइवर के बारे में पूछा…तो बताया गया कि संक्रमित ड्राइवर प्राइवेट कैब का स्टाफ था…जिसकी सेवा अब नहीं ली जा रही है..उसे घर में ही रहने को कहा गया है। अब सवाल है कि जब वो कई दिन से ज़ी न्यूज़ की कैब चला रहा था तो क्या उसके डायरेक्ट संपर्क में आए कर्मचारियों की पहचान की गई ? नहीं, ऐसा नहीं हुआ । क्या इसकी वजह से ज़ी न्यूज़ की पूरी बिल्डिंग में कोरोना नहीं फैला होगा ? फिर ज़िम्मेदार कौन है ?
- सवाल – ज़ी ग्रुप ने 15 मई को जिस पहले पॉजिटीव केस के सामने आने की बात कही, उसका पूरा सच क्या है ?
जवाब – 15 मई की तारीख गलत है। पहली कोरोना पॉजिटीव केस 14 मई को ही सामने आ गया था। इसी दिन ज़ी न्यूज़ के व्हाट्सएप ग्रुप में सुरेश मीनू (बदला हुआ नाम ) ने ये लिखा कि मैं अनऑफिशियली कोरोना पॉजिटीव हूं। अनऑफिशियली इसलिए क्योंकि सुरेश ( बदला हुआ नाम ) ने खुद अपने स्तर पर आरएमएल में जांच करवाई थी और उन्हें रिपोर्ट ऑफिशियली भेजने से पहले फोन कर अस्पताल ने उनके कोविड पॉजिटीव होने की बात बताई थी। सुरेश ने इसलिए खुद जांच कराई क्योंकि लगातार नाइट और सुबह की शिफ्ट के कुछ कर्मचारियों की तबीयत खऱाब होने की बात को आउटपुट के वरिष्ठ लोग और प्रबंधन नजरअंदाज कर रहा था । इसलिए सुरेश ने सबको बचाने के लिए खुद पहल की। ना कि जी प्रबंधन ने। जैसा कि वो pro-active intervention के दावे कर रहा है। यहां ये गौर करने वाली बात है कि अगर सुरेश मीनू ने ये जांच खुद नहीं कराई होती…तो जी न्यूज में कोरोना विस्फोट की स्थिति और भी भयावह हो सकती थी।
- सवाल – क्या कोरोना संकट आने पर ज़ी न्यूज़ के HR डिपार्टमेंट के व्हाट्स ग्रुप में पत्रकारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी छीन ली गई ?
जवाब – हां, ऐसा ही हुआ । जब 14 मई को एक प्रोड्यूसर कोरोना पॉजिटीव पाए गए। तो ज़ी न्यूज़ के कर्मचारियों ने व्हाट्सएप ग्रुप पर कई लोगों के सर्दी, जुकाम और बुखार से पीड़ित होने की बात जाहिर करनी शुरू की। सबका टेस्ट कराए जाने की मांग शुरू की लेकिन ज़ी प्रबंधन, एचआर डिपार्टमेंट- एडमिन और एडिटर इन चीफ सुधीर चौधरी की तरफ से कोई आश्वासन और जवाब नहीं दिया गया। जब टेस्ट को लेकर आनाकानी और बेचैनी बढ़ी तो कर्मचारियों ने गुस्से का इजहार शुरू किया। सवाल पूछने लगे…इसके बाद…एचआर के ग्रुप की सेटिंग बदल दी गई। लिखकर आ गया कि सिर्फ एडमिन ही मैसेज कर सकता है ।
- सवाल – क्या ज़ी न्यूज़ का दफ्तर केस सामने आते ही सील कर दिया गया?
जवाब – नहीं, बिल्कुल नहीं। ज़ी न्यूज़ के दफ्तर के सिर्फ न्यूज़रूम वाले फ्लोर को सील किया गया। वो भी पॉजिटीव केस मिलने के बाद 14 मई को दिन भर उसी हालात में वहां काम करवाया जाता रहा । जी न्यूज़ का फैसिलिटी डिपार्टमेंट ग्राउंड फ्लोर पर है। माइनस टू में दो रीजनल चैनल हैं। ये सील नहीं हुआ। यहां तकरीबन 100 लोग काम करते हैं। थर्ड फ्लोर पर तीन से चार रीजनल चैनल हैं यहां 200 लोग काम करते हैं। ये सील नहीं हुआ। पांचवें फ्लोर पर ज़ी न्यूज़ एचआर-एडमिन का दफ्तर है, यहां से दो चैनल चलते हैं 150 लोग काम करते हैं, ये सील नहीं किया गया। कैमरा डिपार्टमेंट सील नहीं हुआ। जबकि इन सारे फ्लोर के स्टाफ एक ही कैंटीन, एक ही लिफ्ट और कॉमन कैब को यूज करते हैं। सफाई कर्मी, गार्ड, आईटी और दूसरे विभाग के चौथे फ्लोर के लोग बाकी दूसरी मंजिल पर भी जाया करते थे। इसलिए खतरा यहां भी था।
सबसे हैरान करने वाला रुख नोएडा अथॉरिटी का है। जिसने कोरोना का आउटब्रेक होने पर पूरी बिल्डिंग को 48 घंटे के लिए सील कर सैनिटाइज करने के नियम का पालन नहीं किया है। सिर्फ एक फ्लोर को सैनेटाइज करके बात खत्म कर दी गई। ऐसी छूट सिर्फ जी न्यूज को क्यों मिली, ये समझ से बाहर है। ये एहतियात नहीं बरतने से यहां काम करने वाले पत्रकारों के लिए खतरा बढ़ना तय है।
- सवाल – क्या ज़ी न्यूज़ ने पॉजिटीव केस वाले लोगों के सारे डायरेक्ट संपर्क वाले स्टाफ की जांच करवा ली ?
जवाब – बिल्कुल नहीं। एक केस पॉजिटीव आने के बाद ज़ी मीडिया ने अपने नोएडा दफ्तर के 51 कर्मचारियों की जांच कराने के दावे किए लेकिन इस पर कुछ नहीं कहा कि जब 51 में से 28 पॉजिटीव स्टाफ पॉजिटीव आ गए तो इनके संपर्क में आए तमाम लोगों की जांच कराई गई या नहीं ? सच है कि नहीं कराई गई। जिस मॉर्निंग और इवनिंग शिफ्ट के लोगों की जांच में इतने भयानक नतीजे आए, उन दोनों शिफ्ट के संपर्क में जी न्यूज़ की इवनिंग शिफ्ट के पत्रकार आते थे लेकिन उनमें से ज्यादातर की जांच नहीं हुई है। 51 लोगों को आइसोलेशन और क्वैरेंटीन में जाने के बाद इवनिंग शिफ्ट वाले लोग ही ज़ी न्यूज़ चला रहे हैं, इसकी पूरी आशंका है कि इनमें से कई को संक्रमण हुआ होगा लेकिन इऩकी फौरन जांच कराने से आनाकानी की गई। ज़ी मीडिया प्रबंधन अब जांच के नाम से ही भय खाने लगा है। उसे डर है कि अगर सबकी जांच हुई और नतीजे 51 लोगों की जांच जैसे आए तो वो क्या करेगा? चैनल कैसे चलाएगा ?
- सवाल – कहा जा रहा है कि सुधीर चौधरी ने टीआरपी गिरने पर वर्क फ्रॉम होम रद्द कर सभी स्टाफ को पहले की तरह ऑफिस आने को कहा था ?
जवाब – हां, ये सच है। सुधीर चौधरी के दबाव के बाद ही जी न्यूज के डेस्क पर सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाई गई ।टीआरपी गिरने पर चौधरी ने अपने मातहतों से कहा था कि मुझे 100 प्रतिशत स्टाफ दफ्तर में चाहिए। कोई वर्क फ्रॉम होम नहीं करेगा। इसकी वजह से पूरा न्यूज़रूम खचाखच भरा रहने लगा और सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों को ताक पर रख दिया गया। यहां तक कि 14 मई को जिस दिन सुरेश मीनू ( बदला हुआ नाम ) ने खुद को कोविड पॉजिटीव होने की बात ग्रुप में शेयर की। उस दिन भी डेली मीटिंग का सबसे बड़ा मुद्दा टीआरपी ही रहा। उस दिन गुरुवार होने की वजह से टीआरपी आई थी ।
- सवाल – ज़ी न्यूज़ के मौजूदा समय में काम कर रहे स्टाफ के साथ क्या सलूक हो रहा है ?
जवाब – गैर पेशेवर व्यवहार हो रहा है । जी न्यूज के कई स्टाफ ने मेल और व्हाट्स एप के जरिए एचएआर…और प्रबंधन तक अपनी बात पहुंचाई कि अब बाकी बचे सभी स्टाफ का टेस्ट हो। इसके बाद पहले से सावधान एचआर ने कहा कि जिनमें लक्षण होंगे, पहले उनकी ही जांच कराई जाएगी। ये भी कहा गया कि नोएडा अथॉरिटी के डॉक्टर जैसा कहेंगे अब उसके मुताबिक जांच होगी। ये बात तब कही गई है जबकि जी न्यूज में पॉजिटीव पाए गए ज्यादार पत्रकारों में कोरोना जैसे लक्षण नहीं थे। इससे समझा जा सकता है कि ज़ी न्यूज़ का रवैया कितना पेशेवर है।
- सवाल – ज़ी न्यूज़ प्रबंधन ने कोरोना से बचाव को लेकर अब भी एहतियात को लेकर गंभीरता दिखाई है या नहीं ?
जवाब – नहीं। जी न्यूज़ की जिस बिल्डिंग को कथित तौर पर सील किया गया…उस बिल्डिंग में काम करने वाले कम से कम 100 से 150 स्टाफ और wion की जिस बिल्डिंग में जी न्यूज को अस्थायी तौर पर शिफ्ट किया गया है, उस बिल्डिंग के साथ ही जी न्यूज़ के wion वाले नए ऑफिस से काम कर रहे मौजूदा स्टाफ कॉमन कैब शेयर कर रहे हैं। कैब में भी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं होता। एक कार में 4 से 5 लोगों को अब भी बैठने पर मजबूर किया जा रहा है। दिल्ली एनसीआर के कई बॉर्डर पर पुलिस जी न्यूज की गाड़ी रोक कर स्टाफ को उतार चुकी है। कई बार ऐसा होने पर भी जी न्यूज का रवैया नहीं बदला।
- 10. सवाल – ज़ी न्यूज़ के पत्रकार क्या zeewarriors सम्मान से ख़ुश हैं, कई कोरोना पॉजिटीव की तस्वीर और उनकी पूरी जानकारी और उनकी क्लिप तक डीएनए में चलाई गई ।
जवाब – पहले से ही परेशान हाल पत्रकार क्या करते। आदेश एडिटर इऩ चीफ का था। इनके सबके साथ खिलौने की तरह खेला गया। पहले सोशल डिस्टेंसिंग खत्म कर खतरे में डाला गया। फिर जांच कराने पर खामोशी साधी गई। इसके बाद पॉजिटीव आने पर ज्यादातर को उनके हाल पर छोड़ दिया गया। ये कहकर कि तुम warriors हो। उनके बाकी साथी जो जी न्यूज को बचाने की जंग लड़ रहे हैं, उन्हें आनाकानी करने पर अपनी नौकरी बचाने की धमकियां दी जा रही हैं।
जी न्यूज में कार्यरत एक वरिष्ठ पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.
इसे भी पढ़ें-