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सियासत

पगड़िया बाबा… खपड़िया बाबा… ऐसे हजारों बाबा अपना खेल रच रहे, खबर आपको केवल रामपाल की है!

Shailesh Bharatwasi : लगभग 15 साल पुरानी बात है। मेरे गाँव, डोमा में एक बाबा आए। पगड़िया बाबा। सर पर पगड़ी बाँधते थे, इसलिए अपनी ख्याति इसी नाम से चाहते थे। बाबा हमारे गाँव में अखंड रामायण पाठ और जग (यानी यज्ञ) करवाने आए थे। उन्हें गाँव के लोगों ने कभी आमंत्रित नहीं किया था, वे ख़ुद ही अपना डेरा जमा लिए थे। हमारे तरफ़ के गाँवों के अधिकाधिक सार्वजनिक आयोजन गाँव के एकमात्र सरकारी प्राथमिक विद्यालय में ही होते हैं।

Shailesh Bharatwasi : लगभग 15 साल पुरानी बात है। मेरे गाँव, डोमा में एक बाबा आए। पगड़िया बाबा। सर पर पगड़ी बाँधते थे, इसलिए अपनी ख्याति इसी नाम से चाहते थे। बाबा हमारे गाँव में अखंड रामायण पाठ और जग (यानी यज्ञ) करवाने आए थे। उन्हें गाँव के लोगों ने कभी आमंत्रित नहीं किया था, वे ख़ुद ही अपना डेरा जमा लिए थे। हमारे तरफ़ के गाँवों के अधिकाधिक सार्वजनिक आयोजन गाँव के एकमात्र सरकारी प्राथमिक विद्यालय में ही होते हैं।

बाबा ने भी वहीं शरण ली थी। बाबा केवल फल, सेंधा नमक, सिंघाड़े का हलवा खाते थे और दूध पीते थे। दूध केवल सफेद गाय का पीते थे। भैंस या गैरसफेद गाय का दूध वे नहीं पीते थे। बाबा ने ही तय किया था कि उनके भोजन की ज़िम्मेदारी गाँव के प्रत्येक परिवार की होगी। बारी-बारी से एक-एक दिन के भोजन की व्यवस्था अलग-अलग परिवार करेगा। बाबा साष्टांग प्रणाम करवाना पसंद करते थे। जो साष्टांग प्रणाम नहीं करता था, उसे वे डाँट देते थे और भगवान का डर दिखाते थे। ब्राह्मण जाति के लोगों के अलावा अन्य किसी भी जाति को उनका चरण छूकर प्रणाम करने की अनुमति नहीं थी। ग़ैरब्राह्मण लोगों को वे छूत मानते थे। उन्होंने गाँव में लगभग 4 महीने का समय बिताया था और गाँव वालों को अखंड रामायण पाठ और जग करवाने पर मज़बूर कर दिया था। हमारे गाँव के अलावा आसपास के गाँवों के लोगों के ऊपर भी चंदे का भार आया था। बाबा के पास हर कोई अपना कष्ट लेकर आने लगा था। बाबा सबका कष्ट सुनते थे और उम्मीद बँधाते थे कि वे सब ठीक कर देंगे।

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मैं उस समय रेणुकूट में रहकर इंटरमीडिएट की पढ़ाई कर रहा था। मेरी तरह और भी बहुत से ऐसे लोग थे जो गाँव से बाहर रहकर अपनी-अपनी पढ़ाई कर रहे थे। Pradeep Verma और Kaushal Kumar उस समय इलाहाबाद में रह रहे थे। बाबा की एक ख़ास बात यह भी थी कि उन्होंने अपने कुछ विश्वसनीय भक्त बना लिए थे, जिनके माध्यम से वो गाँव के हर आदमी, हर परिवार की पूरी टोह ले लेते थे। उन्हें पता था कि किसकी औलाद गाँव से बाहर रहकर पढ़ाई कर रही है, कौन नौकरी कर रहा है। मेरी माँ से उन्होंने कहा था कि पढ़ने-लिखने से कुछ नहीं होता, अपने बेटे से कहो कि वो हमारा आशीर्वाद ले। उनके ये कहने के 15 दिनों तक भी मैं गाँव नहीं पहुँचा तो उन्होंने माँ से कई बार कहा कि आपका बेटा घमंडी है। मेरे घमंड की पुष्टि तब हो गई थी, जब मैं गाँव गया था, उनसे मिला था, उन्हें हाथ जोड़कर प्रणाम किया था, लेकिन साष्टांग नहीं हुआ था।

Anjani चूँकि ब्राह्मण हैं तो वे उनके क़रीब जा सकते थे। एक बार अंजनी ने उनसे पूछा था कि बाबा आपने शादी की है या नहीं? उन्होंने कहा था- बच्चा, हम इन झमेलों में नहीं फँसे। अपने प्रवचन में भी उन्होंने खुद को गैरशादीशुदा और मोह-माया से दूर बताया। लेकिन इनके प्रवास के आख़िरी दिनों में यह भेद खुला था कि बाबा शादीशुदा हैं। राजपूत जाति के हैं और कई लड़कियों के बाप हैं। उस बाबा से जुड़े तमाम ग्रामीणों के संस्मरण को जमा करें तो पगड़िया बाबा-पुराण बाबा रामपाल के कारनामों से कम न होगा। थोड़े समय बाद ही हमारे पड़ोस के गाँव, मिश्री में खपड़िया बाबा आ धमके थे और जग कराकर ही दम लिया था। खपड़िया बाबा के बारे में बस इतना बता देना काफ़ी होगा कि मिश्री में जग कराने के लिए बाबा ने जितना धन जुटाया था, जग कराने के बाद बचे पैसों से खपड़िया बाबा ने एक पिक-अप (छोटा भारवाहक वाहन) खरीदा, और उसे केतार से कोन के बीच चलाने लगे। खुद पिकअप के ड्राइवर भी हो गए और खलासी भी। अभी भी इस तरह के हज़ारों बाबा अपना खेल रच रहे हैं, ख़बर तो आपको केवल रामपाल की है।

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हिंदयुग्म प्रकाशन के मुख्य कार्यकारी शैलेष भारतवासी के फेसबुक वॉल से.

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