Deepali Das : एम जे अकबर को पार्टी से ससपेंड न करने का कारण पूछने पर मनोज तिवारी अपने स्कूपव्हूप के इंटरव्यू में कहते हैं कि “अब चार पाँच साल के बाद आकर कोई भी इल्जाम लगा देता है.. महिला सुरक्षा के कानून का मैक्सिमम दुरूपयोग ही हो रहा है.”
उन्हें यह बताने पर कि अपराधी का नाम देर से लेने का कारण ट्रॉमा भी होता है. तो वह कहते हैं कि “हां होता है लेकिन ऐसा भी क्या है कि पाँच छः साल लग जाते हैं.. जब घटना होती है तभी चार, पाँच महीने के बाद कह देना चाहिए”.
इसके साथ ही वह दलितों के उत्पीड़न को भी कास्ट वार में लपेट कर निकल जाने की कोशिश करते हैं.
अच्छी बात यह है कि अब वह दिन गए जब नेता सामाजिक मापदंडों के अनुसार अयोग्य हुआ करते थे. अब के नेता साम्प्रदायिकता के साथ मिसोजिनी और जातिवाद के गुण भी पूरे रखते हैं, कम्प्लीट पैकेज.
इंटरव्यू भले वायरल हो जाए लेकिन ऐसे बयान अब कतई वायरल नहीं होंगे. जब छोटे से लेकर बड़ा नेता, अभिनेता, आम लोग एक जैसी बातें रखने लगते हैं तब ये बातें सिर्फ हँस कर टाल दी जाती है. एक बलात्कारी को सज़ा करवाने के लिए यह देश अब तभी विचलित होता है जब पीड़िता अपनी या अपने पिता, चाचा वगैरह की जान गवाती है. जब दहेज के लिए एक औरत का जला हुआ शरीर अख़बारों में आता है..जब ससुराल का उत्पीड़न कैमरे में कैद हो जाता है.. जब एसिड से झुलसा चेहरा न्यूज में दिखाई पड़ता है या खून से लथपथ बच्ची का शव टाइमलाइन पर फैल जाता है.
बाकी हां, मनोज तिवारी बहुत क्यूट हैं. सीधे साधे. निडर भी हैं क्योंकि जब उनसे कहा जाता है कि ‘आप ग़लत कह रहे हो, मीम बन जाएंगे’ वह तब भी नहीं डरते. औरतों के प्रति पूरी ईमानदारी से जहर उगलते हैं.
ऐसे मस्त बात यह भी है कि औरतों के प्रति ग़लत बयान देने पर मीम का डर दिखाया जाता है. यौन उत्पीड़न के प्रति हमारी क्या सेंसिटिविटी है, यह इस स्टेटमेंट से पता किया जा सकता है.
पत्रकार दीपाली दास की एफबी वॉल से.