मनमीत-
..पत्नी है या पमेरियन डॉगी … पिछले कई दिनों से किसी महिला एसडीएम के पीछे दुनिया पड़ी हुई है कि उसके मासूम पति ने उसे पढ़ाया लिखाया और इस काबिल बनाया की उसने पति को ही छोड़ दिया। मामले को सुनकर ऐसा लगा गोया पत्नी न हो कोई पमेरियन पालतू हो कि मालिक ने पेडागिरी खिलाया, घुमाया और अब डॉगी चैन तोड़कर भाग गई । या पति इतना इंटेलिजेंट था कि खुद पीसीएस बन सकता था, लेकिन दिक्कत ये की पीसीएस वालों ने शर्त रख दी कि तुम्हारे घर से एक ही बन पाएगा और अब तय कर लो कि दोनों में से कौन बनेगा। लिहाजा, पति ने कम बुद्धि की पत्नी के लिए बलिदान कर दिया।
इस पर एक सच्ची कहानी सुनो। साठ के दशक में जब भारत चीन युद्ध के बाद कई सैन्य अधिकारी इंडियन इमरजेंसी सर्विस के तहत भारतीय सिविल सर्विस में चुने गए तो उनमें एक टिहरी जिले के प्रताप नगर के भी थे। नाम अभी याद नही आ रहा। उनका विवाह तब हो गया था जब वो सेना में भी नहीं थे। पत्नी गांव की अनपढ़ महिला थी। बावजूद इसके उन्होंने अपने पति में जज्बा भरा की वो सेना में अधिकारी बने। उधर पति ने कुर्सी मेज़ लगा कर तैयारी शुरू की और इधर पत्नी ने बच्चों और घर की आजीविका की जिम्मेदारी उठायी। पत्नी की कमरतोड़ मेहनत के कारण पति सभी जिम्मेदारी से मुक्त हुआ और वो सेना में अधिकारी बना। अनपढ़ पत्नी की मेहनत रंग लाई, लेकिन अब पति को दूर सैन्य शिविरों में रहना था।
लगभग सात साल नौकरी के बाद उसे अनिवार्य सेवानिवृत्त दी जाने लगी तो पत्नी ने ही उसे इमरजेंसी सर्विस के तहत यूपीएससी एग्जाम में बैठने की सलाह दी। एक बार फिर से कुर्सी मेज़ लगा कर तैयारी में जुट गया और घर की तमाम जिम्मेदारी पत्नी के सिर पड़ी। खैर, कुछ सालों बाद पति का यूपीएससी का एग्जाम पास हो गया और वो आईएएस बना।
लेकिन, लेकिन फिर क्या ? अब इधर वो कोट पेंट और टाई पहनकर ब्रेकफास्ट करने लगा। उधर उसकी पत्नी उसे अनपढ़ लगने लगी। वो अपनी पत्नी को देखकर इतना अवसाद में आ गया कि उनसे आत्महत्या ही कर ली। पुराने लोग इस किस्से पर इत्तेफाक रखेंगे।
खैर.. पिछले दिनों एक किताब पढ़ रहा था आदिम समाज की महिलाओं पर। लेखक है मानव वैज्ञानिक डा युलियान ब्रोमलेय और लेखक डा रोमान पोदोल्नी। वो अपनी किताब ‘मानव और संस्कति’ के पेज 195 के दूसरे पैराग्राफ में लिखते हैं कि इस बात के वैज्ञानिक आधार है कि महिलायें कई काम पुरूषों से अधिक अच्छी तरह कर सकती है। एक तो वो काम, जिनके लिये विशेष तौर पर सटीक गतियों की और एकाग्रचित बने रहने की जरूरत होती है। दूसरा, जैसे कि शोधों से पता चलता है कि, ऐसे कई जटिल काम भी, जिन्हें करने के लिये एक साथ बहुत सी बातों को ध्यान में रखना बहुत जरूरी होता है। यह दूसरी बात सामान्यतः स्थितियों पर नहीं, बल्कि केवल उन स्त्रियों पर लागू होती है, जो गृहस्थी चलाने जैसे जटिल काम करती है। सो, हो सकता है कि बात किन्हीं जन्मजात योग्याताओं की न होकर व्यवहार द्वारा उनके विकास की ही हो। घर गृहस्थी में ही तो आदमी को गंभीर बातों के अलावा हजारों छोटी छोटी बातें भी ध्यान में रखनी पडती है।
मानव वैज्ञानिक महिलाओं को ही मानव संस्कृति की प्रेरणा मानते है। आदिम समाज के श्रम विभाजन में पुरूष मुख्य तौर पर आखेटक (शिकारी) ही था। तो स्त्रियां कंद मूल बटोरती थी। वहीं जमीन में से कंद मूल खोदकर निकालती थी, कीट डिम्भक खोजती थी, जंगली अनाज की बालियां तोड़ती थी। संभवता, उसी ने सोच समझकर नरम जमीन पर पहली बार बीज डाले और इस तरह मानव ने पहली वनस्पतियां उगाई। इसी तरह , आग के साथ भी हुआ। मिथकों में अग्नि के अविष्कारक, उसे हरने या प्रदान करने वाले, चाहे वे देवता हों या वीर पुरूष ही हों। लाखों सालों के कालक्रम में लोग यह भुला बैठे कि अग्नि की खोज का श्रेय भी नारी को ही जाता है। उसी ने सबसे पहले अपने बच्चों के लिए गुफा को गरमाने के लिये और भोजन पकाने के लिये आग की जरूरत समझी। भले ही जलती टहनी उठाकर पुरूष ही लाया होगा।
ये भी सामने आया कि आदिम काल में पुरूष जिंदा शिकार लेकर आता था। ये महिला ही थी जिसने सबसे पहले मास को आग पर पकाकर परोसा और याद रखिये। इंसान ने जबसे आग पर पकाकर भोजन करना सीखा। तब से उसका दिमाग विकसित होना शुरू हुवा। हम जानवरों से इसलिये अलग हुये, क्योंकि मानव ने भोजन को आग पर पकाना सीखा। ये ही मानव समाज की सबसे पहली क्रांति थी। आग पर पकाने से मास के जीवाणु मरे और उसमें विटामिन, प्रोटीन और कैलशियम इंसान के शरीर में पहुंचा। जिससे इंसान वहां तक पहुंचा, जहां वो आज है। वस्त्रों और जूतों की खोज भी महिलाओं ने ही की है। मिटटी के बर्तन भी उसी ने बनाये। गोत्र समाज के विकसित होने पर भी समाज के आत्मिक विकास में महिलायें बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती रही है। स्त्री पुरूष के नैतिक संबंधों के मानकों के पालन में स्त्रियां, विशेष महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। संभवता, नारी ने ही नैसर्गिक कामेच्छा को उस दिशा में मोडा, जिसमें बढते हुये वह उदात्त प्रेम भावना बनी, तथा होमर, कालिदास, शेक्सपीयर और पुश्किन, साफो, जेबुनिस्सो और आर्ज सैंड ने उसका स्तुतिगान किया।
इसलिये मानव विकास के शुरूआती क्रम में जब समाज ने भगवान को स्थापित किया तो उसमें सबसे पहले देवियां ही गड़ी गई। लाखों साल बाद मानव ने पुरूष देवताओं को गड़ा।
कनुप्रिया-
ज्योति मौर्य के पति का कहना है कि ज्योति मौर्य को SDM उन्होंने बनवाया. उनसे request है कि वो formula बता दें जिससे किसी को sdm बनवाया जा सकता है, देश मे बहुत से छात्रों को ऐसी guidance की ज़रूरत है जो indian & state competitions में बैठते हैं, नही तो वो ख़ुद का SDM बनाओ गारंटी सेंटर भी खोल सकते हैं.
हो सकता है कि ज्योति मौर्य ने अपने पति के उनके प्रति dedication या support system बने जाने का मान न रखा हो हालाँकि जिस तरह उनके पति ने उन्हें बदनाम किया है प्रेम से अधिक आर्थिक स्वार्थ की ही बू आती है, ऐसे में ज्योति का बाहर अफ़ेयर होना चकित भी नही करता, मगर इतना तो साफ़ है कि यही support system उन्हें उनके घर मे ही मिल जाता तो वो पहले ही सफल हो चुकी होतीं. वो जो कुछ बनी हैं अपनी मेहनत और क़ाबिलियत के दम पर.
समाज को स्त्रियों से कम से कम उनके परिश्रम का श्रेय छीनना छोड़ देना चाहिए. आगे बढ़ने के समान अवसर उनका हक है, वांछित support system और अवसर मिलें तो जाने कितनी ही ज्योति मौर्य अपनी काबिलियत ख़ुद सिद्ध कर सकती हैं.
Ps: बाक़ी ज्योति का अपने पति को छोड़ा जाना उतना ही उनका आपस का मामला है जितना मोदी जी का अपनी पत्नी को छोड़ना और वो तो फिर प्रधानमंत्री हैं.
पिछली पोस्ट में मैंने ज्योति मौर्य का समर्थन नही किया, महज इतना कहा कि उनसे उनकी काबिलियत और मेहनत का श्रेय नही छीना जा सकता. समान अवसर स्त्रियों का हक़ है. बाक़ी उन्होंने किन कारणों से ऐसा किया वही बेहतर बता सकती हैं.
मगर पोस्ट पर कमेंट्स की बौछार बता रही है कि पुरुषों के अहम को ख़ासी चोट पहुँची है. क्यों? कितने ही सफल पुरुष अपनी पत्नियों को छोड़ देते हैं, गंवार या incompatible कहकर. वो गाँवों में उन पुरुषों के माँ बाप की सेवा करके जीवन खपा देती हैं. जब पुरुष तरक्की की सीढ़ियां चढ़ रहा होता है तो वो घर, उनके माँ बाप, बच्चे सब सम्भाल रही होती हैं और ये दावा भी नही करतीं कि हमने अपने पति को बनाया. मगर इस सब पर इतना हल्ला नही मचाया जाता, उनकी बेवफाई, व्यभिचार, सब दबे मुँह से विरोध के बाद स्वीकार.
मगर एक स्त्री ने ऐसा किया तो हल्ला ख़त्म होने का नाम ही नही ले रहा. तो सवाल अब ये नही कि ज्योति मौर्य ने ठीक किया या नही, वो हिसाब किताब तो बाद में, पहले ये बताइए कि क्या समाज की सारी नैतिकता का वजन स्त्रियों के ही कंधों पर है? वो कंधे हटा देंगी तो भरभरा के समाज गर्त में गिर जाएगा?
पहले अपने भीतर का दोगलापन हटाइये और फिर चरित्र, नैतिकता, व्यभिचार आदि आदि पर बात कीजिये.