लखनऊ के पत्रकार अलीम क़ादरी पांच दिन के कड़े संघर्ष के बाद दुनिया छोड़ गये। बृहस्पतिवार शाम चार बजे केजीएमयू के चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। शनिवार की शाम इस हट्टे कट्टे पत्रकार को जबरदस्त ब्रेन स्ट्रोक पड़ा था, जिसके बाद इन्हें ट्रामा सेंटर में वेंटीलेटर पर रखा गया था। अलीम अपने पीछे बूढ़ी मां, पत्नी और तीन छोटे-छोटे बच्चे छोड़ गये हैं।
शुक्रवार को दोपहर दो बजे जुमें की नमाज के बाद लखनऊ के ऐशबाग स्थित कब्रिस्तान में इन्हें सिपुर्द-ए-ख़ाक किया गया।
‘साहसी पत्रिका’ के संपादक अलीम क़ादरी जाते-जाते तमाम साहसी कारनामें दिखा गये। इनकी मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार मौत के चार दिन पहले उन्हें इतना जबरदस्त ब्रेन हैमरेज हुआ था कि दिमाग़ की नसें लगभग फट गयी थीं , फिर भी वो चार दिन तक मौत से जंग लड़ते रहे।
कादरी के ब्रेन स्ट्रोक की घटना से लेकर उनकी मौत तक लखनऊ के पत्रकारों की तादाद ने बहुत कुछ संदेश दे दिए। साबित हो गया कि अपने हम पेशावरों के बीच लोकप्रिय पत्रकार बनने के लिए बड़े बैनर की नहीं बल्कि अपने काम, व्यवहार और विचार से कोई हरदिल अज़ीज़ बन जाता है।
कादरी छोटी सी पत्रिका और न्यूज पोर्टल चलाते थे। उनकी प्रेस मान्यता भी नहीं थी। फिर भी जिस तरीके से पत्रकारों ने उनकी बीमारी से लेकर उनकी अंतिम यात्रा में शिरकत की तो लगा कि ये गलत धारणा है कि लखनऊ में मान्यता प्राप्त पत्रकारों और गैर मान्यता प्राप्त पत्रकारों के बीच कोई खाई है। यही नहीं मरहूम के इलाज से लेकर उनके क्रिया कर्म में हिंदू पत्रकार भाई मुस्लिम अज़ीज़ों से भी बहुत आगे रहे।
कादरी की इसक़द्र कद्र देखकर लगा कि उनके जैसे लोगों के व्यवहार, सौहार्द और संस्कारों की ताकत से ही हमारा देश साहसी भारत बना है। अलीम कादरी रहें ना रहें लेकिन आप जैसे पत्रकारों का इल्म और साहस भारतीय पत्रकारिता की नसों में दौड़ता रहेगा और भारत को साहसी भारत बनने की ताकत देता रहेगा।
अलविदा अलीम क़ादरी!
लखनऊ के पत्रकार नवेद शिकोह की रिपोर्ट.
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