स्नेह मधुर-
“जब मैंने अमिताभ बच्चन से हाथ मिलाने से मना कर दिया था ?”
शायद 29 नवंबर 1984 की सुबह ही थी जब मैं अपनी विजय सुपर स्कूटर से ब्लैक हेलमेट लगाकर अल्लापुर से सर्किट हाउस पहुंचा था। सर्किट हाउस के गेट में मैं घुसा ही था कि सामने से एक एंबेसडर कार और एक जीप सरसराती हुई निकली। मैंने फटाफट स्कूटर मोड़ी और इन भागते वाहनों के पीछे हो लिया। कार में फिल्म स्टार अमिताभ बच्चन तीन लोगों के साथ बैठे हुए थे अपनी नई राजनैतिक यात्रा शुरू करने के लिए। उनके साथ उनके छोटे भाई अजिताभ बच्चन, उत्तर प्रदेश युवा कांग्रेस के उपाध्यक्ष अजय श्रीवास्तव और एक अन्य व्यक्ति बैठे थे जिनकी याद मुझे नहीं है, शायद कोई विधायक थे। इलाहाबाद की कांग्रेस का कोई भी व्यक्ति उनके साथ नहीं था, उनकी आवभगत करने के लिए, उनका मार्ग प्रशस्त करने के लिए।
अमिताभ बच्चन की दो गाड़ियों का काफिला चंद्रशेखर आज़ाद पार्क होते हुए यमुना नदी के किलाघाट पहुंचा। वहां पर एक स्टीमर में ये सभी लोग बैठ गए। मकसद था संगम में जाकर “काग स्नान” करना, हनुमान जी के दर्शन करना। स्टीमर में मुझे भी बिठाया गया और विजय अग्रवाल जी को भी जो उस समय प्रेस फोटोग्राफर हुआ करते थे, आजकल वाइस चांसलर हैं भोपाल में। मैं अमृत प्रभात का रिपोर्टर था उस समय और शाम को ही मुझे अमिताभ बच्चन के कार्यक्रमों की कवरेज करने का असाइनमेंट दे दिया गया था।
अमिताभ बच्चन के कार्यक्रम का प्रेसनोट लेकर अजय श्रीवास्तव जब अखबार के दफ्तरों में गए थे तो पत्रकारों में कोई उत्साह नहीं था। एक तो उस समय के पत्रकार बड़ी बड़ी हस्तियों के पीछे भागना पसंद नहीं करते थे (ब्रेकिंग न्यूज का दबाव नहीं था, आज की तरह कुत्तों की तरह हांफते हुए दौड़ने वाला इलेक्ट्रॉनिक मीडिया नहीं था) और दूसरे शहर कांग्रेस कमेटी की तरफ से कोई सूचना न होने के कारण अजय श्रीवास्तव के प्रेस नोट को हल्के में लिया जा रहा था। कुछ पत्रकारों ने तो अपने व्यंग्य बाण भी चला दिए थे कि “अमिताभ बच्चन सच्ची में आय रहन हैं या मसखरी करत हौ…”!
उस समय ज्यादा अखबार नहीं थे और सीनियर जर्नलिस्ट सुबह उठना पसंद नहीं करते थे। माहौल यह था कि “कउनो आय जाए, हमका का…!” गालिब का एक शेर भी है शायद ..नींद बड़ी चीज़ है, मुंह ढक के सोइए! इसलिए मुझ जैसे युवा रिपोर्टर को “अमिताभ वमिताभ बच्चन” के लिए ठेल दिया गया था।
स्टीमर पर अमिताभ बच्चन के बगल में बैठा तो अजय श्रीवास्तव ने परिचय कराना शुरू किया, “ये हैं स्नेह मधुर, रिपोर्टर अमृत प्रभात…!” अमिताभ बच्चन ने शेक हैंड करने की औपचारिकता पूरी करने के लिए अपने दाहिने हाथ को आगे बढ़ाया।
मैंने भी खुशी खुशी अपना दाहिना हाथ बढ़ाया। लेकिन यह क्या? मेरी नज़र उनकी हथेली पर पड़ी तो मैं सिहर उठा! उनकी पूरी हथेली पर सफेद दाग थे! मैंने झटके से अपना हाथ वापस खींच लिया कि कहीं मेरा हाथ उनके संक्रामक हाथ से छू न जाए और मुझे भी यह रोग लग जाए! अपनी तात्क्षणिक बुद्धि और बला की फुर्ती के कारण अमिताभ बच्चन की हथेली को छूने से मैं बाल बाल बचा था।
मैंने अपना हाथ खींच कर दूरी बनाते हुए हाथ जोड़ लिए।
अमिताभ मेरे इस व्यवहार से चकित होकर मेरी तरफ घूरने से लगे। उन्होंने भी हाथ जोड़ दिए लेकिन शायद उनके मन में विचारों की आंधियां चल रही होगी कि पूरी दुनिया में यह कौन सा शख्स है जो मुझसे हाथ मिलाने में हिचकिचा रहा है?
खैर तभी अजय श्रीवास्तव ने विजय अग्रवाल से उनका परिचय करवाया तो विजय अग्रवाल ने लपक कर हाथ मिला लिया। अन्य लोगों ने भी हाथ मिलाने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई। मैं सोच में डूब गया कि आख़िर सब लोग हाथ क्यों मिला रहे हैं? क्या किसी की नज़र अमिताभ बच्चन की दगही हथेली पर नहीं पड़ी है?
स्टीमर के संगम बीच पहुंचने तक मेरे दिमाग की खिड़कियां खुल चुकी थीं। अरे, यह तो सफेद वफेद दाग़ का चक्कर नहीं है! घर में दीपावली पर पटाखे फोड़ते समय उनकी हथेली जल गई थी और ये उसी के दाग थे! धत तेरे की….!
मैं बेकार ही सशंकित हो गया था! और अगर दाग होता तो अमिताभ बच्चन हैंड शेक करने की पहल खुद ही नहीं करते। बाद में मैंने कई बार अमिताभ बच्चन से हाथ मिलाया लेकिन उस समय एक पल से भी कम समय में हुई मेरी इस अपरिपक्व प्रतिक्रिया पर मुझे हमेशा हंसी आती है। इसी को कहते हैं कि जिसके हिस्से में जो चीज़ नहीं होती है, वह हाथ में आकर भी फिसल जाती है, न मिलने के बहाने बन जाते हैं…!
स्नेह मधुर इलाहाबाद के वरिष्ठ पत्रकार हैं.