भड़ास मतलब, दिल की भड़ास, फिर उसके बाद कुछ नहीं
दीपक खोखर
नई दिल्ली । हर किसी के मन में कभी न कभी ऐसी भड़ास पैदा होती है, जो निकलनी जरूरी होती है। कम से एक पत्रकार के मन में तो यह भड़ास उठती ही रहती है। मेरे मन में भी उठी और बार-बार उठी और इस भड़ास को निकालने का जरिया बना भड़ास 4 मीडिया डॉट कॉम या फिर कहूं यशवंत भाई। यशवंत जिससे कभी कोई खास जान-पहचान या मुलाकात नहीं थी और आज भी उतनी नहीं है, लेकिन जो सम्मान वो मेरी भड़ास को देते हैं, उसको सलाम करता हूं। जो प्लेटफार्म यशवंत ने खड़ा किया, उससे दिल और दिमाग को काफी शांति मिली। अब ये तो याद नहीं कब शुरूआत हुई, लेकिन पिछले कुछ साल से यशवंत भाई का शुक्रगुजार हूं, जो उनकी बदौलत भड़ास निकालने का मौका मिला।
ये बात उस समय की है जब मैं रोहतक में दैनिक भास्कर में था। शुरूआत में यशवंत ने इसे ब्लॉग के रूप में शुरू किया और फिर पोर्टल। कब भड़ास से जुड़ाव पैदा हो गया, पता ही नहीं चला। जब भी कभी मन में मीडिया या मीडिया कर्मियों को लेकर कोई भड़ास पैदा हुई, तुरंत यशवंत भाई की ई मेल पर भेजी और प्रकाशित भी हो गई। इस बात के लिए यशवंत का शुक्रगुजार हूं, शायद ही कभी ऐसा हुआ होगा जब जो मैने लिखकर भेजा, वो हू ब हू प्रकाशित न हुआ हो। फिर तो लगातार ये सिलसिला जारी है। जब भी कोई भड़ास हुई, यशवंत भाई को मेल भेजी और तुरंत प्रकाशित हो गई।
यशवंत भाई से मेरी मुलाकात शायद दो साल पहले भड़ास के ही एक कार्यक्रम में हुई थी। एक दो बार हो सकता है इससे पहले मोबाइल पर बात हुई हो, लेकिन याद नहीं। भड़ास को कई बार आर्थिक संकट का भी सामना करना पड़ा, मदद करनी भी चाही, लेकिन खुद की आर्थिक स्थिति कभी ऐसी नहीं रही, लेकिन फिर भी उम्मीद है किसी दिन इस स्थिति में आ जाऊंगा। भड़ास 4 मीडिया को आठ साल हो चुके हैं और इस दौरान अनेक चुनौतियों और दिक्कतों का सामना यशवंत भाई को करना पड़ा। बीच में जेल में दिन काट आए, बाहर आए और जानेमन जेल लिख डाली। गज़ब और कमाल का व्यक्ति है यशवंत।
11 सितंबर को भड़ास का आठवां जन्मदिन था। किसी को शायद, मैं गलत हो भी सकता हूं, व्यक्तिगत न्यौता नहीं रहा होगा। सबके लिए दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में कार्यक्रम रखा गया। जहां से भी हो सकता था पत्रकार और पत्रकारिता को जानने वाले लोग पहुंचे। रविवार का दिन था, मैं भी पूरा समय निकालकर ठीक समय से कार्यक्रम में पहुंच गया। यशवंत भाई से दुआ सलाम किया और फिर एक जगह पर आराम से बैठ गया। गीत-संगीत और काव्य पाठ भी रखा गया।
इस दौरान पत्रकारिता से जुड़े गंभीर विषयों पर चर्चा भी हुई। वरिष्ठ पत्रकार आनंद स्वरूप वर्मा, ओम थानवी, एनके सिंह और आईआरएस अधिकारी एसके श्रीवास्तव के विचारों से रूबरू होने का मौका मिला। श्रीवास्तव जी ने मीडिया और काला धन को लेकर जो खुद का अनुभव सांझा किया, उससे रोंगटे खड़े हो गए। जिस एनडीटीवी चैनल को हम सब अब तक साफ सुथरा मानते रहे हैं, उसकी बुनियाद व इमारत काला धन पर खड़ी है और इसमें देश के एक पूर्व केंद्रीय मंत्री का काला धन लगा हुआ है। इस पर पूरी बात श्रीवास्तव जी ने रखी। यही नहीं, श्रीवास्तव को अपनी बेबाकी के लिए 6 बार चार्जशीट तक किया गया और नौकरी से निकालने की तैयारी कर ली गई, लेकिन डटे रहे और सुप्रीम कोर्ट तक केस जीतकर आए।
इसके अलावा एनके सिंह ने जहां नपी तुली बात कही, वहीं ओम थानवी ने अपने उसूलों के मुताबिक बात रखी। लेकिन जो सबसे ज्यादा मुझे प्रभावित किया, वो वरिष्ठ पत्रकार आनंद स्वरूप वर्मा की बात ने किया। जिस तरीके से उन्होंने मीडिया में कमियों को उजागर किया और यहां तक कह दिया कि मौजूदा समय में कोई उम्मीद कम ही नज़र आती है, वह कहने की हिम्मत कम ही लोगों में नज़र आती है। कम से कम 11 सितंबर का दिन खास रहा और पूरी तरह भड़ास के नाम समर्पित रहा। कार्यक्रम में कुछ मित्रों से भी मुलाकात हुई, जिनसे काफी समय हो गया था, मुलाकात किए हुए। आखिर में यशवंत भाई की भड़ासी टीशर्ट ली व फिर वहीं पर पहन कर और यशवंत भाई को दुआ सलाम कर रोहतक के लिए निकल आया। अब के लिए इतना ही, बाकी किश्त बाद में, अगर मन हुआ और कुछ भड़ास हुई तो ही।
दीपक खोखर
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