यूपी के गाजियाबाद स्थित आर्यनगर के रहने वाले अनिल शर्मा के 9 वर्षीय पुत्र देव के दाहिने हाथ की उंगली में दर्द उठा. अनिल ने दर्द की शिकायत ज्यादा होने के बाद बेटे को डॉ एस के भगत को दिखाया. डॉक्टर भगत ने एक्सरे कराने के बाद अनिल शर्मा से एक छोटा ऑपरेशन करने की बात कही.
1 जून 2014 को अनिल बेटे देव को लेकर हॉस्पिटल पहुंचे. जहां डॉक्टर भगत द्वारा बेटे का ऑपरेशन किया गया. ऑपरेशन के बाद भी बच्चा उंगली में दर्द की लगातार शिकायत करता रहा. इसके बाद शशि नाम की नर्स द्वारा बच्चे को दो इंजेक्शन दिए गए, साथ ही कुछ दवाएं भी देकर कहा कि इससे आराम मिल जाएगा.
इस ट्रीटमेंट के बाद भी बच्चे को आराम नहीं मिला. रात लगभग 9.30 बजे बच्चे को क्रिटिकल केयर यूनिट में भेज दिया गया. यहां उसका शरीर शांत पड़ा हुआ था. पूछने पर जुनियर डाक्टर ने बताया कि बच्चे की मृत्यु हो चुकी है. परिवादी तुरन्त पुलिस थाने में गया जिस पर पुलिस अधीक्षक, राशिद अहमद एवं सीओ रनबीर सिंह मौके पर आए और इसके पश्चात एफआईआर पंजीकृत की गयी. परिवादी के पुत्र की उंगली में थोड़ी से सूजन आयी थी किन्तु डाक्टर की लापरवाही के कारण उसकी मृत्यु हो गयी.
इसके बाद अनिल शर्मा ने राज्य उपभोक्ता फोरम का रूख किया. यहां माननीय पीठासीन जज राजेंद्र सिंह द्वारा 112 पन्ने का आदेश पारित किया गया.
अपने आदेश में जज ने कहा कि, ‘एमसेट’ 2 एम जी और 3 एमजी के दो इंजेक्शन दिये गये. यह इंजेक्शन आम तौर पर उल्टी के नियंत्रण के लिए दिये जाते हैं लेकिन इस इंजेक्शन के साइड-इफेक्ट भी हैं जैसे कि कांस्टीपेशन, डायरिया आदि. लगातार दो इंजेक्शन देने की क्या आवश्यकता थी, यह स्पष्ट नहीं किया गया है. पीठासीन जज राजेन्द्र सिंह द्वारा इस मामले में पाया गया कि विपक्षी डाक्टर द्वारा प्रत्येक स्तर पर लापरवाही बरती गयी है. आपरेशन के पश्चात उपचार एवं उचित देखभाल हेतु डाक्टरों द्वारा इस व्यवसाय में आने से पहले हीपोक्रेटिक शपथ ली जाती है, इस शपथ का भी विपक्षी डाक्टर द्वारा पालन नहीं किया गया.
उपरोक्त सभी तथ्यों से स्पष्ट होता है कि इस मामले में डाक्टर द्वारा गलत सर्जरी की गयी क्योंकि उंगली में संक्रमण के कई कारण हो सकते हैं, आपरेशन किस कारण से किया गया इस मामले में स्पष्ट नहीं है. एक साधारण सी उंगली का आपरेशन किये जाने से अगर किसी की मृत्यु कारित होती है तो यह स्पष्ट है कि इसमे डॉक्टर द्वारा अत्यधिक लापरवाही बरती गयी है. सभी तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए पीठासीन जज राजेन्द्र सिंह द्वारा विपक्षी संख्या-1 व 2 को अलग-अलग एवं संयुक्त रूप से आदेशित किया गया कि वे परिवादी को 65,00,000/-रू मानसिक यंत्रणा, चिकित्सीय उपेक्षा एवं पुत्र हानि के रूप में 1 जून 2014 से 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ इस निर्णय के 30 दिन के अन्दर अदा किये जाएं, अन्यथा ब्याज दर 15 प्रतिशत वार्षिक होगी जो दिनांक 1 जून 2014 (बच्चे की मृत्य की तिथि) से वास्तविक अदायगी तक देय होगी.
विपक्षी संख्या-1 व 2 विपक्षी संख्या– 3 व 4 से उस स्तर तक इस हर्जाना की प्रतिपूर्ति कर सकते हैं जिस राशि तक उनका बीमा हुआ हो…
Total with interest @12% till today – 1.43 crores
पढ़ें आदेश…