Sanjay Sharma : केंद्र सरकार की प्रिंट मीडिया विज्ञापन नीति 2016 को लेकर लघु और मध्यम अखबारों के प्रकाशक लगातार लड़ाई लड़ रहे है। इस लड़ाई के तहत हम लोगों के द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट में कई याचिका दायर की जा चुकी है। मध्य प्रदेश में बीते वर्ष योजित एक याचिका के बाद DAVP के कुछ अधिकारी लघु और मध्यम अखबारों को फर्जी साबित करने और नीति को सही ठहराने के प्रयास में जुटे है।
अगर कुछ देर के लिए यह मान भी लिया जाए कि लघु और मध्यम अखबारों में खामियां है तो क्या बड़े अखबारों में नहीं है? बिना इम्पेनलमेन्ट के बड़े अखबारों को विज्ञापन देना, दैनिक अखबार के लिए जारी विज्ञापन साप्ताहिक अखबार में प्रकाशित करना… इसके अलावा अभी 4 दिन पहले प्रधानमंत्री जी के फोटो वाले विज्ञापन सरकार के तीन साल पूरे होने के अवसर पर देश के सभी अखबारों में छापे गए… यह विज्ञापन जैकिट पर प्रकाशित क्यों हुए… क्या कोई बतायेगा कि इन विज्ञापनों का पेज नंबर क्या है… क्या यह डकैती और सरकारी धन का दुरुपयोग नहीं है…
विज्ञापन कई दिन से लगातार जारी किए जा रहे हैं। मीडिया लिस्ट रिपीट हो रही है। सारे विज्ञापन एक ही लिस्ट के आधार पर जारी किए गए। क्या इसमें रोटेशन नहीं होना चाहिए। इस सब के बावजूद सरकार की नीति बहुत बढ़िया है। मैं ऐसे कई बड़े अखबारों को जानता हूं जिनकी आन रिकार्ड प्रसार संख्या लाख में है पर असलियत में वह 10 हजार भी नहीं छपते। इस सब के बावजूद DAVP के अधिकारी बहुत ईमानदार हैं।
DAVP के हर अधिकारी की एक अपनी लिस्ट होती है। आखिर क्यों? जो हुआ उसमें अधिकारियों की लिप्तता से इनकार सरकार को नहीं करना चाहिए। पर नजर केवल एक तरफ है… यह तो ठीक नहीं है। छोटे अखबार वालों को चोर और बड़े वालों को डकैत कहा जाना चाहिए। सरकार को भेदभाव नहीं करना चाहिए। कानून सबके लिए बराबर है। पर यहाँ तो एक साल से भेदभाव ही देखने को मिला रहा है। लड़ाई जारी है…
नोएडा से छपने वाले अखबार एनसीआर टुडे के एडिटर संजय शर्मा की एफबी वॉल से.