सिद्धार्थ ताबिश–
क्या 400 साल पहले भारत का कोई इतिहास नहीं था? कोई राजा कोई महाराजा कोई डायनेस्टी नहीं हुई भारत में मुगलों से पहले? फिर क्यों सिर्फ़ 400 साल पहले का इतिहास दिखता है हर रोड और हर इमारत के नाम पर? क्यों??
चोल वंश के हिंदू राजाओं ने 1500 साल तक राज किया इस देश पर.. हमारे बच्चों को उनमें से किसी एक राजा का भी नाम पता है? सिर्फ़ 89 साल तक औरंगजेब के राज और उसके गुणों के महिमामंडन के अलावा तुम में से कितनों को “राजा भोज” की उदारता, शायरी और साहित्यिक काबिलियत के बारे में पता है? बताओ?
80 और 90 के दशक की इतिहास की किताबों में सिर्फ़ मुग़ल ही थे.. हम लोग सिर्फ़ बाबर, अकबर, हुमायूं, शाहजहां, औरंगज़ेब, ग्यासुद्दीन बलबन, गजनवी वगैरह को ही पढ़ते थे.. एक्का दुक्का भारतीय राजवंशों का ज़िक्र होता था बस.. हमारी किताबों में लिखा रहता था कि किस तरह से ईमानदार बादशाह औरंगज़ेब टोपी सिलकर अपना खर्चा चलाता था.. ये कभी नहीं बताया जाता था कि औरंगज़ेब अपने सगे भाई का सिर हाथी से कुचलवा देता है, अपने पिता को कैद में डाल देता है, सरमद जैसे सूफ़ी का सिर गर्दन से अलग कर देता है वो भी सिर्फ़ इसलिए क्योंकि वो आधा “कलमा” पढ़ता था.. ये बड़ी महीन और बारीकी से लिखी गई इतिहास की चालाकियां थी..
हमें ये बताया जाता था कि शेरशाह सूरी ने ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण किया जबकि उसने इसे दुबारा जोड़ा था.. मगर हमें ये कभी नहीं बताया जाता था कि नालंदा किसने बनाई कैसे बनाई और क्यों बनाई.. उस दौर की नौ मंज़िला यूनिवर्सिटी जहां सारी दुनिया से बच्चे पढ़ने आते थे, मकबरों और महलों के महिमामंडन में दब गई
मुगलों से कहीं ज़्यादा अंग्रेजों ने भारत को बहुत कुछ दिया.. और वो मुगल के बाद थे और उनसे ज़्यादा नए.. मुगलों का शासनकाल 200 साल के लगभग माना जाता है और अंग्रेज़ भी 200 साल भारत में थे.. तमाम रेलवे नेटवर्क से लेकर ब्रिज और पुल अंग्रेजों ने बनवाए.. किले और मकबरों की जगह उन्होंने देश को मॉडर्न और विकासशील बनाया.. मगर अंग्रेज़ों का सिर्फ़ और सिर्फ़ ज़ुल्म लिखा गया क्योंकि उन्होंने मुगलों को उखाड़ फेंका और मुगलों की सिर्फ तारीफ लिखी गई.. ऐसा लगता है कि मुगल सबको गले लगाते थे और अंग्रेज़ सिर्फ़ दिनभर सबको मारा करते थे
भारत का इतिहास बड़ी बौद्धिक चालाकी से लिखा गया है.. और ये चालाकियां किस स्तर पर हैं हम और आप सोच भी नहीं सकते.. इन लेखकों ने गंगा जमुनी तहज़ीब का हवाला देते हुवे खूनी, कातिलों और गाज़ियों को भारतीयों से पुजवाया.. जिन्होंने हमारे पुरखे मारे आज उनकी मज़ारों पर भीड़ लगी मिलती है आपको.. और मजाल है कि ये लेखक कभी इन सब सच्चाइयों को लिखें.. क्योंकि उन्हें गंगा जमुनी तहज़ीब का ठेका जो ले रखा है
सच यही है.. आपको प्रेमचंद की कहानी ईद और ब्रह्मभोज तो हर स्कूल में पढ़ाई गए मगर उन्हीं की लिखी “जिहाद” किसी भी सिलेबस में जगह नहीं पा सकी.. क्यूं इस कहानी को आपको कभी नहीं पढ़ने दिया गया? कौन था जो हमारे स्कूलों का सिलेबस बनाता था जिसने जिहाद जैसी कहानी को किसी भी सिलेबस का हिस्सा नहीं बनने दिया?
उपरोक्त पोस्ट पर मनीष कुमार की प्रतिक्रिया-
अफसोस के साथ पूछ रहा हूँ, क्या ये वही सिद्धार्थ ताबिश है, जिसकी कुछ पोस्ट मैंने चाव से अपने वाल पर लगाई थी???
बहरहाल, अगर सीबीएसई स्कूल में बच्चे पढ़ते हैं, तो सातवी में एनशियन्त हिस्ट्री, आठवी में मेडीएवल, और नौंवी में आधुनिक भारत का उतना इतिहास है, जितना उस उम्र के एक बच्चे को जानना चाहिए।
राजा भोज, मौर्य, गुप्त और हर्ष के सामने कुछ भी नहीं थे। चोल चालुक्य राजपूत इलाकाई लीडर थे। तो जो लोग ज्यादा महत्वपूर्ण, और जानने लायक है, वो पढ़ाये जाते हैं।
जैसे गणित में बच्चो को आम गुणा भाग ही सिखाया जाता है। इंटीग्रल डिफरेंशियल हायर लेवल पर जो गणित पढ़े, उसके लिए है। तो जिसे डीप में जाकर राजा भोज और उनका साहित्य जानने काशौक है, दसवीं के बाद आर्ट्स ले, जमकर साहित्य और हिस्ट्री पढ़े। बीए फाइनल करते करते भोज का भी पता चल जाएगा, औऱ गंगू भी।
हिंदी साहित्य में एम ए कर लो। कालिदास और भोज के कवित्त भी रट जाएंगे। पर वो सब किसी को पढ़ना नही है। क्योकि SST को साइंस मैथ्स के सामने सस्ता समझना है।
आप ही बताइये, क्या आपने ट्यूशन लगाया SST के लिए अपने बच्चों का?? साइंस, मैथ्स, इंग्लिश के लिए अवश्य लगाया होगा। क्योकि आप खुद ही इस विषय को सस्ता समझते हैं, फिर बच्चा भी कन्टेंट को वैसा ही ट्रीट करता है।
फिर जिस चीज को मन से पढा ही नही, उसे न जानने का स्यापा क्यों??
बच्चों के लिए एक पाठ्यक्रम बनाना बच्चों का खेल नहीं। सीमा में कन्टेंट देना है, और ज्यादा से ज्यादा बताना है। भारत का भी, फ्रेंच रिवोल्यूशन भी, और मैगेलन की यात्रा भी। एक किताब में कितना ठूंसा जा सकता है, 14 साल के बच्चे के लिए??
दसवीं तक जो NCERT में है, शानदार है,उस उम्र के लिए इंडियन हिस्ट्री की पूरी समरी है। उसके आगे जिसे ज्यादा जानने का शौक हो, वह स्ट्रीम चूज करे, और पढ़े।
पर जो डॉक्टर इंजीनियर मैनेजर बनने की तरफ चला गया, उसके अज्ञान पर , समाज को न कोसिए।
रही रोड रास्ते मुगलों के नाम पर, तो जो ज्यादा रिसेंट होगा, उसकी याद ज्यादा ताजी होगी। ताजमहल, ताजमहल है, लेकिन अशोक स्तम्भ को भीम की लाठ, और बौद्ध गुफाये को पांडव गुफा बनकर सिंदूर पोती जाती रहीं।
तो ऐसी फैशनेबल कुंठा से भरी बेलॉजिक बकवास, भक्तों को शोभा देती है। उस ताबिश को नहीं, जिसे मैं जानता था।
फैसल खान
July 11, 2023 at 10:53 pm
ये वही चापलूस सिद्धार्थ ताबिश है न जो इतिहास के बारे में एबीसीडी भी नही जानता??और कमाल ये की सिद्धार्थ नाम के साथ ताबिश भी लगाता है, पता नही कैसे कैसे जाहिल इतिहासकार बन बैठे,तरस आता है इनकी अक़ल और इनकी पढ़ाई लिखाई पर,वैसे जहालत का साक्षात नमूना है ये
हरजिंदर
July 12, 2023 at 5:53 am
एक बार इस पर भी विचार कर लीजिए कि क्यों सिर्फ़ शासकों का झूठा-सच्चा इतिहास ही पढ़ाया जाए !!! जनता का इतिहास कौन लिखेगा और कब पढ़ाया जाएगा ????
K M
July 12, 2023 at 12:00 pm
Mr Faisal how much you studied Indian history. How much you know about yr Family History, whether they are from India or somewhere else. Fore Indian history you will have to big time.
प्रोफेसर इन्द्राणी चक्रवर्ती
July 12, 2023 at 6:26 pm
मै सिद्धार्थ ताविश को नहीं जानती। पर यह अवश्य कहूंगी कि हमारे स्कूल के इतिहास के पुस्तक में कक्षा आठ तक मौर्य, गुप्त, चोल, चालुक्य साम्राज्य पर एक एक अध्याय थे तथा मुगलों और ब्रिटिश शासन पर भी। हमने रामायण, महाभारत, के साथ गौतम बुद्ध, महावीर, हजरत मोहम्मद, गुरू नानक देव, पर भी चैप्टर पढ़े। इन्हें पढ़ने के लिए हमे किसी प्राइवेट ट्यूटर रखने की जरूरत महसूस नही की पिताजी ने। आजकल बच्चों से बचपन छिन लिया गया अत्यधिक किताब और ट्यूशन के चक्कर में। खेद है।
हर्ष
July 12, 2023 at 6:45 pm
आज सबसे ज्यादा जरूरत इस बात पर अध्ययन,बहस करने की हैं की भारत आठ सौ सालों तक विदेशी आक्रांताओं का गुलाम क्यों हुआ और इसमें वर्ण व्यवस्था का कितना योगदान था। जो सभ्यता विकास के पथ पर निरंतर आगे बढ़ते हुए अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचते पहुंचते सोने की चिड़िया कह लाने लग गई और जिसने बाहर से आए लोगों को अपने में समाहित कर लिया उसमे 9 सौ ईसवी के बाद ऐसा क्या हुआ की विदेशियों के आक्रमण बढ़ने लगे और कुछ की शताब्दियों के बाद देश गुलाम हुआ जिस पर 8 सालों तक विदेशी आक्रांताओं ने राज किया।
हर्ष
July 12, 2023 at 6:46 pm
आज सबसे ज्यादा जरूरत इस बात पर अध्ययन,बहस करने की हैं की भारत आठ सौ सालों तक विदेशी आक्रांताओं का गुलाम क्यों हुआ और इसमें वर्ण व्यवस्था का कितना योगदान था। जो सभ्यता विकास के पथ पर निरंतर आगे बढ़ते हुए अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचते पहुंचते सोने की चिड़िया कह लाने लग गई और जिसने बाहर से आए लोगों को अपने में समाहित कर लिया उसमे 9 सौ ईसवी के बाद ऐसा क्या हुआ की विदेशियों के आक्रमण बढ़ने लगे और कुछ की शताब्दियों के बाद देश गुलाम हुआ जिस पर 8 सालों तक विदेशी आक्रांताओं ने राज किया।