Samar Anarya : अलविदा बिपिन चन्द्रा, अलविदा बलराज पुरी. अब भी याद है कि इलाहाबाद में साइकोलॉजी में एमए पूरा कर लेने के बाद सामने मौजूद दो विकल्पों में से एक चुनना कितना मुश्किल था. एक तो क्लिनिकल साइकोलॉजी जो इलाहाबाद शहर के बाद अपनी दूसरी माशूक थी तो एक तरफ वो इंकलाबी जज्बा जिसे क्रान्ति हुई ही दिखती थी.
इन दोनों संभावनाओं के सबब भी सामने थे- क्लिनिकल साइकोलॉजी का मक्का-मदीना निमहंस बंगलौर तो पढ़ाई से ज्यादा मार्क्सवाद के लिए जाना जाने वाला जेएनयू. फैसला करने में बिपिन चन्द्रा, रोमिला थापर, टी के ओमेन.. न जाने किस किस को पढ़ने ही नहीं भर आँख देखने की भी ख्वाहिश काम आई थी. (अब भी याद है कि आने के हफ्ते भर में ही ट्रिपल एस 1 की लिफ्ट में रोमिला जी को देख कैसा रोमांच हुआ था पर अपनी माशाअल्लाह अंग्रेजी के चलते कुछ कह पाने का साहस नहीं जुटा पाया था). आज उनमें से एक और स्तम्भ नहीं रहा जिनका कहीं होना हम जैसे न जाने कितनों को खींच लाता था.
अलविदा बलराज पुरी भी- काश्मीर पर सबसे निष्पक्ष आवाजों में एक का खामोश हो जाना बहुत खलेगा.
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारवादी अविनाश पांडेय समर के फेसबुक वॉल से.
Awadhesh Kumar : बिपिन चन्द्रा और बलराज पुरी का जाना। आज एक साथ दो जाने माने व्यक्तियों ने विदा ले ली। मशहूर इतिहासकार बिपिन चंद्रा तथा पत्रकार एवं मानवाधिकारवादी बलराज पुरी। चंद्रा आधुनिक भारत के इतिहास के विशेषज्ञ के तौर पर जाने गये। इतिहास पर उनकी करीब 20 पुस्तकें मे है,रप जानकारी में है। इनमें आधुनिक भारत का इतिहास, आधुनिक भारत और आर्थिक राष्ट्रवाद, सांप्रदायिकता और भारतीय वामपंथ काफी चर्चित एवं संभवतः सबसे ज्यादा बिकनेवाली व पढी जाने वाली थीं। ‘द राइज़ एंड ग्रोथ ऑफ इकॉनॉमिक नेशनलिज़्म’, ‘इंडिया आफ़्टर इंडिपेंडेंस’ और ‘इंडियाज स्ट्रगल फॉर इंडिपेंडेंस’ नामक पुस्तकें भी बहस के केन्द्र में रहीं। इतिहास का विद्यार्थी होने के कारण भी मैंने उनकी ये पुस्तकें पढीं। हालांकि राष्ट्रवाद के उदय और विकास के साथ ऐसे कई बातें थी जिनसे मैं सहमत नहीं हो पाया, पर उनकी किताबों से बहुत ज्ञान प्राप्त किया। अन्य घोर वामपंथी इतिहासकारों से वे थोडे अलग थे। वे किसी से भी खुलकर मिलते थे। लेकिन जीवन के अंतिम समय वे लगभग अकेले थे। पत्नी पहले गुजर गईं और बेटा एक ही जो विदेश में रहता है। प्रोफेसर चंद्रा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग में अध्यक्ष रह चुके थे। वहां से सेवानिवृत होने के बाद वह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के कार्यकाल में नेशनल बुक ट्रस्ट के अध्यक्ष भी बनाये गये थे और 2012 तक इस पद पर रहे। वह इन दिनों शहीदे आजम भगत सिंह पर जीवनी लिख रहे थे। विनम्र और सादर श्रद्धांजलि। बलराज पुरी जम्मू कश्मीर के विशेषज्ञ के तौर पर जाने जाते थे। उनकी भी अपनी सोच थी, जिससे कुछ सहमत कुछ असहमत थे। कश्मीर के मानवाधिकार को लेकर उनको आलोचना झेलनी पडती थी। लेकिन अपने अंतिम समय तक वे बहुत बदले नहीं। उनके लेख कश्मीर पर जानकारी बढाने वाले होते थे। उनकी एक या दो पुस्तकें मेरे पास आइं थीं लेकिन अभी नाम याद नहीं आ रहा। उनको भी विनम्र और सादर श्रद्धांजलि।
वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार के फेसबुक वॉल से.
Om Thanvi : प्रो. बिपिन चन्द्र का जाना सिर्फ एक बड़े इतिहासकार जाना नहीं है। वे एक उदार प्रगतिशील विचारक थे। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास (NBT) के अध्यक्ष के नाते उन्होंने और कृतियों के अलावा समाज विज्ञान और प्रवासी भारतीयों पर पुस्तकों की जो बहुभाषी शृंखला नियोजित की, वह उनका अहम योगदान माना जाएगा। उनके साथ काम कर चुके Pankaj Chaturvedi का कहना सही है कि प्रो. चन्द्र निरे अध्यक्ष नहीं थे, अक्सर वे प्रधान संपादक का विवेक इस्तेमाल करते थे। इतिहास की एक किताब में वीर सावरकर के माफी मांगने वाले प्रसंग को उन्होंने यह कहकर निकलवा दिया था कि आजादी के इतिहास में उनका जो योगदान है, उसकी उपेक्षा उचित न होगी। हालाँकि कट्टर हिंदुत्व के खिलाफ उनकी राय हमेशा साफ और बेबाक होती थी। जब हमें उनकी ज्यादा जरूरत थी, इतिहास के अजीबोगरीब दौर को वे लांघकर चले गए। जीवंत स्मृति के साथ उन्हें नमन।
वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी के फेसबुक वॉल से.
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