माणिका मोहिनी-
आजकल की लड़कियों में एक फ़ैशन चला है, अंतःवस्त्र यानी ब्रा न पहनने का। सभ्यता के प्रारंभ में स्त्री-पुरुष सब खुले बदन ही रहते थे। फिर पत्तों से शरीर को ढकना शुरू किया और धीरे-धीरे सभ्यता के विकास ने शरीर से, खासकर स्त्री के शरीर के नंगेपन से बेशर्मी को जोड़ दिया। कपड़ों का आविष्कार हुआ और स्त्री-पुरुष अपने शरीर को ढक कर रहने लगे।


पश्चिमीय देशों में शारीरिक स्वतंत्रता कोई टैबू नहीं है। मैंने वर्षों पूर्व अपनी केरल यात्रा के दौरान कोवलम बीच पर अनेक विदेशी सैलानियों को समुद्र के किनारे नंगे अठखेलियाँ करते देखा था जिन्हें हम भारतीय आश्चर्य भरी नज़रों से ताड़ रहे थे। भारतीर्यों को अपनी ओर घूरते देख विदेशी औरतों में भी लाज-शर्म पैदा हो गई थी और वे कभी ऊपर और कभी नीचे हाथों से ढकती हुई छुपने के लिए आड़ खोजने लगी थीं।
कई अभिनेत्रियों ने ब्रा का बहिष्कार किया और उनकी देखा-देखी उच्च वर्ग की लड़कियों ने भी। लोग हँसे, उनकी त्रिकुटियाँ चढ़ीं लेकिन नारी मुक्ति आंदोलन का यह भी एक हिस्सा बन गया कि शरीर हमारा है, हम इसे ढकें या उघाड़े। ब्रा के बंधन में क्यों बंधें? अपने शरीर को किसी जकड़न में क्यों रखें?
अब ज़माना शायद फिर पीछे की ओर लौट रहा है। युवा लड़कियों में इस तरह का फैशन चिन्ता का विषय है। स्त्री-शरीर को ब्रा के बंधन से मुक्ति की माँग, पता नहीं, कितनी उचित है, लेकिन ब्रा पहनने का भी एक वैज्ञानिक पक्ष है।
ब्रेस्ट कैंसर के डॉक्टर्स कहते हैं कि ब्रा (अंतःवस्त्र) पहनना आवश्यक है। इससे स्तन बँधे रहते हैं। अन्यथा स्तनों में गाँठ होने का डर रहता है, जो आगे चल कर कैंसर जैसी जघन्य बीमारी बन सकता है।
मेरा ख्याल है, हमें डॉक्टर्स की बात माननी चाहिए और ब्रा न पहनने को नारी मुक्ति से नहीं जोड़ना चाहिए।
ब्रा पहनने और न पहनने दोनों स्थितियों में कुछ वैज्ञानिक तथ्य हैं। डॉ कहते हैं कि सोते समय नहीं पहनना चाहिए और काला रंग भी अवॉइड करना चाहिए। -शैला सिंह
मैंने कहीं पढ़ा था कि ब्रा पहनने से ब्रेस्ट कैंसर की आशंका बढ़ जाती है क्योंकि ब्रा के कारण तापक्रम थोड़ा बढ़ा हुआ रहता है। -मनोज खरे