Girish Malviya : ‘न खाऊँगा न खाने की दूँगा’ की बात करने वालों की यह असलियत यदि आप पढ़ लेंगे तो समझ जाएँगे कि यह बात करने वालों का दावा कितना बड़ा झूठ था, बशर्ते आप अंधभक्त न हों! सोशल मीडिया पर एक वैकेंसी खूब चर्चा रही… यह विज्ञापन रेलवे में बड़े पैमाने पर कैटरिंग सर्विसेज प्रोवाइड करने वाली एक कंपनी ने दिया था. ब्रंदावन फूड प्रोडक्ट्स कम्पनी रेलवे के लिए काम करने वाले हॉस्पिटैलिटी कॉन्ट्रैक्टर्स में से एक है.
यह कंपनी मौजूदा समय में 100 रेलगाड़ियों में खाना बेचने का काम करती है। इस कम्पनी ने 6 नवम्बर को एक अंग्रेजी दैनिक में विज्ञापन दिया जिसमें कहा गया था कि रेलवे फूड प्लाजा, ट्रेन कैटरिंग, बेस किचन और स्टोर मैनेजर जैसे विभागों में विभिन्न प्रबंधकीय पदों के लिए 100 पुरुषों की आवश्यकता है। कंपनी ने इसके लिए शर्त रखी कि आवेदक अच्छी पारिवारिक पृष्ठभूमि, 12वीं पास होना चाहिए, इन 100 लोगों को देश के किसी भी हिस्से में काम करना पड़ सकता है.
लेकिन सबसे कमाल की शर्त यह थी कि इस नौकरी के आवेदक केवल अग्रवाल व वैश्य (यानि बनिया) समुदाय के पुरुष ही होने चाहिए इस विज्ञापन पर हंगामा खड़ा हो गया कि किस तरह से सरे आम धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव किया जा रहा है, वह भी रेलवे को कैटरिंग सर्विस उपलब्ध कराने वाली कम्पनी के द्वारा? लेकिन हमारी इस पोस्ट का विषय यह नहीं है. यह पोस्ट इससे आगे की कहानी कहती है!
क्या आपने रेल नीर घोटाले का नाम सुना है? सन 2015 में एक घोटाला पकड़ में आया था जिसमें पाया गया कि राजधानी और शताब्दी जैसी सुपरफास्ट ट्रेनों में रेल नीर के स्थान पर सस्ता सीलबंद पानी बेचा गया. इन लाइसेंसधारकों ने रेलवे विभाग से प्राप्त धनराशि से अन्य ब्रांडों के पेयजल की आपूर्ति की, जो एक अपराध है. बता दें कि ईडी ने इस मामले में सीबीआई एफआइआर के आधार पर केस दर्ज किया था। इसमे वृदावन फूड प्रोडक्ट्स का भी नाम है.
दरअसल ब्रंदावन फूड प्रोडक्ट्स नामक यह कंपनी आरके एसोसिएट्स की ही है जिसके मालिक श्याम बिहारी अग्रवाल हैं जो रेल नीर घोटाले की मुख्य कर्ता धर्ता है. रेल नीर घोटाले का आरोप जिन 7 कंपनियों पर लगा था उन 7 में से 4 कंपनियां एक ही परिवार से हैं. यह चार की चार कंपनियां आर के एसोसिएट्स एंड होटेलियर्स की हैं. बाकी की 3 कंपनियों में भी इस परिवार के सदस्य शेयर होल्डर हैं. कहा जाता है कि रेलवे में छोटे से लेकर हर बड़ा अधिकारी आर के एसोसिएट्स के बारे में जानता है.
आपको जानकर बेहद आश्चर्य होगा कि इंडियन रेलवे के करीब 70 फीसदी कैटरिंग का जिम्मा शरण बिहारी अग्रवाल और उसकी बनाई कंपनियों के पास आज भी मौजूद हैं. अग्रवाल ने महज एक दशक में 500 करोड़ से अधिक की संपत्ति बना ली है. यह बात भी रेल नीर घोटाले के सामने आने बाद सामने आयी थी. रेलवे की कैटरिंग पॉलिसी को शरण बिहारी अग्रवाल अपने हिसाब से मोल्ड कर लेते हैं. रेल नीर घोटाले की जाँच कर रहे सीबीआई अधिकारी ने बताया था कि जब भी रेलवे में कोई कॉन्ट्रैक्ट खुलता तो अग्रवाल किसी दूसरे शख्स के नाम पर एक कंपनी बना लेता था और येन केन प्रकारेण वह कांट्रेक्ट हासिल कर लेता था.
M/s R K Associates & hoteliers के डायरेक्टर हैं शरण बिहारी अग्रवाल, सुषमा अग्रवाल, और प्रिया अग्रवाल. शरण बिहारी अग्रवाल ही इसके कर्ता धर्ता हैं. आर के नाम रत्ना कुमारी के नाम से लिया गया है. रत्ना जी के तीन बेटे हैं. शरण बिहारी अग्रवाल, विजय कुमार अग्रवाल और अरुण अग्रवाल. शरण बिहारी अग्रवाल की कंपनी बनी आरके एसोसिएट्स एंड होटेलियर्स. विजय कुमार की कंपनी हुई सत्यम कैटरर्स और अरुण अग्रवाल की कंपनी हुई सनशाइन. शरण बिहारी अग्रवाल के दो बेटे हैं राहुल और अभिषेक अग्रवाल. इन दोनों के नाम हैं वृंदावन फूड प्रोडक्ट्स.
अग्रवाल परिवार के बारे में यह सारी जानकारी ABP न्यूज़ के एक लिंक से मिली , जिसमें बताया गया था कि आकड़ों के मुताबिक अकेले 1.1.2014 से 31.10.2014 यानि 10 महीने में ब्रंदावन फ़ूड प्रोडक्ट्स के खाने की 212 शिकायतें आई. आर के एसोसिएट्स की 138 शिकायतें आईं. सनशाइन कैटेरेर्स की 114. सत्यम कैटेरेर्स की 68 और रूप कैटेरेर्स की 54 . लेकिन सभी में जुर्माना लगा कर और वार्निग दे कर छोड़ दिया गया.
यहाँ तक कि 2017 में सीएजी ने संसद में अपनी जो रिपोर्ट पेश की थी उसमे यह साफ लिखा था कि रेलवे कैटरिंग में कुछ कंपनियों की मोनोपोली चलती है, जिसे तोड़ने के लिए रेलवे की तरफ से सफल प्रयास नहीं किए जा रहे हैं. सच यह है कि रेलवे और उसके कुछ अफसरों ने एक कंपनी के सामने बीते कई दशकों में किसी दूसरी कंपनी को रेल कैटरिंग के क्षेत्र में खड़ा होने ही नहीं दिया हैं. CAG ने इस रिपोर्ट में यह भी कहा था कि ट्रेन और रेलवे स्टेशनों पर मिलने वाला खाना इंसान के खाने लायक नहीं है.
RK एसोसिएट की पकड़ बीजेपी सरकार में बहुत गहरी है. जब रमन सिंह की सरकार थी तब छत्तीसगढ़ में ‘मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा योजना’ का काम भी उन्हीं को दिया गया. शिवराज सिंह की कृपा से मध्यप्रदेश सरकार के तीर्थ यात्रियों को भी अग्रवाल की फर्म कई बार यात्रा करा चुकी है। समाज कल्याण विभाग के अफसरों के अनुसार एक ट्रिप का न्यूनतम भुगतान एक करोड़ रुपए के आसपास किया जाता है।
2015 में रेल नीर घोटाले में आर के असोसिएट्स और ब्रंदावन फूड प्रॉडक्ट के मालिक श्याम बिहारी अग्रवाल, उनके बेटे अभिषेक अग्रवाल और राहुल अग्रवाल के आवास से 20 करोड़ रुपए नगद बरामद किए गए थे और उन्हें गिरफ्तार कर तिहाड़ भेज दिया गया था. लेकिन पता नहीं मोदी सरकार में इनकी कौन-सी ऐसी सेटिंग है जिसके चलते उनकी कम्पनी को ब्लैक लिस्ट नहीं किया जा रहा, जबकि रेलवे कैटरिंग पॉलिसी में किसी कंपनी के खाने के बारे में बार-बार शिकायत मिलने पर कंपनी को ब्लैक लिस्ट करने का प्रावधान भी है. शताब्दी और राजधानी जैसी सुपरफास्ट ट्रेनों में हजारों शिकायतें ट्रेन के खाने को लेकर की जाती है लेकिन ठेका निरस्त जैसी एक भी कार्यवाही नहीं की जाती जबकि उपभोक्ता न्यायालय तक ने इनके खिलाफ ‘सेवा में कमी’ के डिसीजन तक दिए हैं.
ऐसी दागी कंपनियों को मोदी सरकार में आज भी रेलवे के ऐसे बड़े बड़े ठेके दिए जा रहे हैं जिसमें वह स्वजातीय लोगों का रिक्रूटमेंट कर रहे हैं.. यह विज्ञापन बता रहा है कि इसके मालिक कितने बेखौफ हैं जो खुलकर अपने विज्ञापन में ‘आपल्याचं पाहिजे’ लिख रहे हैं.. दरअसल दागी ओर घोटालेबाज कंपनियों को मोदी सरकार में कोई फर्क नहीं पड़ा है और ‘न खाऊँगा न खाने दूँगा’ की बात बिल्कुल झूठ है.
आर्थिक मामलों के विश्लेषक गिरीश मालवीय की एफबी वॉल से.
prem p
November 8, 2019 at 8:53 pm
बनिए के बच्चे…. वाह । ठाकुर के बच्चे, पंडत के बच्चे..। कैसी भाषा है….शब्दों का टोटा पड़ गया लगता है। पत्रकार ही तो हैं। भगवान नहीं। ‘मालवीय के बच्चे’ कहना मुझे तो खराब लगेगा। विज्ञापन देने वाले और उस पर बेहतरीन खबर करने वाले की मानसिकता मे अंतर कहां है।