संजय कुमार सिंह-
और अब पहलवानों को धमकाने का मामला… दिल्ली पुलिस पहलवानों से सबूत (वीडियो) मांग रही है। मतलब कि रक्षक भक्षक बन जाए तो उसे रिकार्ड करो, जो कर रहा है करने दो। इसलिए नहीं कि उससे भक्षक को सजा हो जाएगी बल्कि तब पुलिस (और प्रभावी भक्षक) कह पायेगा कि इस वीडियो से उसे ब्लैकमेल किया जा रहा था या इसीलिए बनाया गया था। भाजपा के एक नेता और पूर्व गृहमंत्री चिन्मयानंद के मामले में ऐसा हो चुका है। और ऐसे वीडियो वाले मामले को हनी ट्रैप कहने की कहानी भी पुरानी है। हाल में अरुण जेटली के सुपुत्र के मामले में भी ऐसा ही सुनने में आ रहा है।
पहलवानों का मामला दबाव डालकर मामला वापस लेने के लिए मजबूर करने का भी लग रहा है। आज छपी खबरों के अनुसार अवयस्क के पिता ने ऐसा कहा है और बजरंग पूनिया ने भी आरोप लगाया है। जाहिर है, यह भी अपराध है। पर सैंया भये कोतवाल का मामला है। पूरा पढ़ना चाहें तो मीडिया विजिल देखिये।
चार्जशीट दायर करने का आश्वासन देकर सबूत मांगना भी धमकाना ही है। इस पुलसिया रणनीति के बारे में कौन नहीं जानता है कि तुम्हारे पास सबूत नहीं है तो तुमने आरोप कैसे लगा दिया। अब तो तुम्हारे खिलाफ भी कार्रवाई हो सकती है। यह कोई नई चाल नहीं है। भले इस मामले में ऐसा नहीं हुआ हो पर यह धमकाना ही है। देखते रहिये, फिल्म अभी बाकी है मितरों।
नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में डबल इंजन अलग दिशाओं में काम कर रहा है और तब, ये तो होना ही था। आज जानिये कि पहलवानों का मामला निपटाने के लिए ‘सरकार’ ने क्या किया। और जो किया उसका नतीजा यह है कि पहलवानों की खबर पहले पन्ने पर आ गई है। संक्षेप में, साक्षी ने कहा है कि पहलवानों पर समझौते का भारी दबाव है। वे व अन्य पहलवान भारी दबाव से गुजर रहे हैं। नाबालिग पहलवान भी तनाव में है। साक्षी ने कहा कि बृजभूषण केस दर्ज होने के बाद खुला घूम रहे हैं, उनकी जल्द गिरफ्तारी होनी चाहिए। वह बाहर रहकर जांच को प्रभावित कर रहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने पहले पन्ने पर बताया है कि इस खबर का विस्तार अंदर है। खेल पन्ने पर टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस खबर को बजरंग पूनिया की फोटो के साथ चार कॉलम में भी छापा है। शीर्षक है, “ब्रजभूषण जांच को प्रभावित कर रहे हैं”।
फिर भी यकीन रखिये, कानून सबके लिए बराबर है
टैक्स के पैसों के दुरुपयोग पर बिलखने वालों को शायद पता नहीं होगा कि मनीष सिसोदिया को जमानत का विरोध करते हुए यह दलील दी गई थी कि वे प्रभावशाली हैं और सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकते हैं। ब्रजभूषण सिंह के खिलाफ (आरोप वापस लेने का मामला) इसके संकेत तो हैं ही, बजरंग पूनिया और दूसरों ने आरोप भी लगाया है। पर न्याय होना ही नहीं चाहिए, लगना भी चाहिए कि चिन्ता किसी को नहीं है। उसे भी नहीं जो यह कहकर सत्ता में आया था कि उसका कोई नहीं है वह किसके लिए पक्षपात करेगा। और उन लोगों को भी नहीं जो कहते नहीं थकते थे कि धर्म विशेष के लोगों का संकट यही सरकार दूर कर सकती है। यहां पीड़ित और सरकारी संरक्षण या कवच प्राप्त लोगों का धर्म एक ही है। भले मामला अलग था पर नेशन वांट्स टू नो को हफ्ते भर में जमानत मिल गई थी और उमर खालिद को अभी भी नहीं मिली, सिद्दीक कप्पन का मामला याद ही होगा।
कितना मुश्किल है भारत के लिए पदक जीतना और उसे संभाले रखना… इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के आधार पर…
- शिकायतकर्ता महिला पहलवानों में से एक को कुश्ती संघ के ऑफिस ले जाया गया।
- अध्यक्ष (पता नहीं पूर्व या मौजूदा) का घर उसी परिसर में है, उस समय घर पर ही थे।
- इस काम के लिए पांच पुलिस वाले लगाये गए थे, इनमें दो महिलाएं थीं।
- इंडियन एक्सप्रेस के संपर्क करने पर डीसीपी, प्रणव तायल ने टिप्पणी नहीं की।
- दिल्ली पुलिस ने यह सुनिश्चित नहीं किया ( या कर पाई) कि इसका शोर न मचे।
- सांसद ब्रज भूषण सिंह ने बाद में कहा कि कोई उनसे मिलने नहीं आया।
- महिला पहलवान को ब्रज भूषण सिंह के घर ले जाने की खबर गलत है।
(दिल्ली पुलिस के डीसीपी ने ट्वीटर पोस्ट में कहा) - यह खेल मंत्री के इस आश्वासन के बाद हुआ कि चार्ज शीट 15 जून तक दाखिल होगी।
- पहलवानों ने इसके बाद ब्रजभूषण की गिरफ्तारी की मांग टाल दी थी।
- एक अवयस्क ने दो बार यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था पर बाद में उसे वापस ले लिये हैं।
मुद्दा सिर्फ यह नहीं है कि ब्रज भूषण सिंह ने जो किया उसकी सजा मिले। वो तो पहली जरूरत है। लेकिन उसके बिना कौन अपनी बेटी को ओलंपिक भेजेगा और जो जाएंगी वो पदक लाएंगी या सांसदों / मंत्रियों / खेल संगठनों के पदाधिकारियों से शोषण करवाएंगी? कॉमनवेल्थ गेम्स में भ्रष्टाचार पर हंगामा याद है। पदक कम मिलने पर कटाक्ष तो याद ही होगा। पदक मिलने पर श्रेय लेना, फोटू खिंचवाना कौन भूला होगा। पर पदक के लिए माहौल अनुकूल रहे इसकी चिन्ता देशभक्त सरकार को नहीं है तो किसे होनी चाहिए?