जितेन्द्र विसारिया-
सिद्धार्थ गौतम बुद्ध ने अर्धरात्रि में पत्नी-बच्चे को सोता छोड़ गृहत्याग नहीं किया था, बल्कि उन्हें देश निकाला मिला था!!!
हम सभी ने सिद्धार्थ गौतम बुद्ध के महाभिनिष्क्रमण (गृह त्याग) के पीछे की वह प्रसिद्ध कहानी तो सुनी ही है, जिसमें वे एक दिन नगर भ्रमण को निकलते हैं. रास्ते में उनका सामना एक वृद्ध; एक रोगी; एक मृत और सन्यासी से होता है। इस मुलाक़ात के बाद उनका और उनके सारथी के बीच का संवाद लगभग हम सभी जानते ही हैं, जिसमें उन्हें सर्वप्रथम दुख के बारे में पता चलता है. वे अत्यंत विचलित होकर मन ही मन संन्यास का निर्णय ले लेते हैं.
…लेकिन क्या यह कहानी आपको तर्कसंगत लगती है, या फिर मात्र कल्पित दिखाई पड़ती है? जिस व्यक्ति की माँ उसे सात दिन का छोड़ मरी हो, उसके पिता, विमाता और उनके राज्य के मंत्रीगण स्वयं वृद्ध हो चले थे, क्या उन्हें उसने कभी बीमार पड़ते न देखा होगा…?
किंतु यही सर्वाधिक प्रचलित कहानी है, जिसे हम सब बचपन से सुनते आए हैं. आप स्वयं विचार कीजिए और बताइये कि कोई भी व्यक्ति जो परिवार-विमुख है, वह पक़्क़ा समाज-विमुख भी होगा-वह समाज-कल्याण कर सकता है?
नहीं न…तो आइए हम मूल बौध्द ग्रन्थों में से एक खुद्दक निकाय’ के ‘सुत्तनिपात’ के अट्ठकवग्ग में अत्तदण्डसुत्त की बुद्ध के गृहत्याग सम्बन्धी एक कथा देखते हैं, जिसे शायद ही कभी आपनव सुना हो? उसका थोड़ा सा हिस्सा सन्दर्भ के रूप में नीचे लिख रहा हूँ :
अत्त्द्ण्डा भवं जातं, जनं पस्सच मेषकं।
संवेनं कित्त्यिस्सामि यथा संविजितं मया॥१॥
फ़न्दमानं पजं दिस्वा मच्छे अप्पोदके यथा।
अज्जमज्जेहि व्यारुद्धे दिस्वा मं भयमाविसि॥२॥
समन्तसरो लोको, दिसा सब्बा समेरिता।
इच्छं भवन्मत्तनो नाद्द्सासिं अनोसितं।
ओसाने त्वेव व्यारुद्धे दिस्वा अरति अहु॥३॥
अर्थ=
“शस्त्र धारण भयावह लगा. मुझमें वैराग्य उत्पन्न हुआ, यह मैं बताता हूँ. अपर्याप्त पानी मैं जैसे मछलियां छटपटाती हैं, वैसे एक-दूसरे से विरोध करके छटपटाने वाली प्रजा को देखकर मेरे मन में भय उत्पन्न हुआ. चारों ओर का जगत असार दिखायी देने लगा, सब दिशाएं काँप रही हैं, ऐसा लगा और उसमें आश्रय का स्थान खोजने पर निर्भय स्थान नहीं मिला, क्योंकि अन्त तक सारी जनता को परस्पर विरुद्ध हुए देखकर मेरा जी ऊब गया।”
मै इसको स्पष्ट कर देता हूँ, क्योंकि अभी कहानी अधूरी लग रही है. इसलिए मैं इसे आपको शुरू से समझाता हूँ. …एकबार शाक्य और कोलियों संघों का रोहणी नदी के सिंचाई के पानी को लेकर विवाद हो गया. शाक्य संघ ने जब कोलियों के खिलाफ युद्ध की बात कही, तब कपिलवस्तु के राजकुमार बुद्ध ने इस प्रस्ताव का विरोध किया. एक ओर शाक्य संघ बुद्ध का पितृकुल था, तो दुसरी ओर कोलिय उनका मातृकुल. बुद्ध के स्नेह की डोर दोनों छोरों से बँधी थी. तब बचपन से उदार और कारुणिक बुद्ध ने शाक्य संघ से स्पष्ट कहा, “युद्ध समस्या का समाधान नहीं है.” लेकिन बहुमत युद्ध के समर्थन में था और बुद्ध युद्ध के विरोध में थे. बुद्ध तब भी अपने फैसले पर डटे हुए रहे.
शाक्य संघ के सेनापति ने बुद्ध से कहा कि उनको यह फैसला मानना होगा वरना वे :
- सेना में भर्ती होकर युद्ध में भाग लें.
- फांसी या देश निकाला.
- अपने परिवार का सामाजिक बहिष्कार और खेतों के जब्त के लिए राजी होना.
बुद्ध ने अपने लिए फाँसी या देश निकाला चुना. अब जबकि बुध्द देश निकाला स्वीकार कर चुकें हैं, तब शाक्य संघ के सेनापति बुद्ध से यह चिंता व्यक्त करते हैं कि अगर कौशल नरेश को यह पता चलता है कि संघ ने बुद्ध को देश निकाला दिया है, तो कौशल नरेश शाक्य संघ के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही कर सकते हैं. इसलिए तब स्वयं बुद्ध ही संघ को कौशल नरेश के कोपभाजन से बचाने के लिये, स्वयं के परिव्राजक बन जाने का सुझाव देते हैं। इससे देश निकाले का आदेश भी पूरा हो जाएगा और कौशल नरेश तक यह संदेश भी कि चला जाएगा कि सुकीति गौतम स्वयं की इच्छा से परिव्राजक हो गए हैं.
अब सेनापति फिर से एक समस्या बताता है कि सिद्धार्थ गौतम को परिव्राजक बनने से पूर्व, अपने माता-पिता और पत्नी की अनुमति लेना जरूरी है. आप अभी कुछ ही समय बाद संघ प्रमुख बनने वाले हैं, सो आपके परिवारजन आपको परिव्राजक तो नहीं ही बनने देंगे, तब फिर देश निकाला कैसे होगा? तब एक बार फिर सुकीति गौतम अपने संघ के सेनापति को विश्वाश दिलाते हैं कि वे अपने परिवारजनों से अनुमति अवश्य प्राप्त करने में सफल हो जाएंगे. यदि ना भी ले पाए तो भी वे परिव्राजक बनेंगे, क्योंकि युद्ध से जनहानि को रोकने का उनके पास अब कोई और उपाय भी नही है.
इसके बाद बुद्ध अपने माता-पिता, पत्नी से अनुमति लेने अपने महल जाते है. बुद्ध का इस सम्बंध पत्नी कञ्चना उर्फ़ यशोधरा के साथ हुआ वार्तालाप बड़ा ही महत्त्वपूर्ण है. यशोधरा बुद्ध से कहतीं हैं, “आपने राज्य के लिए जो निर्णय लिया, वह अत्यंत सराहनीय है, ऐसे कल्याणकारी कार्य में वह स्वयं भी अवश्य शामिल होती, यदि उनका पुत्र राहुल छोटा ना होता”. यानि वह वीर यशोधरा तो स्वयं अपने पति के निर्णय से गर्वित है. दुख तो मानव होने के नाते यशोधरा क्या स्वयं बुद्ध को भी हुआ ही होगा, पर क्या कोई भी महामानव ऐसा ही निर्णय जनकल्याण के लिए नही लेता है? अवश्य ही लेता है.
अतः हम कह सकते है कि उन्होंने पूरी तरह अपने पिता शुद्धोधन, अपनी विमाता प्रजापति गौतमी और पत्नी यशोधरा से सहमति और अनुमति लेकर घर से महाभिनिष्क्रमण किया था।जब सिद्धार्थ ने कपिलवस्तु छोड़ा, तो अनोमा नदी तक जनता उनके पीछे-पीछे आयी थी, जिसमें उनके पिता शुद्धोधन और उनकी विमाता प्रजापति गौतमी भी उपस्थित थे. बुद्ध के जाने के बाद उनकी मुकुट और पगड़ी को कपिलवस्तु में एक स्थान पर रखकर एक उत्सव मनाया गया था, जिसका उल्लेख हमें भरहुत से मिले एक स्तूप शिल्पांकन में मिलता है।
सिद्धार्थ गौतम ने अपने माता पिता और पत्नी से आज्ञा लेकर देश छोड़ दिया. यशोधरा ने बुद्ध के इस निर्णय में साथ दिया. यह सब बुद्ध ने युद्ध ना होने के लिए किया था, ना कि अपने किसी निजी स्वार्थ के वशीभूत होकर.
जिज्ञासु साथियों को यह सब राहुल सांकृत्यायन सम्पादित पुस्तक ‘मंझिम निकाय’ के राजवग्ग में मधुरिये-सुत्त बोधिराजकुमार-सुत्त 2 (२)- महासिहनद-सुत्त -बुद्ध-जीवनी(तपस्या। आलेचक-व्रत। आहार-शुद्धि।) के अध्ययन से, यह साफ हो जाएगा कि उपरोक्त तथ्य ही प्रमाणिक और बाक़ी महज एक झूठ कि जिसका सच्चाई से इसका कोई लेना-देना नहीं. सम्भवतः यहीं से सन्दर्भ लेकर बाबा साहेब आम्बेडकर ने अपने अंग्रेजी ग्रन्थ ‘बुद्ध एंड हिज़ धम्म’ ग्रन्थ में, बुद्ध के वास्तविक गृहत्याग की कथा दोहराई है, जिसका स्पष्टीकरण ग्रन्थ के हिंदी अनुवादक भदंत आनंद कौशल्यान ने अपनी भूमिका में भी दिया है.
किसी ने कह दिया बुद्ध यशोधरा को सोते हुए छोड़ गए थे और आप उसी का राग अलापने लग गए. वैसे ये बुद्ध के खिलाफ कोई नया ट्रेंड नहीं है, बहुत समय से कवि और कवियित्रियों ने बेशुमार फ़र्ज़ी कविताएँ लिख-लिख कर बुद्ध को भगौड़ा साबित करने में अपना समय और मेधा? को बर्बाद किया है.
उन्हें ‘अत्त दीप भवः’ का उदघोष करने वाले स्वतंत्र चेता महकारुणिक तथागत बुद्ध की प्रज्ञा हज़म नहीं होती.
सन्दर्भ :-
1.The Buddha and His Dhamma(बुध्द और उनका धम्म) Dr. BR Ambedkar की भूमिका और पृ.19-25.
- मज्झिम निकाय-राहुल सांकृत्यायन.