मैली होती पत्रकारिता… कोरोना नाम का दुश्मन हमारे देश में घुसकर हमें बहुत नुकसान पहुंचा चुका है,लेकिन हमने डटकर उसका सामना किया और अब कोरोना को हराने की कोशिशें जारी हैं…कोरोना दानव से निपटने के लिए सरकार ने पूरे देश मे लॉक डाउन कर दिया..और मजबूर लोगो को राहत भी पहुँचाई जा रही है…
इस बीच सरकार का आदेश आता है कि कोई भी संस्था या कंपनी अपने कर्मचारियों का वेतन नहीं काटेगी…लेकिन उनका क्या जिन्हें पहले से ही कई महीनों से वेतन न मिला हो! उनका क्या जो अपनी ही मेहनत की कमाई के लिए मन मर्जी करने वालो के सामने गिड़गिड़ाने को मजबूर है…!
मैं एक पत्रकार हूँ और मुझ जैसे ही कई पत्रकारों की और अपनी परेशानी लोगों तक पहुचाना जरूरी समझता हूँ…
जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ चिरकुट न्यूज संस्थानों के बारे में…. “न्यूज़ भारत”, एमपी नगर भोपाल, और “भास्कर न्यूज़ (स्काई न्यूज़)” लिंक रोड भोपाल जैसे कई संस्थान हैं जो दो कमरे, 6 कुर्सी, 4 कम्प्यूटर और थोड़ा सा पैसा लगा कर 20 लोगों को नौकरी के नाम पर रखते हैं और गधों की तरह काम कराते हैं… जब सैलरी की तारीख आती है तो गायब हो जाते हैं…
सैलरी के नाम पर उम्मीदों से भरे नए पत्रकारों को लॉलीपॉप पकड़ा दिया जाता है… जो ज्यादा विरोध जताते हैं उन्हें सैलरी के नाम पर बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है..
फिर क्या… कुछ समय बाद चैनल का नाम, निशान, नंबर, नक्शा सब बदल जाता है… एक बार फिर कुछ नए लोग खुद को ठगवाने के लिए भर्ती हो जाते हैं… फिर इन्ही में से कुछ लोग बाहर जा कर पत्रकारिता का नाम मैला करते हैं…
आखिर क्यों लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का लोग अब अपमान करने से नहीं डरते… आखिर क्यों अब एक पत्रकार पर लोगों को भरोसा नहीं रहा…?
आखिर क्यों पत्रकारिता को बिकाऊ शब्द से जोड़ा जाने लगा है..?
आखिर कौन है इसका जिम्मेदार..! वो रिपोर्टर और कैमरामैन जो बाहर जा कर मीडिया का नाम खराब करता है…या वो ठग जिसने समय पर सैलरी का वादा करके 6 महीने से एक धेला नहीं दिया…
इस सवाल का जवाब सभी को पता है..पर कोई बोलेगा नहीं..क्योंकि उन्हें भी तो अपने बीवी बच्चे पालन हैं न… तालाब में रह कर मगरमच्छ से कौन बैर लेगा साहब…!
Rishabh Soni
[email protected]
Jyoti Chouhan Bankhede
May 21, 2020 at 10:54 pm
This is true. I am one of them.
मोहित पहाड़े
May 24, 2020 at 5:36 pm
किस मीडिया संस्थान में थी आप.?