1974 का मामला अब टिकने से रहा; इस बार का पुलवामा क्या होगा, कब होगा या नहीं होगा?
संजय कुमार सिंह
चुनाव के लिए मुद्दा तलाशने की सरकारी कोशिश अब हताशा में बदलती जा रही है। 1974 के कच्चातिवु द्वीप मामले को फिर से जिन्दा करके कांग्रेस को बदनाम करने की देशभक्ति दिखाई जा रही है। हालांकि लोकतांत्रिक ढंग से निष्पक्ष चुनाव कराना भी सरकार का ही काम है और सरकार साफ-साफ तानाशाही की ओर बढ़ती लग रही है। बड़े-बड़े संपादकों को जो नहीं समझ में आ रहा है वह एक युवा यूट्यूबर ध्रुव राठी को समझ में आ रहा है। दिलचस्प यह कि उसके कई ‘आंखें खोलने और चौंकाने वाले’ वीडियो के बावजूद लोग सवाल करते हैं कि ऐसा होता तो ध्रुव राठी ऐसे वीडियो बना पाता। इस बार के वीडियो में उसका भी जवाब है पर मुझे बताना है कि 1974 के मामले को मुद्दा बनाकर कांग्रेस को बदनाम करने की कोशिश शुरू हुई तो कांग्रेस से आयकर वसूली के पुराने मामले में उसके बैंक खाते फ्रीज कर दिया जाना भी तानाशाही पूर्ण कार्रवाई है।
हालांकि, आयकर विभाग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वह पार्टी के लिए समस्या खड़ी करना नहीं चाहता है। आज टाइम्स ऑफ इंडिया की लीड यही खबर है। शीर्षक है, चुनाव तक कांग्रेस के खिलाफ कोई जबरदस्ती/अवपीड़क कार्रवाई नहीं की जाएगी – आयकर (विभाग)। मुझे लगता है कि देश में जब यह चर्चा आम है कि 2024 का चुनाव भाजपा जीत गई तो आगे चुनाव नहीं होंगे और इस चुनाव के लिए भी लेवल प्लेइंग फील्ड नहीं है, नरेन्द्र मोदी ने अपनी पसंद के चुनाव आयुक्त बनाये हैं तब देश और लोकतंत्र की रक्षा करने वाली यह खबर आज की निर्विवाद लीड होनी चाहिये थी। पर नहीं है। आप जानते हैं कि इस खबर या आयकर विभाग द्वारा ऐन चुनाव के समय वसूली की मांग और उसके प्रचार से मतदाताओं को यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि पार्टी के खाते ठीक नहीं हैं, इलेक्टोरल बांड से पहले व्यवस्था ठीक नहीं थी। कुल मिलाकर, सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलेक्टोरल बांड को असंवैधानिक बताये जाने के बावजूद उसका बचाव किया जा रहा है।
पहले की व्यवस्था चाहे जितनी बुरी या अच्छी हो सच यही है कि तब लोगों को डरा धमकाकर वसूली नहीं होती थी। कहने की जरूरत नहीं है कि सरकारी पार्टी जब ऐसा करेगी तो दूसरे को कैसे रोक पायेगी और इसमें सरकारी एजेंसियों के उपयोग से जनप्रतिनियों को ब्लैक मेल कर दल बदलने के लिए मजबूर करने के मामले और आरोप दोनों हैं। यह सब करने वाली पार्टी खुद को देश भक्त बताने और कांग्रेस को देशविरोधी बताने में लगी है। इसमें अखबारों के सहयोग के उदाहरण देने से पहले कुछ पुरानी चीजों की चर्चा जरूरी है। अब इसमें कोई शक नहीं है कि पुलवामा सरकारी एजेंसियों की नाकामी से हुआ। कैसे हुआ अभी तक पता नही चला है और चुनाव में उसका फायदा उठाया गया। इस बार उम्मीद थी कि राम मंदिर या सीएए जैसे मुद्दों से काम चल जायेगा। लेकिन इलेक्टोरल बांड पर सुप्रीम कोर्ट के सख्त रवैये ने सरकारी पार्टी का खेल खराब कर दिया और भाजपा व मीडिया ही नहीं नरेन्द्र मोदी भी चुनाव जिताऊ मुद्दे या जुमले की तलाश में हैं। पर 10 साल में इतना विकास हो चुका है कि कोई मुद्दा टिक ही नहीं रहा है।
सबसे नया मुद्दा कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को देने का कांग्रेस सरकार का 1974 का फैसला है। आरटीआई से मिली यह जानकारी प्रधानमंत्री के अनुसार ‘आंखें खोलने और चौंकाने वाली’ हैं। सरकार के लिए यह काम किसी अखबार ने नहीं, भाजपा के तमिलनाडु प्रमुख के अन्नामलाई ने किया। आज के अखबारों में उसका विस्तार है। आइये, देखें चुनाव जीतने की कोशिश में कैसे और क्या किया जा रहा है। कच्चातिवु द्वीप को लेकर इतना विवाद पैदा कर दिया गया है कि द हिन्दू में यह खबर आज लीड है और शीर्षक है, कच्चातिवु मामले में केंद्र और कांग्रेस में विवाद। कहने की जरूरत नहीं है कि आरोप लगाया जायेगा तो जवाब देना ही पड़ेगा। यह अलग बात है कि आरोप सही हो तो भाजपा जवाब नहीं देती है और अखबार खबर नहीं छापते हैं। यहां कहीं कोने में छाप देते हैं। पहले पन्ने पर लीड नहीं बनाते हैं। चुनाव के समय ऐसी खबरों से हो सकने वाले नफा -नुकसान का ख्याल नहीं रखा जाये तो लेवल प्लेइंग फील्ड कैसे होगा? द हिन्दू में विदेश मंत्री एस जयशंकर (जो ना मंजे हुए राजनीतिक हैं ना संघ के कार्यकर्ता बल्कि एक रिटायर अधिकारी) का कहा हाईलाइट किया गया है और उसका जवाब पी चिदंबरम ने दिया है।
इससे भी लगता है कि मामले में दम नहीं है लेकिन आजादी के बाद पाकिस्तान के अलग होने के लिए अब कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है तो कच्चातिवु फिर भी 1974 का मामला है। एस जयशंकर ने कहा है, कांग्रेस और डीएमके ने संसद में यह मामला उठाया जैसे इसके लिए उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है जबकि वे ऐसा करने वाले एक पक्ष हैं। जवाब में चिदंबरम ने कहा है, विदेश मंत्री श्री जयशंकर कृपया 27.01.2015 के आऱटीआई जवाब का संदर्भ लेंगे …. जवाब में उन परिस्थितियों को न्यायोचित ठहरया गया है जिसमें भारत ने स्वीकार किया कि एक छोटा द्वीप श्रीलंका का है। जाहिर है, यह मामला सरकार की जानकारी में था और 2019 चुनाव में या उसे बाद इसकी जरूरत नहीं पड़ी तो ठंडे बस्ते में पड़ा रहा अब मजबूरी में निकाला गया है। द हिन्दू ने इस खबर के साथ यह भी बताया है कि पूर्व राजनयिकों की राय में इस संबंध में हो चुकी सहमति पर फिर चर्चा से संबंध खराब हो सकते हैं।
अब हमलोग जान चुके हैं कि भाजपा में एक व्यक्ति का फैसला होता है और वह तात्कालिक लाभ से अलग आगे-पीछे भी नहीं देखता है। मेरा मानना है कि इसी कारण इस चुनाव में भाजपा बुरी तरह फंसी हुई लगती है। पर वह अलग मुद्दा है। आज देखें कि कच्चातिवु को और किसने कैसे पेश किया है। टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर है। प्रधानमंत्री का आरोप, डीएमके द्वीप सौंपने से सहमत था पर दिखावे के लिए विरोध किया। इस खबर के साथ विदेश मंत्री का एक बयान है जो अरुणाचल प्रदेश के मामले में चीन पर है। शीर्षक है, नाम बदलकर आप जमीन के मालिक नहीं हो सकते हैं। इसके साथ कांग्रेस का बयान भी है। कांग्रेस का कहना है कि चीन से ध्यान बंटाने के लिए झूठी कहानी बनाई जा रही है। इन राजनीतिक और प्रचारात्मक खबरों के चक्कर में दिल्ली के गांव में चीता घुसने और आठ लोगों को जख्मी करने की खबर सिंगल कॉलम में है। यह पर्याप्त गंभीर मामला है जब सरकार ना तो बैंक में रखे पैसे की सुरक्षा सुनिश्चित कर पा रही है ना दिल्ली में रहने वाले लोग जानवर से सुरक्षित हैं। चिन्ता 1974 में श्रीलंका को दे दिये गये द्वीप की है। लद्दाख में 20 दिन से ज्यादा चले आंदोलन पर कोई सुनवाई नहीं हुई, सो अलग।
अरुणाचल प्रदेश का मामला नवोदय टाइम्स के शीर्षक से स्पष्ट होता है। चीन की फिर चालबाजी, अरुणाचल प्रदेश के 30 जगहों के नाम बदले। यह मामला कितना गंभीर है उसका पता यहां छपे एस जयशंकर के बयान से लगता है। उन्होंने कहा है, अरुणाचल भारत का था, है और रहेगा। एक खबर का शीर्षक है, पहले भी हिमाकत करता रहा है चीन और चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय जारी की नामों की चौथी सूची। इन खबरों के साथ यहां तेंदुए की खबर फोटो के साथ डबल कॉलम में है। कच्चातिवु की खबर यहां पहले या दूसरे पहले पन्ने पर नहीं है। हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर पहले पन्ने पर है। शीर्षक है, कच्चातिवु विवाद गहराया, सरकार और विपक्ष ने हमले तेज किये। इंडियन एक्सप्रेस का फ्लैग शीर्षक है, कच्चातिवु : जयशंकर ने अपना वजन डाला। मुख्य शीर्षक है, लंका के मंत्री ने कहा कि कच्चातिवु पर भारत से कोई संदेश नहीं है; केंद्र इसपर काम कर रहा है : तमिलनाडु भाजपा। द टेलीग्राफ का फ्लैग शीर्षक है, कच्चातिवु के नुकसान का आरोप कांग्रेस पर। मुख्य शीर्षक है, तमिलनाडु की सीटों के लिए मोदी समुद्र में उतरे।
केजरीवाल किहाड़ पहुंचे
आज अमर उजाला की लीड है – केजरीवाल ने लिया आतिशी-सौरभ का नाम … उन्हें रिपोर्ट करता था नायर। फ्लैग शीर्षक है, केस में नया मोड़ – ईडी का दावा। इसके साथ एक खबर है, पूछताछ में केजरीवाल ने अपनी पार्टी के कोषाध्यक्ष को बताया भ्रमित। जेल नंबर दो में रखे गये, तीन किताबें ले जाने की अनुमति, जेल से आदेश जारी करने पर ईडी फैसला ले : हाईकोर्ट और आज बड़ा खुलासा करेंगी आतिशी। पत्रकारिता का नियम है कि आरोप के साथ जवाब भी होना चाहिये। वह इस खबर में नहीं है (कम से कम शीर्षक और हाईलाइट किये हुए अंश में। मुख्य शीर्षक के बाद आतिशी या सौरभ का पक्ष लिया ही जाना था। ये दोनों नरेन्द्र मोदी की तरह प्रधानमंत्री या मीडिया से दूरी बनाये रखने वाले नहीं हैं। फोन पर उपलब्ध होते होंगे। वह सब नहीं है, कोशिश की गई होती तो वह भी लिखा जाना चाहिये था उसके बिना सिर्फ आरोप कोई क्यों पढ़े जब पता है कि सारा मामला पार्टी को फंसाने और बदनाम करने का है।
इसके बाद आज खुलासा करेंगी का क्या मतलब जब अरविन्द केजरीवाल ने जो खुलासा किया था वह आपके लिए ईडी के आरोप जैसा महत्वपूर्ण नहीं था। वैसे भी, ईडी के आरोप और एक अभियुक्त के अपना पक्ष खुद रखने में अंतर होता है। इसका एक शीर्षक था, ‘केजरीवाल कोर्ट में सात मिनट बोले और ईडी के केस को ध्वस्त कर दिया’। इसके बाद या इसके बिना ईडी के आरोप को ‘खबर’ कौन कहेगा? अमर उजाला में यह स्थिति तब है जब आज ही अमर उजाला में ही पहले पन्ने पर छपी एक खबर का शीर्षक है, शक्तियों व अधिकारों में संतुलन रखें जांच एजेंसियां : सीजेआई। कहा – अपराध की दुनिया तेजी से बदल रही है, एजेंसियां भी खुद को बदलें।
इंडियन एक्सप्रेस में केजरीवाल को तिहाड़ भेजे जाने की खबर लीड नहीं है। लेकिन टॉप पर है और शीर्षक है, केजरीवाल 15 अप्रैल तक तिहाड़ भेजे गये : ई़डी ने कहा वे सहयोग नहीं कर रहे, ठीक से जवाब नहीं दे रहे और भ्रमित कर रहे हैं। जाहिर है कि जबरन परेशान किये जाने पर जो करना चाहिये वे कर रहे हैं और हिरासत में रखने से कोई फायदा नहीं हुआ या हिरासत में रखने लायक सबूत नहीं है। अमर उजाला का शीर्षक यहां उपशीर्षक है और आम आदमी पार्टी के इस जवाब के साथ कि ईडी जो खुलासा कर रही है वह पुराना बयान है। रिपोर्टिंग में यह पक्षपात शर्मनाक है क्योंकि सबको पता होता है कि वह जो कर रहा है उसकी पुष्टि या खंडन दूसरे अखबार की खबर से हो सकती है।
इंडियन एक्सप्रेस की लीड का शीर्षक भी उल्लेखनीय है। फ्लैग शीर्षक है, पार्टी से 3567 करोड़ रुपये की वसूली के लिए जारी नोटिस। मुख्य शीर्षक है, कांग्रेस के ‘टैक्स टेरर‘ कहने के बाद आयकर विभाग ने अदालत से कहा, चुनाव खत्म होने तक कोई जबरदस्ती/अवपीड़क कार्रवाई नहीं होगी। इसके साथ एक और खबर है, लेवल प्लेइंग फील्ड की मांग पर चुनाव आयोग के अंदर बेचैनी। सूत्रों के हवाले से इस खबर में कहा गया है कि राम लीला मैदान की रैली में विपक्षी दलों द्वारा मांग उठाने के बाद यह स्थिति है। पर खबर यह भी है कि प्रधानमंत्री ने आरबीआई से कहा है, शपथग्रहण के बाद पहले ही दिन आपके बहुत सारा काम आ रहा है। आप समझ सकते हैं कि चुनाव के लिए कैसा माहौल बनाने की कोशिश चल रही है। बेशक पार्टी, प्रधानमंत्री या प्रधानसेवक या चौकीदार या परिवार के मुखिया को यह सब कहने कहने का हक है लेकिन अखबारों को यह सब क्यों करना चाहिये? इंडियन एक्सप्रेस में पढ़ने लायक ये खबरें हैं पर कच्चातिवु की खबर नहीं है। यही अंतर मैं रेखांकित करने की कोशिश करता हूं।