कोरोना काल के ये दाग बेहद गहरे हैं : भारतीय कविता के अप्रीतम हस्ताक्षर कुंवर नारायण का काव्यांश है: ‘लेकिन शहीद होना एक बिल्कुल फर्क तरह का मामला है/बिल्कुल मामूली जिंदगी जीते हुए भी लोग चुपचाप शहीद होते देखे गए हैं।’
हम कारोना काल के अंधकार युग को छू रहे हैं। कभी-कभी लगता है कि निहायत मुर्दा समाज में हैं और मुर्दों के बीच महज जिंदा रहने के नाम पर बस जैसे-तैसे जी भर रहे हैं। बेशक जिंदगी हार और हताशा का नाम तो कतई नहीं है।
कोरोना संकट में एकदम मामूली जिंदगी जीते हुए हाशिए के कई लोग शहीद हो रहे हैं। सांसों का चले जाना अथवा देह से रिश्ता टूट जाना है मर जाना नहीं होता बल्कि मिले जख्म और नारकीय हालात मृत्यु से भी बदतर होते हैं। इसे अब बड़े पैमाने पर शिद्दत के साथ जाना जा रहा है।
इन पंक्तियों का लेखक पंजाब में रहता है। सो वहां से कुछ ताजा मिसालें पेश हैं।
राज्य में बेशुमार लोगों को ‘कोरोना’ नाम से पुकारा जाने लगा है। कई परिवारों को ‘कोरोना फैमिली’। इसलिए कि वे संदिग्ध कारोना संक्रमित थे। ठीक होकर घर वापस आ गए। कुछ को तो यह अलामत थी ही नहीं। संदेह के आधार पर जरूरी चेकअप और टेस्ट करवाए थे कि कोरोना का ठप्पा लग गया। सरहदी जिले गुरदासपुर के कस्बे कादियां के निकटवर्ती गांव चीमा के रहने वाले जोगिंदर सिंह इनमें से एक हैं। उत्तराखंड की एक कंपनी में काम करते हैं। लॉकडाउन के चलते वह लौट आए और 4 दिन चंडीगढ़ तथा 4 दिन बटाला में आइसोलेशन वार्ड में रहे। घर लौटे तो गांव के ही कुछ लोग उन्हें ‘कारोना’ कहकर परेशान तथा अपमानित करते रहे। एतराज करने पर 28 मई की रात घर में घुसकर उन पर कातिलाना हमला कर दिया। वह गंभीर जख्मी हैं। मामला पुलिस के हवाले है।
जिला कपूरथला के गांव की युवती की मंगनी इसलिए टूट गई कि उसका कोरोना टेस्ट हुआ था जो नेगेटिव रहा। लेकिन संभावित ससुरालियों ने आनन-फानन में मंगनी तोड़ देने का फरमान सुना दिया। उसने अपने मंगेतर से बात की तो तल्खी में लड़की को ‘कारोना’ कहकर उस शख्स ने चिढ़ाया जो इससे ठीक पहले उसे जीने-मरने के वादे किया करता था। जालंधर की पॉश कॉलोनी में रहने वाली एक लड़की को उसके रिश्तेदारों ने ‘फैमिली व्हाट्सएप ग्रुप’ में ‘कोरोना गर्ल’ का संबोधन दिया। लड़की के कोरोना वायरस से संबंधित चिकित्सीय परीक्षण हुए थे। ‘कोरोना गर्ल’ के संबोधन के बाद वह गहरे मानसिक अवसाद में है। नवांशहर की 74 वर्षीय एक बुजुर्ग महिला स्मृतिदोष रोग से पीड़ित हैं। कोरोना की उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद उन्हें आइसोलेशन वार्ड में दाखिल कराया गया था तो यही उम्र लिखवाई गई थी। बताते हैं कि दाखिल करवाने वाले परिजन भी संपन्न घर के लगते थे। उन्हें 15 दिन के बाद आने के लिए कहा गया था। 25 दिन बीत गए, उनका कोई अता-पता नहीं। फोन बंद और लिखाया गया पता फर्जी। महिला के आधार कार्ड पर लिखे पते पर भी अब कोई दूसरा परिवार रहता है।
कोरोना पीड़ित हो जाने के बाद या शक के दायरे में आने पर अपने एकाएक मुंह फेर रहे हैं। ऐसी अनेक घटनाएं हैं जो असल में दुर्घटनाएं हैं। पीछे तरनतारन से खबर थी कि लगभग 80 साल के एक बुजुर्ग को डॉक्टर ने कोरोना टेस्ट के लिए कहा तो परिवार वालों ने उन्हें घर छोड़कर राधास्वामी सत्संग घर या किसी गुरुद्वारे में जाने के लिए कह दिया। उस बुजुर्ग ने खुदकुशी की कोशिश की और वह अब एक आश्रम में हैं। ताउम्र शायद इसी आश्रम में गहरे जख्मों के साथ रहना होगा। इस ‘शहादत’ को किस श्रेणी में रखा जाएगा?
बाहर के प्रदेशों से आए श्रमिकों के लिए जब पैसे का संकट खड़ा हुआ तो बेशुमार स्थानीय मकान-मालिकों ने उनसे जबरन ठीए-ठिकाने खाली करवाने शुरू कर दिए। यह सिलसिला जारी है। ऐसा उन जगहों पर भी हो रहा है या होता रहा जहां श्रमिक-पत्नियां सात-आठ महीने के गर्भ से हैं। प्रतिरोध की आवाज को दबाने के लिए एक पक्का इल्जाम लगाया जा रहा है कि यहां (इन मजदूरों के बीच) कोरोना संक्रमित भी रहता रहा है! या यह कहा जा रहा है कि ये थूकते हैं और इससे कोरोना फैलता है!! ऐसा करते-कहते हुए मकान-मालिक हद दर्जे की अनियमितताएं और अमानवीयता बरत रहे हैं। यकीनन थूक के दागों से ये दाग कहीं ज्यादा घातक हैं…।
लेखक अमरीक सिंह पंजाब के वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.