जितेंद्र कौशल सिंह-
बीते कल चाय की दुकान पर देश के न. 1अखबार के इस काला काण्ड खबर पर नजर गई..

हेडिंग–
बागपत में मुँह काला कर टूटे स्लीपर से गुजरी कई ट्रेने…
बेचारे बागपत वाले भारतीय रेल का काला मुँह देखकर बड़े सदमे में हैं..! टूटे स्लीपर से गुजरना ही था तो तुम ट्रेन सी गुजरती और मैं अखबार के पाठक की तरह थरथराता.. जैसे सर्जिकल स्ट्राइक वाला पढ़ कर मच्छरदानी के डंडे को एक-47 समझ तन कर खड़ा हो गया था देश की रक्षा के लिए…?
अब लखनऊ मण्डल के जनसम्पर्क अधिकारी बताये कि इस मुँह काला किये ट्रेन के दर्शनार्थियों को देश के न. 1अखबार के कार्यालय के बाहर खड़ा करवायेंगे या रेल म्युजियम में…!
रेलवे अधिकारियो को चाहिये कि टूटे स्लीपर से गुजरने वाली ट्रेनों का मुँह काला करवा दें, खबर देने वाले तो अपना काला भी सफेद समझते हैं।
बहरहाल अब उत्तर रेलवे को ट्रेन की खबर में मुँह काला करवाने वालों को सम्मानित करना चाहिए उन्हें पारितोषिक देकर विदा करना चाहिये कि उन्होंने मुँह काला किये गुजरने वाली ट्रेनों को इतना मजबूत भाग्य दिया किया टूटा स्लीपर भी उनका कुछ नहीं उखाड़ पाया जैसे जनता इस खबर को पढ़ने के बाद देश के नं.1अखबार का कुछ नहीं उखाड़ पाएगी..?
बस मुँह काला किये हुए ट्रेन का इंतजार करती रह जायेगी इस उम्मीद के साथ कि पत्रकारिता का य़ह मुँह कैसा होगा..!
One comment on “दैनिक जागरण कुछ ज़्यादा ही प्रयोगधर्मी हो गया है, देखिए ये हेडिंग!”
राज्य संपादक की कुर्सी पर बैठा शख्स जब आवाज उठाने वालों को अनर्गल आरोप लगाकर निकालने और ट्रांसफर पर आमादा हो तो अखबार का तो ये हाल होना ही है।
हाल ही में लखनऊ में काम कर रहे एक पूर्व छात्र संघ नेता के सामने एक नविदिग को खड़ा कर दिया गया। कहा गया कि वे मानसिक उत्पीड़न कर रहे थे, जबकि उक्त शख्स के बारे में कहा जाता है कि वे ऐसी मानसिक स्थिति में हैं कि उन्हें घर की याद नहीं आती।
डेस्क अलग, कोई लेना देना नहीं लेकिन संपादक के चाटुकारों से दुश्मनी भरी पड़ी, विषकन्या तो है ही यहां।