Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

रफाल से बुरी तरह डरी हुई है मोदी सरकार, दाल में जरूर कुछ काला है : डा. वैदिक

रफाल-सौदे के बारे में सरकार ने अदालत के सामने जो तर्क पेश किए हैं, वे बिल्कुल लचर-पचर हैं। वे सरकार की स्थिति को कमजोर करते हैं। सरकार का कहना है कि अरुण शौरी, यशवंत सिंहा और प्रशांत भूषण ने जो याचिका सर्वोच्च न्यायालय में लगाई है, वह रद्द की जानी चाहिए क्योंकि एक तो वह रक्षा-सौदे की गोपनीयता भंग करती है, दूसरा, वह गुप्त सरकारी दस्तावेजों की चोरी पर आधरित है और तीसरा वह सरकार की संप्रभुता पर प्रश्न-चिन्ह लगा देती है।

इन तर्कों से मोटा-मोटी क्या ध्वनि निकलती है कि दाल में कुछ काला है वरना सांच को आंच क्या ? जो भी गोपनीय दस्तावेज ‘हिंदू’ अखबार ने प्रकाशित किए हैं, क्या उनसे हमारा कोई सामरिक रहस्य भारत के दुश्मनों के सामने प्रकट होता है ? बिल्कुल नहीं। इन दस्तावेजों से तो सिर्फ इतनी बात पता चलती है कि 60 हजार करोड़ रु. का सौदा करते समय रक्षा मंत्रालय को पूरी छूट नहीं दी गई थी। उसके सिर के ऊपर बैठकर प्रधानमंत्री और उनका कार्यालय फ्रांसीसी कंपनी दासौ और सरकार के साथ समानांतर सौदेबाजी कर रहे थे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

प्रधानमंत्री और उनका कार्यालय किसी भी सरकारी सौदे पर निगरानी रखें, यह तो अच्छी बात है लेकिन इस अच्छी बात के उजागर होने पर आपके हाथ-पांव क्यों फूल रहे हैं? आप घबरा क्यों रहे हैं? हमारे प्रधानमंत्री और फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने इस सौदे की घोषणा एक साल पहले ही 2015 में कर दी थी। इसकी औपचारिक स्वीकृति तो केबिनेट कमिटी आॅन सिक्योरिटी ने 24 अगस्त 2016 को की थी। उस बीते हुए एक साल में फ्रांसीसी राष्ट्रपति की प्रेमिका को अनिल अंबानी की कंपनी ने एक फिल्म बनाने के लिए करोड़ों रु. भी दिए थे।

आरोप है कि बदले में इस सौदे में उसे भागीदारी भी मिली है। यदि इस सब गोरखधंघे से सरकार का कुछ लेना-देना नहीं है तो वह अपने खम ठोककर रफाल-सौदे पर खुली बहस क्यों नहीं चलाती? वह डरी हुई क्यों है? सरकार से उसकी सौदेबाजी पर यदि जनता हिसाब मांगती है तो इसमें उसकी संप्रभुता का कौनसा हनन हो रहा है ? वह जनता की नौकर है या मालिक है? अदालत ने उन दस्तावेजों की गोपनीयता का तर्क पहले ही रद्द कर दिया है। अब चुनाव के इस आखिरी दौर में यदि जजों ने कोई दो-टूक टिप्पणी कर दी तो मोदी के भविष्य पर गहरा असर होगा। जैसे राजीव गांधी पर बोफोर्स की तोपें अभी तक गड़गड़ाती रहती हैं, रफाल के विमानों की कानफोड़ू आवाज़ चुनाव के बाद भी गूंजती रहेंगी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

लेखक डा. वेद प्रताप वैदिक भारत के जाने माने वरिष्ठ पत्रकार और विदेशी मामलों के जानकार हैं.

Advertisement. Scroll to continue reading.
1 Comment

1 Comment

  1. Rakesh

    May 10, 2019 at 10:47 pm

    sahi kaha vaidek ji aap ne

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement