पुष्य मित्र-
कौवा मोती खायेगा और हंस कौवे के लिए चंवर डुलाएगा… मैं धार्मिक आदमी नहीं हूं। मंदिरों में मेरी कोई आस्था भी नहीं है। न ही आचार्य कुणाल किशोर के किसी ऐतिहासिक शोध में। मगर महावीर मंदिर के चढ़ावे को लेकर जो उन्होंने अस्पताल खोले हैं और दूसरे जनोपयोगी काम किए हैं। उस मॉडल का मैं मुरीद हूं। दलित पुजारियों को बिहार के मंदिरों में नियुक्त करने का उनका अभियान भी मुझे ठीक लगा। मैं मानता हूं कि वे एक ऐसे व्यक्ति हैं जिनमें हिंदुओं की धार्मिक आस्था को सकारात्मक दिशा देने की बुद्धि और क्षमता है।
मगर पिछले कुछ दिनों से उनकी दिशा बदल रही है। उनका फोकस बदल रहा है। वे फिर से धर्म की उसी परंपरागत दिशा की तरफ मुड़ते नजर आ रहे हैं जो धर्म को अधम बनाती है। राम मंदिर को लेकर उन्होंने खूब ताकत लगाई फिर महावीर मंदिर का बड़ा संसाधन उन्होंने वहां झोंक दिया। शायद उन्हें धर्म की मौजूदा राजनीति में प्रासंगिक बने रहने की इच्छा जागी है। वे इस राजनीति से कुछ चाहते भी होंगे।
मगर जहां तक इस नौसिखुआ लड़के का सवाल है, इस तस्वीर में जिसके पास जाने को वे आतुर नजर आते हैं और सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें रोक रखा है वह तो इनकी उपलब्धियों के आगे शून्य है।
धीरेंद्र शास्त्री की क्या उपलब्धियां हैं? वह एक ऐसा कथा वाचक है जो हिंदुओं की धर्मांध भीड़ को अंधविश्वास की दलदल में धकेले जा रहा है। अपने जीवन की विषमताओं और अधिक से अधिक हासिल करने की लालसा में फंसे लोग उसके करतब पर भरोसा करते हैं। उन्हें लगता है कि यह व्यक्ति उन्हें उनके कष्टों से छुटकारा दिला सकता है।
सच तो यह है कि लोगों को उनके कष्टों से छुटकारा दिलाने की किसी में क्षमता है तो वह खुद आचार्य किशोर कुणाल में हैं। उनके द्वारा स्थापित कैंसर अस्पताल और दूसरे कई अस्पताल रोज लोगों को उनके कष्टों से उबारते हैं। मगर इस तस्वीर में यह साफ नजर आ रहा है कि कुणाल जी का आत्मविश्वास इस फरेबी जादू टोना वाले के आगे नतमस्तक है।
इंसान जब खुद के कार्यों पर भरोसा करना छोड़ दे तो ऐसा ही होता है। हिंदुओं की बड़ी आबादी धर्मांध और अंधविश्वास से भरी है, इस बात का अहसास इन दिनों बखूबी हो रहा है। इस दीवानी भीड़ को कुणाल जैसे लोग सही दिशा दे सकते थे। मगर इन दिनों उनकी दिशा खुद भटकी हुई है। लिहाजा यह सब हमलोग देख रहे हैं।