नवीन कुमार-
कोविड के दौरान जो लोग भी अस्पतालों में भर्ती हुए थे.. ख़ासकर वो लोग जिन्हें बहुत ज़्यादा स्टेरॉयड दिया गया था वो अपनी सेहत को लेकर बहुत जागरूक रहें। किसी ऐसे डॉक्टर के संपर्क में रहें जिसे आपकी केस हिस्ट्री पता हो। HbA1C, थायरॉयड, ECG और हॉल्टर जैसे टेस्ट हर छह महीने में जरूरी कराएं। किसी भी तरह के मशीन वाले भारी कार्डियो एक्सरसाइज को अवॉयड करें और ब्रिस्क वॉक से काम चलाएं।
ट्रेडमिल पर दौड़ने की बजाय खुले मैदान में दौड़ें। और किसी लक्ष्य का पीछा न करें। जितना अच्छा लगता हो बस उतना ही। एक और जरूरी बात, बहुत ज्यादा पसीना आने का मतलब कोई जरूरी नहीं कि यह कैलोरी लॉस ही हो, यह लाइफ लॉस भी हो सकता है।

यक़ीन मानिए जिम जाकर आपका शरीर गठीला ज़रूर हो सकता है लेकिन इससे ज़्यादा क़ीमती है कि आप बेडौल होने के बावजूद जीयें। जिम स्वस्थ रहने की कसौटी नहीं है। अपने आपको बचाइए। स्टेरॉयड का असर पूरी तरह जाने में तीन से छह साल का वक़्त लग सकता है।
अगर मांसाहारी हैं तो अंडा, मीट नियमित लें। मेरे डॉक्टर का कहना है कि दिल्ली-बॉम्बे जैसे शहरों में प्रोटीन के लिए पनीर, दूध, चीज, मेयोनीज पर निर्भरता एक भ्रम है। इससे बेहतर है सोया चंक और अंकुरित अनाज को खाने का नियमित हिस्सा बनाएं। मेरे डॉक्टर के मुताबिक़ जिस तरह से सब्ज़ियाँ उगाई जा रही हैं उसमें न्यूट्रिएंट्स की गारंटी कृषि वैज्ञानिक नहीं दे रहे। कई बार रिपोर्ट आई कि एक से एक नामी ब्रांड के दूध टेस्ट में फेल हो गए। सबका पूरा ज़ोर केवल पैदावार बढ़ाने पर है।
पॉल्ट्री उत्पाद भी भरोमंद नहीं हैं। उन्हें कृत्रिम उत्पादों पर जल्दी बड़ा किया जा रहा है। तमाम बुराइयों के बावजूद मटन, भेड़ और भैंसे का मांस सबसे भरोसेमंद है। क्योंकि उनके खाने का ज़्यादातर हिस्सा बाहर खुले मैदानों से आता है। प्रोसेस्ड फ़ूड पर चौपायों को पालने का चलन भारत में अभी भी बहुत कम है।
आप अनमोल हैं। सेहत की हर छोटी-बड़ी चीज का ध्यान रखिए। कोविड के दौरान अस्पतालों में भर्ती हुए लोग ख़ास तौर पर।
ब्रह्मवीर सिंह-
क्या जिम जानलेवा हैं?
-एक्टर सिद्धांत वीर सूर्यवंशी की जिम में मौत हो गई। देशभर में बहस चल रही है कि जिम जानलेवा हो गए हैं, जान की सलामती के लिए जिम जाना बंद कर देना चाहिए।
-समझिए कि दुनिया की सबसे बेहतरीन मशीन हमारा शरीर है। सौ फीसदी ऑटोमेटिक। इसके जैसी संवेदनशील मशीन दुनिया में कोई नहीं है। यह आपको सब बताती है।सारे संकेत देती है। हमारी क्षमताओं का मीटर इसमें इनबिल्ट है। तो पहली बात की अपने शरीर से पूछिए…वो आपको बताएगा कि शरीर के साथ जोर जबर्दस्ती करनी है…उसकी हद क्या है। यकीन मानिए कि अगर शरीर की सुनेंगे तो यह आपको कभी धोखा नहीं देगा।
-तीस चालीस साल पहले तक दो अटैक के बाद तीसरा अटैक जानलेवा होता था। अब क्या होता है…पता ही नहीं चलता और इंसान मर जाता है। दिल मौका ही नहीं दे रहा और जान ले जा रहा है। इसका अर्थ है कि हार्ट कमजोर हो चुका है। उसकी क्षमता कम हो गई है। यूं ही दौड़ते भागते वक्त, नाचते समय, मामूली स्ट्रेस और सोते समय लोग हार्ट अटैक से मर रहे हैं तो यह सब करना छोड़ देंगे? नहीं ना. तो जिम से तौबा क्यों?
-समझिए कि हार्ट भी एक मसल्स है। जैसे हाथ पैर होते हैं, वैसे ही। यकीन मानिए यह एक्सरसाइज से मजबूत होगा कमजोर नहीं।लेकिन जैसे आपकी वजन उठाने की क्षमता पचास किलो की है और आप दो सौ किलो उठाएंगे तो फ्रेक्चर हो सकता है और हाथ पैर टूट सकते हैं, वैसे ही दिल का हाल है।क्षमता से अत्यधिक करेंगे तो खतरा बढ़ेगा। अटैक आएगा और संभव है जान न बचे। यह केवल जिम में नहीं, नाचते गाते,दौड़ते भागते या सीढ़ियां उतरते चढ़ते, कभी भी कहीं भी हो सकता है।
-केवल प्रोटीन पर जिंदा मत रहिए। प्रोटीन मसल्स इंप्रूव करती है लेकिन एनर्जी आपको काब्रोहाईड्रेड से ही मिलेगी। जो जीरो फिगर वाले और सिक्स पैक वाले होते हैं वे बेहद कमजोर होते हैं। लेकिन भरे पूरे बदन वाले पहलवान होते हैं उनमें गजब की ताकत होती है। खूब खाइए और खूब पचाइए।
-मैंने पहले भी कहा है कि सिक्स पैक्स एब्स एक भ्रम है। इसे बनाए रखना बेहद कठिन है। यहां तक कि पानी तक पीना छोड़ना पड़ता है।
-बॉडी को आकर्षक दिखाने और जीरो फैट टाइप बॉडी पाने के लिए एक्स्ट्रा सप्लीमेंट मत लीजिए।किसी को नहीं पता कि वे दवाएं आपके शरीर के साथ क्या सलूक कर रही हैं।
इसलिए जिम जाइए, खूब जाइए…लेकिन दिल को संभाल कर रखिए।