Dinesh Singh : मैं नहीं जानता कि बाका के जिलाधिकारी के दावे में कितनी सच्चाई है। बिहार में हिन्दुस्तान की स्थापना के समय से जुड़े होने के चलते मैंने देखा है कि रिमोट एरिया में ईमानदारी के साथ काम करने वाले पत्रकार भी भ्रष्ट अधिकारियों के किस तरह भेंट चढ़ जाते हैं। मैं यह नहीं कहता कि सारे पत्रकार ईमानदार हैं मगर मैं यह भी कदापि मानने के लिए तैयार नहीं हूं कि सारे पत्रकार चोर और ब्लैकमेलर ही होते हैं।
सच यह है कि बिहार में मध्याह्न भोजन के नाम पर जहां भी हाथ डालिए और खास कर बाका, मुंगेर और जमुई जिले में, केवल लूट और बदबू ही मिलेगा। यदि किसी पत्रकार से शिकायत थी तो सबसे पहले संपादक से शिकायत करनी चाहिए थी। संपादक द्वारा कार्रवाई नहीं होने पर प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया का रास्ता खुला था। मगर नहीं। डीएम ने सीधे तुगलकी फरमान जारी कर दी।
भागलपुर के संपादक बदले हैं और सुना है ऐसे मामलों में तत्काल कार्रवाई भी करते हैं। किन्तु लगता है अनुभवहीन जिला अधिकारी ने भ्रष्ट अधिकारियों के प्रभाव में आकर कोई बड़ा बवंडर कर दिया हो। अखबार के संपादक से मैं निवेदन करना चाहता हूं कि वे इस मामले मे तत्काल कार्रवाई करें ताकि पत्रकारिता की मर्यादा बिहार में अक्षुण्ण बनी रहें।
हिंदुस्तान अखबार के विशेष संवाददाता रह चुके पत्रकार दिनेश सिंह की एफबी वॉल से.
नीचे वो खबर है जिससे भड़के बांका के जिलाधिकारी ने रिपोर्टर को उगाहीबाज करार देते हुए आफिसियल लेटर जारी कर दिया…. खबर को साफ-साफ पढ़ने के लिए नीचे दी गई न्यूज कटिंग के उपर ही क्लिक कर दें :
उपरोक्त स्टटेस पर आए कुछ प्रमुख कमेंट्स इस प्रकार हैं….
Niraj Ranjan अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है. चौथे स्तंभ को हिलाना मुश्किल है.
Uday Murhan मीडिया संस्थानों और पत्रकारिता जगत पर भी सवाल है . दूसरे क्या करेंगे और करना चाहिये दूसरे जानें .मीडिया जगत सोचे .
Brajkishor Mishra सत्यप्रकाश जी को बधाई। एक जिला अधिकारी को आपके कारण इस ओछेपन पर आना पड़ा। डीएम द्वारा लिखे गए डिपार्टमेंटल लेटर के सेंटेंस से स्पष्ट है कि मामला मध्यान भोजन की रिपोर्टिंग का नहीं है। कही न कही आपकी किसी और रिपोर्टिंग से डीएम की फटी पड़ी है। जिसका खुन्नस वो मध्यान भोजन की रिपोर्टिंग के नाम पर निकल रहा है। यदि मामला उगाही का होता तो डीएम एफआईआर भी दर्ज करा सकता था। लेकिन शायद कोई सबूत नहीं। डीएम साहब मध्यान भोजन आप नहीं खाते। वो देश के भविष्य, बच्चो के विकास के लिए है। पत्रकार छोड़िये, यदि मध्यान भोजन के गुणवत्ता में किसी भी व्यक्ति को शक होता है तो रसोई देखना उसका अधिकार है। बांका के पत्रकार बंधुओ का आग्रह हैं की पता करें इस डीएम को मंथली उगाही कौन-कौन से विभाग से कितनी पहुँचती है। अखबार में खबर नहीं लग पाती तो इनकी ईमानदारी की सबूत सोशल मीडिया पर डालिये।
Jayram Viplav डीएम के लिखने का अंदाज दाल में काला है ।
Dinesh Singh उदय जी, सवालो के घेरे मे आज कौन नही है। कस्बाई पत्रकारिता की स्थिति जानिए । दस रुपये प्रति खबर पर काम करता है और महीने मे दस खबर नही छपती है। मिलता है एक खबर पर दस रुपये मगर खर्चा पड़ता है 50 रु। अखबार को उसी के माध्यम से विज्ञापन भी चाहिए । वह भ्रष्ट और चोरी नेताओ की चाकरी मे लगा रहता है कि कुछ ऐड मिलेगा । उसे परिवार भी चलाना है। कठिनाई तब हो जाती है जब ओहदा और सैलरी मिल जाने के बाद भी गंदगी फैलाते हैं। धुआं वही से उठता है जब कही आग लगा होता है । विशेश्वर प्रसाद के समय मे हिन्दुस्तान भागलपुर मे कंट्रोवर्सी मे रहा और खबर छापने के लिए पैसे मांगने के खिलाफ बहुत सारे होल्डिंग्स भी टंगे । मै नही जानता की उस आरोप मे कितनी सच्चाई थी मगर चुने हुए बदनाम पत्रकारो को मिला संरक्षण और शहर के धंधेवाजो से उनके रिश्ते उनकी बदनामी को हवा देता रहा। मगर आप ही बताइए विशेश्वर प्रसाद और अक्कु श्रीवास्तव जैसे लीग जो कभी -कभी संपादक बन जाते है वही पत्रकारिता के चेहरे बनेगे या ईमानदार संपादको की भी चर्चा होगी? मैं दावे के साथ कहा सकता हू की आज भी पत्रकारिता मे ईमानदारी अन्य सभी क्षेत्रो की तुलना मे ज्यादा बची हुई है।
Uday Murhan एकदम सहमत . मेरा आशय आप से भिन्न नहीं है .
Brajkishor Mishra दिनेश सर, पत्रकारिता में सबसे बड़ी दिक्कत है की एक पत्रकार ही दूसरे पत्रकार की लेने में लगा हुआ है … अपने गिरेबाँ देखना किसी को पसंद नहीं।
Jayram Viplav पत्रकारिता और राजनीति “सेवा” के क्षेत्र है यहाँ कदम कदम पर नैतिकता और मूल्यों का तकाजा है लेकिन जब लोग इसे पैशन की जगह प्रोफेशन बना लेंगे तो क्या होगा? और हां यदि जिला ब्यूरो से नीचे प्रखंडों में काम करना हो तो आर्थिक रूप से मजबूत हो।
Dinesh Singh जिला अधिकारी के खिलाफ सत्यप्रकाश मानहानि का मुकदमा करें । मैं हर तरह से मदद के लिए तैयार हूं ।
Brajkishor Mishra विशेश्वर कुमार सर के साथ 12 साल पहले मुझे 2 साल काम करने का मौका मिला था, बड़े ही खड़ूस संपादक थे। जर्नलिज्म को छोड़ कर अपनापन नाम की कोई चीज ही नहीं। बड़े ही सेल्फिश संपादक हैं। सिर्फ खबर से मतलब रखते हैं। एक बार तो दूसरे संस्थान में किसी कारण परेशान हो उनसे नौकरी मांगा था सीधे ना कर बैठे। भविष्य में भी उनसे किसी फेवर की उम्मीद नहीं। लेकिन ये दावे के साथ कह सकता हूँ उनके जैसे पत्रकार और संपादक होना आसान नहीं। अकेले वो दस पत्रकार पर भाड़ी हैं। पत्रकार के सम्मान की सुरक्षा के लिए हमेशा सबसे आगे रहे है। वो कभी-कभी नहीं मेरे सामने बीते डेढ़ दशक में तीन जगहों पर स्थानीय संपादक के रूप में अपना कार्यकाल पूरा किये हैं। मैंने बोल्ड जर्नलिज्म उनसे ही सीखा है।
Dinesh Singh पत्रकारिता केवल खबरों का लेखन नहीं है। यह एक आन्दोलन भी है । भारत मे पत्रकारिता का जन्म ही राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन से हुआ है। शहर का एक बड़ा व्यापारी शहर मे होर्डिन्ग लगाकर पैसा माँगने का आरोप लगाए और संपादक खामोश रहे यह कैसा वोल्डनेस है? काम करना और स्वाभिमान के लिए चट्टान से टकरा जाना अलग -अलग बात है। पत्रकारिता मे ईमानदारी और निर्भिकता बाहर से भी दिखनी चाहिए। यह मानहानि का मुकदमा बनता था। कुछ नही होने से पूरी टीम का सर शर्म से झुका रहा। मै मानता हूं कि आरोप गलत थे जैसे सत्यप्रकाश पर लगे आरोप गलत हैं। मगर चुप रह जाओगे तो लोग तरह -तरह के मतलब निकालेगे ही।
अजय झा ऐसे पत्रकार को सलाम जिसके लेखन से प्रशाशन की….
Sanjay Kumar Singh मैं भी एक पत्रकार हूँ। दो दशक से अधिक समय से इससे जुड़ा हूँ। मैंने कभी नहीं सोचा था कि पत्रकारिता कभी चाटुकारिता में बदलेगी लेकिन कुछ अपवादों को छोड़ दे तो यह अब इससे भी नीचे दलाली में बदल गई है। हर कोई अपना एजेंडा लेकर चल रहा है। जिसमे पत्रकारिता मुखौटा बना हुआ है। सिवान, छपरा, बांका से लेकर पटना तक ऐसे मुखौटाधारि बैठे हुए हैं। ऐसे लोगों को कौन बेनकाब करेगा, शायद कोई नहीं, क्योंकि ये लोग अब सिस्टम में शामिल हो चुके हैं। दिनेश जी को बधाई… सिवान की ईमानदारी भी सीबीआई जरूर सामने लाएगी
Hari Prakash Latta आँख मूँदकर किसी को समर्थन देना या झुटला देना गलत है। बिना सत्यता जाने किसी एक व्यक्ति , घटना को केंद्रित कर सैद्धान्तिक बहस का कोई अर्थ नहीं होता है। हिंदुस्तान के सम्पादक को इन्क्वारी कर उचित निर्णय लेना चाहिए
Kumar Rudra Pratap मैंने देवरे को जाना है गया कार्यकाल के दौरान, ईमानदार और निडर अब तक।
Omprakash Yadav दिनेश जी जिलाधिकारी बाँका का तुगलकी भी कह सकते है और महाराष्ट्रीय फरमान भी कह सकते है आज के दौर का।जिस तरह महाराष्ट् में उत्तर भारत के लोगो को घुसने पर पावंदी हो गया है, चुकी बाँका के जिलाधिकारी महाराष्ट्रा के हैं और बाँका में उसी तर्ज पर काम कर रहे हैं। दिनेश जी आपने सही अनुमान लगाया की मध्यान भोजन बाला मामला बहाना है। एक समाचार पर जिलाधिकारी भड़के हैं।
Neel Sagar यदि सत्यप्रकाश जी पर आरोप गलत लगा है जो सत्य से परे है तो तत्काल उन्हे राय दिजिए कि डी0एम0 के खिलाफ भा0द0सं0 की धारा 499 के आधार पर मान-प्रतिष्ठा के साथ खेलने के लिए 25 लाख रूपया का मानहानि दायर करें।-सम्पादक-नील सागर दैनिक पटना -9835482126
Dinesh Singh अब तुगलकी फरमान जारी करने वाले बाका के जिला अधिकारी का असलियत सामने आ चुका है। —खबर पढ़कर बौखलाए जिला अधिकारी और कुछ नहीं बल्कि अहंकार का नाजायज पैदाइस है। –बिहार मे रहकर बिहारी को गाली देने वाले को तत्काल प्रभाव से सरकार निलम्बित करे। — पूरा बिहार सत्यप्रकाश के साथ है। अब बात साफ हो गई है कि माजरा क्या है । हमारी पत्रकार विरादरी कुछ आदत से लाचार है। ईमानदारी का सार्टिफिकेट हम मुफ्त मे बाटते है। यार पहले अपनी विरादरी पर गर्व करना सीखो। मै पहले ही कह चुका हूं कि पत्रकार विरादरी मे आज भी ईमानदारी बहुत हद तक कायम है। तुम बिहार की जनता की गाढ़ी कमाई पर पलते हो और बिहारी को ही गाली बकते हो। यहा का आदमी जब महाराष्ट्र काम की तलाश मे जाता है तो नपुंसको की परवरिश बनकर हमला करते हो और बिहार आकर बिहारी पर ही रोब गाठते हो। कम से कम सत्यप्रकाश जैसे पत्रकार के रहते यह नही चलने वाला है । सत्यप्रकाश की रिपोर्टिंग यह साबित करता है कि वह पत्रकारिता का हीरो है। सत्यप्रकाश को तुम सरकारी कार्यालय जाने से नही रोक सकते । तुम अपना देखो की तुम कैसे जाओगे । वक्त आ गया है पत्रकार विरादरी अपनी एकजुटता दिखाए।
Amit Roy सत्यप्रकाश जी दुर्गापूजा के बाद इस दिशा में कोई ठोस निर्णय ले।हमलोग आपके हर कदम पर साथ है।
Guddu Rayeen मेरा एक ही हिसाब है ऐसे कलकटर को बिहार से उठा कर बाहर फेक देना चाहिऐ
Himanshu Shekhar Hahaha sir ne article 19 Ni padhe Kya.??? Kabhi bihari word use krte hai kabhi Kuch ? Bhagwan bharose hai Banka zila soch samjhdar kr cmnt kijye sir PTA Ni it act me jail daal Diya jaye
Ashish Deepak इस प्रकार का फरमान पुर्वाग्रह से प्रेरित लगता है। कहीं पत्रकार महोदय ने कड़वा सत्य तो नही लिख डाला ।
Nabendu Jha इस बात को रखने का यह तरीका सही नहीं। बल्कि ,इसके लिए एक जिम्मेदार अधिकारी को बात रखने की सही जगह की जानकारी होनी चाहिए । इसे वापस ले।
Pushpraj Shanta Shastri जिलाधीश ने किसी साक्ष्य के बिना जो निर्देश जारी किया है, यह आश्चर्यजनक नहीं है। हमारी पत्रकारिता ने डीएम से लेकर सीएम की आलोचना की आदत छोड़ दी है। जिलाधीश के पास अगर संवाददाता के द्वारा रिश्वत मांगने के साक्ष्य थे तो उन्हें किसने प्राथमिकी दर्ज कराने से रोका था? मुझे इस फरमान की भाषा में जिलाधीश प्रथम दृष्टया दोषी प्रतीत हो रहे हैं। बिहार के वरिष्ठ पत्रकारों को इस घटनाक्रम को गंभीरता से लेना चाहिए। मैं इस मसले के तथ्यान्वेषण में अपनी भूमिका निभाने के लिए तैयार हूँ, शर्त यह है कि अपने कुछ बंधु साथ शरीक हों। पत्रकारिता कथ्य के बावजूद तथ्य की मांग करता है। जिलाधीश के पक्ष-विपक्ष में तत्काल कोई राय प्रकट करना अनुचित है। महाराष्ट्र-बिहार के प्रदेशवाद की चर्चा फूहड़ता है। जिलाधीश का पत्र तथ्य के बिना कथ्य पर आधारित है इसलिए कथ्य के भीतर की हकीकत के पड़ताल की जरुरत है।
Dinesh Singh जिला अधिकारी किसी वजह से इस तुगलकी हरकत पर उतरे वह प्रकाशित खबर तथ्य बनकर सामने है।
Awadhesh Kumar arajak bihar ka namuna. Jab rajneeti fail karte hi to yehi hota hi.ek dm bihar mei…
krishna kumar dwivedi
October 8, 2016 at 1:43 pm
डी ऍम साहब ने गलत किया पहले मामले को अच्छी तरह समझ कर तब निर्णय लेना चाहिए
Yogendra Bhadauria
October 8, 2016 at 1:55 pm
जब भी अधिकारियों की पोल खुलेगी वह इसी प्रकार का प्रोपंडा करते हैं, जो काम करेगा उसी पर तो सवाल उठाए जांएगे, डरने और दवाब में आने की जरूरत dm का पत्र खुद उनकी और उनके मातहतों की पोल खोल रहा है, जीत हमेशा सत्य की होगी
Rashid.Akela
October 8, 2016 at 2:22 pm
Good work Hume khushi hai Aise logo per pratibandh laga hai to