रंगनाथ सिंह-
इस हफ्ते भारतपे के संस्थापक सदस्य Ashneer Grover की पेंगुइन इण्डिया से किताब ‘दोगलापन’ पढ़ी। कार्पोरेट जगत में नौकरी करने वालों के लिए यह किताब उम्दा प्राइमर रीडिंग हो सकती है। मेरे लिए तो यह किताब नियति का उपहार बनकर आयी।

अश्नीर जी की किताब उनके भारतपे से निकाले जाने तक की जीवनी है। अश्नीर ने अपनी मेधा और परिश्रम के दम पर भारत का सबसे बेशकीमती एजुकेशनल ब्राण्ड IIT-IIM हासिल किया। उनका प्यार और व्यापार दोनों में आगाज शानदार रहा। IIM की तैयारी कराने वाली कोचिंग में मिली लड़की से उन्हें प्यार और ब्याह हुआ। नामी कम्पनी में पहली नौकरी मिली। महज नौ साल के करियर के बाद उन्होंने दो अन्य लोगों के साथ मिलकर भारतपे नामक स्टार्टअप शुरू किया। उसे सफल बनाया। अमीर बने। रियलिटी शो शार्क टैंक इण्डिया के माध्यम से वो टीवी के चर्चित बने। इसके बाद जो हुआ, उसने उन्हें लेखक बना दिया। आपको रॉकस्टार याद है! अश्नीर का नाम भी अब उन लोगों में शुमार होगा जिनके टूट दिल ने उन्हें कलमकार बना दिया।
बाकी, बादाम खाने से अक्ल आती हो या न हो, धोखा खाने से जरूर आती है। अश्नीर ने जिन लोगों को करीबी समझा उन्होंने उन्हें करियर का सबसे तगड़ा झटका दे दिया। किताब का दूसरा हिस्सा यही बताता है कि उस झटके की जमीन कैसी तैयार हुई। इस झटके से अश्नीर को क्या सबक मिले। अश्नीर ने एक साहसी कदम उठाते हुए उन लोगों के नाम भी खुलकर लिखे हैं जिन्होंने उनके पेशेवर वध की वेदी तैयार की। मेरे ख्याल से उन्होंने सही किया। कार्पोरेट जगत में भी थोड़ी पारदर्शिता आनी चाहिए। निर्णायक पदों पर बैठे लोगों के पेशेवर चाल-चरित्र-चेहरे का उजागर होना कार्पोरेट समाज और कारोबार दोनों के लिए अच्छा है।
जानबूझकर किताब के रोचक अंश के बारे में नहीं लिख रहा क्योंकि इससे किताब पढ़ने की प्रेरणा खत्म हो सकती है। अतः, यदि आप कार्पोरेट जगत में निर्णायक पदों पर हैं तो यह किताब आपके काम की हो सकती है।