याद किये जायेंगे ‘तरुण’ आप और इस दौर में दुनिया को अलविदा कहते जा रहे आप सरीखे लोग, साथ ही खोखली दोस्ती रखने वाले आपके दोस्त भी…
देश की राजधानी दिल्ली के एम्स अस्पताल की चौथी मंजिल से छलांग लगाकर एक नौजवान पत्रकार ने अपनी ज़िंदगी समाप्त कर ली। दैनिक भास्कर में हेल्थ बीट पर काम कर रहे तरुण सिसोदिया के बारे में जानकारी मिली कि कोरोना काल मे उन्होंने व्यवस्था व सरकारों की नाकामियों को उजागर करने वाली रिपोर्ट भी अपनी खबर के माध्यम से सबके सामने रखी। लेकिन जान जोखिम में डाल कर रिपोर्टिंग करने के साथ वह खुद भी कोरोना से संक्रमित हो गए। कुछ अन्य माध्यमों से पता चला कि कोरोना के साथ ही वह कुछ और मानसिक परेशानियों से भी जूझ रहे थे और इसका जिक्र उन्होंने व्हाट्सअप ग्रुप पर अपने साथियों के साथ साझा भी किया था। वह भी इस कदर जैसे मानो उन्हें अंदेशा हो चला है कि वह ज़िंदगी की लड़ाई हार चुके हों।
उन्होंने मिन्नत वाले लहजे में अपने करीब रहने वाले मित्रों से अपनी परिस्थिति बताई और उनसे मदद भी मांगी शायद अपरोक्ष रूप से। लेकिन आज के दौर में लोग इसे व्यवहारिक कहाँ मानते हैं जब तक उसकी जान न चली जाए। बहरहाल, इस सब के बीच खबर मिली कि दैनिक भास्कर से वह अपनी नौकरी गंवा चुके हैं।
अब अचानक यह खबर सभी के सामने आयी कि एम्स की चौथी मंजिल से कूदकर उन्होंने अपनी जान दे दी। उनकी मौत के बाद उनके दोस्तों व परिचितों के द्वारा उनके प्रति संवेदना प्रकट करने के तमाम मैसेज सोशल मीडिया पर देखे जा रहे हैं। ज़रूरी और व्यवहारिक भी है ऐसे वक्त में संवेदना प्रकट करना।
लेकिन दोस्तों क्या ये ज़रूरी नही की जिस वक्त उस तरुण सिसोदिया को अपना दर्द साझा करने की आवश्यकता पड़ी, उसका कंधा बन जाते। उसकी पीड़ा सुन लेते, उसे हौसला दे देते। ज़रूरी नही कि आज रुपये/पैसे से कोई बहुत ज़्यादा मदद कर सकता हो लेकिन मेरा ये मानना है कि उसकी पीड़ा को सुन और समझ कर उसे हौसला, हिम्मत देते, साथ खड़े रहते तो शायद वो ये कदम उठाने से हिचकता।
जिस शख्स की हाल में ही शादी हुई, उसकी दो नन्ही बेटियां। इतना आसान था क्या उसका मरना। नहीं। ना जाने कितनी बार सोचा होगा उसने, उसके बाद शायद हिम्मत हार होगा। इसके पीछे सरकार/उसकी नीतियां/संस्थान/करीबी….शायद सभी ज़िम्मेदार हैं जिसकी वजह से तरुण व तरुण जैसे न जाने कितने लोग अपनी खूबसूरत ज़िंदगी को मौत की मंजिल तक ले जा रहे हैं।
अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि
वरिष्ठ पत्रकार व गाज़ियाबाद वॉइस के संपादक संजय गिरि की कलम से.