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सियासत

अगस्ता में आरोपपत्र लीक होने पर ईडी को फटकार और चेतावनी

सरकारी एजेंसियों का सरकार के इशारे पर दुरूपयोग सतह पर… कोर्ट क्लर्क को बलि का बकरा बनाने की कोशिश फेल… प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केन्द्रीय जाँच एजेंसी (सीबीआई) और आयकर विभाग जैसी सरकारी एजेंसियों का केंद्र सरकार के इशारे पर कैसे दुरूपयोग हो रहा है यह उस समय सतह पर आ गया जब दिल्ली की एक सीबीआई अदालत ने अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी हेलिकॉप्टर मामले में पूरक चार्जशीट लीक होने पर न केवल प्रवर्तन निदेशालय को कड़ी फटकार लगाई बल्कि तल्ख टिप्पणी की कि ईडी द्वारा दाखिल स्टेट्स रिपोर्ट ‘भरोसे के काबिल’ नहीं है। अदालत ने ईडी के निदेशक को यह सुनिश्चित करने के निर्देश भी दिये कि भविष्य में किसी भी मामले में ऐसा दोबारा न हो।स्थिति कीगम्भीरता का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पूरक चार्जशीट लीक होने का ठीकरा ईडी ने अदालत के एक अहलमद (कोर्ट क्लर्क)के माथे पर भी फोड़ने की कोशिश की जो उपलब्ध तथ्यों के आधार पर सीबीआई अदालत ने नहीं मानी।

दरअसल अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी हेलिकॉप्टर घोटाला मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा पूरक चार्जशीट के सम्बंध में मीडिया में खबर लीक होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रैली में और भाजपा के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसी चार्जशीट के सहारे कांग्रेस पर निशाना साधा था और कांग्रेस के नेता अहमद पटेल और श्रीमती गाँधी को इसमें लपेटा था। ईडी की पूरक चार्जशीट दाखिल में एपी का नाम सामने आया था और कहा जा रहा था कि यह एपी गांधी परिवार के नजदीकी अहमद पटेल है वहीं आरोपपत्र में किसी मिसेज गांधी का भी जिक्र बताया जा रहा था।

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पूरक चार्जशीट दाखिल होने के बाद कथित बिचौलिए क्रिश्चियन मिशेल ने दिल्ली की सीबीआई अदालत को बताया कि उसने पूछताछ के दौरान जांच एजेंसी के समक्ष डील से जुड़े किसी भी शख्स का नाम नहीं लिया था। मिशेल ने यह भी आरोप लगाया था कि केंद्र सरकार राजनीतिक एजेंडे के लिए एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है। मिशेल के वकील ने दावा किया कि आरोप पत्र की प्रति मिशेल को देने से पहले मीडिया को दे दी गई।मिशेल ने सवाल किया था कि आरोप पत्र पर अदालत द्वारा संज्ञान लेने से पहले यह मीडिया को कैसे लीक हो गया।

मिशेल के वकील ने दावा किया कि ऐसा लगता है कि ईडी ने गुप्त रूप से इसकी एक प्रति मीडिया घरानों को मुहैया कराई है, जो मुद्दे को सनसनीखेज बनाने और इसमें नामजद आरोपी के प्रति पूर्वाग्रह पैदा करने के लिए इसे किस्तों में प्रकाशित कर रहे हैं। आरोप पत्र का चुनिंदा हिस्सा मीडिया ने प्रकाशित किया है, जो स्पष्ट करता है कि ईडी को अदालत में निष्पक्ष सुनवाई में दिलचस्पी नहीं है बल्कि उसकी रुचि ‘मीडिया ट्रायल’ में है। ईडी न्यायिक प्रक्रिया का मखौल उड़ा रही है जिससे न्याय का मजाक बन गया है। प्रत्यर्पण संधि राजनीतिक अपराधों में शामिल आरोपियों के प्रत्यर्पण पर रोक लगाती है और सरकार अब राजनीतिक उद्देश्य से ईडी और सभी जांच एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है। मीडिया घरानों को आरोप पत्र देना इसका बेहतरीन उदाहरण है।अभियोजन एजेंसी का कृत्य बेहद निंदनीय है और कानून की स्थापित प्रक्रिया के विपरीत है। जांच एजेंसी सरकार के जरिए एक हथियार के रूप में काम कर रही है।

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सीबीआई अदालत के विशेष न्यायाधीश अरविंद कुमार ने अपने आदेश में कहा कि ईडी द्वारा दाखिल स्टेट्स रिपोर्ट ‘भरोसे के काबिल’ नहीं है. अदालत के मुताबिक उसने ईडी को ऐसा कोई निर्देश नहीं दिया था कि वह कोई एक्सट्रा कॉपी दे, न ही ईडी ने कहा था कि उसने कोई अतिरिक्त प्रति जमा कराई है.

ईडी ने पत्रकारों को दस्तावेज सौंपे जाने के आरोपों को खारिज किया था और एक स्थिति रिपोर्ट दायर कर दावा किया कि उसकी तरफ से आरोप-पत्र लीक नहीं हुआ और ‘बहुत संभव’ है कि मीडिया को अदालत कर्मियों के पास छोड़ी गई अतिरिक्त प्रति से जानकारी मिली हो जबकि अदालत कर्मियों ने ईडी से अतिरिक्त प्रति प्राप्त होने से इनकार किया है।

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गौरतलब है कि अप्रैल 19 में अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी हेलिकॉप्टर सौदे के मामले में अदालत ने क्रिश्चियन मिशेल के खिलाफ दायर पूरक आरोपपत्र पर संज्ञान लिया था और मिशेल के आरोपपत्र लीक होने की शिकायत पर अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय को नोटिस जारी करके जवाब तलब किया था ।

प्रवर्तन निदेशालय(ईडी) ने यह छानबीन करने की मांग की थी कि आरोपपत्र की प्रति मीडिया को कैसे लीक हुई। जांच एजेंसी की तरफ से अदालत में कहा गया कि उन्होंने एक समाचार संगठन को नोटिस जारी करके जवाब मांगा है कि उन्हें ये दस्तावेज कैसे हासिल हुए? ईडी ने कुछ समाचार संगठनों को नोटिस जारी करने की भी मांग की ताकि वह बताएं कि उन्हें आरोप-पत्र की प्रति कहां से मिली। मिशेल का आरोप था कि पूरे मामले को मीडिया में सनसनीखेज बनाने के लिए एजेंसी ने आरोपपत्र को लीक किया।

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क्या है पूरा मामला

फरवरी 2010 में यूपीए सरकार ने ब्रिटिश-इटैलियन कंपनी आगस्ता वेस्टलैंड के साथ वीवीआईपी हेलिकॉप्टर की खरीद के लिए एक सौदा किया था। इस सौदे के तहत वायुसेना के लिए 12 हेलिकॉप्टर खरीदे जाने थे। इनमें से आठ का इस्तेमाल राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य वीवीआईपी हस्तियों की उड़ान के लिए किया जाना था। बाकी चार हेलिकॉप्टर एक साथ 30 एसपीजी कमांडो को ले ले जाने की क्षमता रखते थे। इस सौदे की कीमत 3600 करोड़ रुपये तय हुई थी। लेकिन, जनवरी 2014 में कॉन्ट्रैक्ट की शर्तें पूरी न होने और 360 करोड़ रुपये के कमीशन का भुगतान करने के आरोपों के बाद भारत की ओर से यह सौदा रद्द कर दिया गया था। जब करार को रद्द करने का आदेश जारी हुआ, उस समय तक भारत सौदे की राशि का 30 फीसद भुगतान कर चुका था। साथ ही तीन अन्य हेलिकॉप्टर के लिए आगे के भुगतान की प्रक्रिया जारी थी।

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