Prof Dr Arun kumar misra-
भगवानो में आपस मे काफी मतभेद है। धरती, सौर मंडल, गैलेक्सिज के पार, जहां कॉस्मॉस और ज्ञान विज्ञान की सीमाएँ खत्म हो जाती हैं ठीक उसके बाद भगवानों का इलाका शुरू हो जाता है।
वहां विभिन्न प्रकार के ईश्वर रहते हैं। उनके अपने अपने दायरे है, और अपनी अपनी प्रशासनिक व्यवस्था है।
कुछ भगवान जैसे अल्लाह और परमपिता परमेश्वर, अकेले ही अपनी पूरी व्यवस्था चलाते है। इसे धरती पर “एकोहम द्वितीयो नास्ति वाली’ डिक्टेटररियल गवर्नमेंट से समझ सकते हैं।
कुछ में धर्म में बोर्ड ऑफ डायरेक्टर वाली व्यवस्था है, जिसमे अलग अलग कार्य करने के लिए अलग अलग देवता डेजिग्नेटेड हैं। सब मिलकर सिस्टम एडमिनिस्टर करते हैं।
हिन्दूओ की भगवानी व्यवस्था में यह सिस्टम देखा जा सकता है। ये देवता एक दूसरे का काम मे दखल नही देते। यह भी डिक्टेटररियल ही है क्योकि प्रशासित से कुछ नहीं पूछा जाता। एकतरफा कानून बता दिए जाते हैं।
भगवान किसी भी प्रकार के हो, उनका पूरा फोकस सौर मंडल के 9 ग्रहों में से 3 नम्बर के गोले पर 84 लाख स्पीशीज में से सिर्फ़ एक, याने होमो सेपियन / इंसान को कंट्रोल करने में लगा रहता है।
सभी भगवानों को इसी स्पीसीज से खास लगाव है। डिक्टेटररियल भगवान कभी खुद सामने नहीं आये और अपने पुत्र या मैसेंजर को अपना सेक्ट बनाने भेजा। कभी यह सुनने में नही आया कि उन्होंने तितलियों, वनभैसो, चित्तीदार अजगरों या सी अर्चिन को समझाने अपना पुत्र अथवा मैसेंजर भेजा हो।
बोर्ड व्यवस्था वाले भगवान थोड़े लिबरल हैं। वे स्वयं इस गोले पर आते हैं, पेंटिंग तस्वीरे बनवाते हैं। सन्देश वगैरह देते है, बुक्स, कमंडमेन्ट आदि लिखवाते हैं। पूरा सेक्ट तैयार करने के बाद, कंट्रोल रूम में वापस जाकर इन लोगो की निगरानी करते हैं।
सभी भगवानो का निगरानी का सिस्टम बहुत तगड़ा है। वे अहर्निश, सब कुछ देखते हैं। उपवास निर्जला था या फलाहार वाला- नोटेड। इफ्तार में खजूर खाया, या पपीता- नोटेड।
जिंदगी में आपने मांसाहारी थे, वेजिटेरियन इस पर काफी फोकस है। छुपकर चिकन खाया, शराब पी- नोटेड। क्या कपडे पहने, भजन के समय दिमाग मे क्या बदमाशी सोच रहे थे- नोटेड।
अपने धर्म-जात-गोत्र वाली/वाले से प्रेम अथवा विवाह किया कि नही- नोटेड।
बूढों को सम्मान, फकीर को दान दिया या नही-नोटेड।
किसी को रुलाया, हंसाया या नही-नोटेड।
देशभक्त थे या नही, दूसरे धर्म, देश अथवा जाति वालो को सबक सिखाया अथवा नही- नोटेड!!!
24 घण्टे, 86400 सेकेंड ये सभी ईश्वर मनुष्य की कर्म और विचार की निगरानी करते हैं। कर्मों का हिसाब रखते हैं, अच्छे और बुरे कामो के प्लस माइनस से नेट गुड की बैलेंस शीट तैयार करते हैं।
औऱ सोचते है- “ठीक है बेटा। मर एक बार, फिर तुझे बताता हूँ”
बीइंग गॉड इज रियली ए टफ जॉब।
पहले कुछ करोड़ आबादी थी। तब भगवान ने बहुत से बेकार के काम ले रखे थे। जैसे पत्तो का खड़कना, सूर्य को उगाना, हवा का चलना, धरती चांद तारों को यथास्थान रखना।
फिर आबादी बढ़ गयी। तो ईश्वर ने दुनिया के व्यवस्थापन के काम ग्रेविटी, रैलेटिविटी, फिजिक्स केमिस्ट्री, और सरकारों को प्राइवेटाइज कर दिये। रिसेंटली डीएनए और जीन में चेंज वगेरह भी काम से भी भगवानी नियंत्रण हटा लिया गया है।
अब भगवान मोस्टली निगरानी, और पुलिसिंग का ही काम करते हैं। वे प्रार्थना करने वालो और चढ़ावा देने वालों की मनोकामना पूर्ण करते है।
ऐसा न करने वालो, या ठीक विधि और उच्चारण के साथ न करने वालो को सजा देते हैं। सजा इमिडीएट भी होती है- जैसे चोट का लगना, एग्जाम में फेल हो जाना, व्यापार में नुकसान, नौकरी में प्रमोशन न होना, वांछित स्त्री पुरुष का प्यार न मिलना, अथवा उसका बेवफा हो जाना।
लेकिन कभी कभी नेट बैलेंस शीट के हिसाब से ऑन द स्पॉट सजा नही हो पाती। तब ईश्वर उसके लिए अलग व्यवस्था करते हैं।
उन्होंने नाजियों की तरह बकायद यातना गृह, कॉन्सन्ट्रेशन कैम्प बना रखे हैं। उनके नाम अपने अपने समर्थकों की पसन्द से, उन्ही की भाषा में रखे हैं। जिससे उन्हें ट्रांसलेशन की दिक्कत न हो। वहां उपलब्ध यातनाएं, सजाएं एग्जेक्टली वही हैं, जो धरती पर उन्हें पहले ही प्रीस्ट, साधु और इमाम ने बताया हुआ है।
तो अगर बैलेंस शीट नेगेटिव हुई, तब दुष्ट ईसाई मरकर हेल में जाएगा। परन्तु दुष्ट हिन्दू नरक में जायेगा। वहाँ 26 तरह के उपनरक है। बदमाश मुसलमान दोजख में जाता है। इसकी मेरे पास ज्यादा डिटेल नही है। पता होता भी, तो न कहता। पता नही कौन मुझे 72 अप्सरा प्राप्त करने का जरिया बना ले।
यातना सिस्टम में सिमिलरिटी देखकर लगता है, की सभी प्रकार के यातना गृहों का निर्माण एक ही बिल्डर ने किया है। सभी धर्म के भगवानों ने पूरी एक कॉलोनी बनाई हुई है।