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सुख-दुख

जानिए, जीएसटी ने किस तरह एक वरिष्ठ पत्रकार को बेरोजगारी की कगार पर ला खड़ा किया

संजय कुमार सिंह, वरिष्ठ पत्रकार

जनसत्ता की नौकरी के साथ शौकिया अनुवाद करने वाले संजय कुमार सिंह ने 1995 में अनुवाद कम्युनिकेशन AnuvaadCommunication.com की स्थापना की थी और 2002 में नौकरी छोड़कर पूर्णकालिक अनुवाद करते रहे। उदारीकरण के बाद देश में आने वाले बहुराष्ट्रीय निगमों और देसी कॉरपोरेट्स के साथ देश भर की तमाम जनसंपर्क और विज्ञापन एजेंसियों के लिए काम करते रहे संजय का मानना है कि एक समय आएगा जब कंप्यूटर से कायदे का अनुवाद संभव हो जाएगा। इसलिए वे इसमें भविष्य नहीं देखते और अनुवाद सिखाने में यकीन नहीं रखते। अकेले ही जितना काम कर सकते हैं, करते रहे।

संजय कुमार सिंह, वरिष्ठ पत्रकार

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जनसत्ता की नौकरी के साथ शौकिया अनुवाद करने वाले संजय कुमार सिंह ने 1995 में अनुवाद कम्युनिकेशन AnuvaadCommunication.com की स्थापना की थी और 2002 में नौकरी छोड़कर पूर्णकालिक अनुवाद करते रहे। उदारीकरण के बाद देश में आने वाले बहुराष्ट्रीय निगमों और देसी कॉरपोरेट्स के साथ देश भर की तमाम जनसंपर्क और विज्ञापन एजेंसियों के लिए काम करते रहे संजय का मानना है कि एक समय आएगा जब कंप्यूटर से कायदे का अनुवाद संभव हो जाएगा। इसलिए वे इसमें भविष्य नहीं देखते और अनुवाद सिखाने में यकीन नहीं रखते। अकेले ही जितना काम कर सकते हैं, करते रहे।

सब ठीक-ठाक चल रहा था कि एक जुलाई से जीएसटी लागू हो गया और अचानक सब कुछ बदल गया। जीएसटी से संजय बेरोजगार होने की कगार पर हैं और मानते हैं कि अपनी पसंद का पेशा अपनाने की आजादी अब नहीं रही। नौकरी के साथ छोटा-मोटा काम करके आप अतिरिक्त कमाई नहीं कर सकते हैं। ना ही मामूली निवेश से छोटा-मोटा काम करके जीवन यापन कर सकते हैं। जीएसटी को जानने-समझने की अपनी कोशिश और अनुभव को वे रोज फेसबुक पर लिखते हैं और अभी तक 24 किस्त लिख चुके हैं।

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संजय भड़ास4मीडिया से बातचीत में कहते हैं : ”’मुझे जीएसटी ने मारा.. ये सच है.. जीएसटी के कारण इन दिनों मेरे पास कोई काम-धंधा नहीं है… इस बारे में बताने वाला कोई (मुफ्त का भरोसेमंद जानकार) नहीं मिल रहा है.. मैं पूरे लगन से इस बारे में जानने समझने की कोशिश कर रहा हूं… तय करना है कि जीएसटी पंजीकरण कराना वाकई जरूरी है कि नहीं और है तो यह कितना मुसीबत है और कोई लाभ होगा कि ऐवें ही… कुछेक क्लाइंट्स ने पैसे नहीं दिए, उनका क्या करना है…. यही कारण है कि रोज का अनुभव फेसबुक पर डाल रहा हूं… कोई कुछ मुझे बताना समझाना चाहे तो [email protected] पर भेज सकते हैं.”

आइए, अब संजय का लिखा 24वां पार्ट पढ़ते हैं…

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जीएसटी का सच (24) जीएसटी में पंजीकरण यानि ओखली में सिर डालना है

जीएसटी मेरे लिए मुद्दा तब बना जब दिल्ली और गुड़गांव के मेरे ग्राहकों ने कह दिया कि जीएसटी पंजीकरण के बगैर वे मुझे काम नहीं दे सकते। मैं जीएसटी के बारे में जितना जानता था उस हिसाब से पंजीकरण कराना मुझे भारी झंझट का काम लग रहा था क्योंकि रिटर्न दाखिल करना, टैक्स वसूल कर जमा करना और फिर जहां संभव हो वापस लेना – मेरे लिए असंभव नहीं तो भारी मुसीबत जरूर है और इसके लिए एक अकाउंटैंट जरूरी लग रहा था। मेरे कुछ सवाल थे जिनका जवाब नहीं था और बगैर ठीक से समझे मुझे जीएसटी पंजीकरण कराना ओखली में सिर डालने जैसा लगा। जब काम आना बंद ही हो गया तो जल्दबाजी में पंजीकरण कराने से जरूरी मुझे समझना (और समझाना) लगा क्योंकि इस बारे में कोई ठीक से नहीं जानता था।

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इस क्रम में अभी तक यही समझ में आया है कि पंजीकरण जरूरी है और ग्राहक ठीक कह रहे हैं। इसमें सेवा लेने वाले के लिए यह विकल्प नहीं रह गया है कि छोटा कारोबारी जीएसटी पंजीकृत नहीं होगा तो टैक्स नहीं लेगा और सेवा सस्ती मिल जाएगी ना इस बात का कोई मतलब है कि छोटा कारोबारी अच्छी सेवा देता है। नियम ऐसे हैं कि दूसरे राज्य के (मैं गाजियाबाद में हूं, गुड़गांव हरियाणा में और दिल्ली अलग राज्य है) अपंजीकृत सेवा प्रदाताओं से सेवा ली ही नहीं जा सकती है। पंजीकृत सेवा प्रदाता न हो और आप अपंजीकृत सेवा प्रदाता से सेवा लेते हैं तो टैक्स की रकम आपको अपने पास से जमा कराना है। रीवर्स चार्ज व्यवस्था के तहत इसकी वापसी संभव हुई तो वापस भी मिलेगी पर जमा कराने से कोई छूट नहीं है।

इस तरह, यह स्पष्ट है कि कागजी खाना पूर्ति का काम काफी बढ़ जाएगा। हद तो यह है कि पंजीकरण के बाद बिक्री ना हो शून्य रिटर्न भी समय पर दाखिल करना है और न करने पर भारी जुर्माने का प्रावधान है। यह अलग बात है कि पहला ही रिटर्न सिर्फ 64 प्रतिशत कारोबारियों ने जमा कराया और बाकी के जुर्माने की रकम माफ करने और नहीं करने के संबंध में परस्पर विरोधी खबरें भी आईं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि सरकार ने आधी-अधूरी तैयारी से जीएसटी लागू कर दिया है और इस बारे में जानकारी देने की कोई अधिकृत व्यवस्था नहीं है और जीएसटी कौंसिल के वेबसाइट ऐसा है कि गूगल सर्च करो तो तमाम सॉफ्टवेयर विक्रेताओं से लेकर सीए और ब्लॉग लिखने वालों के आर्टिकल मिल जाएंगे (जिन्हें अधिकृत नहीं माना जा सकता) पर जीएसटी कौंसिल की अधिकृत सूचना नेट पर नहीं मिलेगी। आप पूछ सकते हैं कि सरकारी संस्थान से ऐसी अपेक्षा क्यों? इसलिए कि जीएसटी का सारा काम कंप्यूटर और इंटरनेट से ही होना है। 20 लाख रुपए प्रति वर्ष से कम का कारोबार होने के बावजूद मुझे पंजीकरण इसीलिए कराना है कि मैं कंप्यूटर से काम करता हूं और घर बैठे अपनी सेवा दिल्ली व गुड़गांव (या कहीं के भी) ग्राहकों को भेज देता हूं और उनसे पैसे ले लेता हूं। 

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अभी तक मुझे जीएसटी जितना समझ में आया है वह यही है कि आप कानून का पालन कर नहीं सकते और नहीं करेंगे तो आपके खिलाफ कार्रवाई नहीं होगी क्योंकि अपराध तकनीकी होगा पर ज्यादा चूं-चां करेंगे तो आपके खिलाफ कार्रवाई की जा सकेगी। इसलिए आप डर कर रहिए। अपने काम से मतलब रखिए। अपना काम कीजिए। मुझे यह स्थिति मंजूर नहीं है। मैं यही बता रहा हूं कि नियम परेशान करने के लिए बनाए गए हैं या परेशान करने वाले हैं। पर दूसरी स्थिति यह है कि मैं अपना काम छोड़ दूं या कुछ और करूं। पर यह इतना आसान नहीं है। अभी तक यह रास्ता नजर आ रहा है कि जहां (जिस राज्य से भी) काम मिलने की संभावना हो वहां मैं किसी से साझेदारी करूं और उसके घर को अपनी फर्म का कार्यालय बताऊं तो स्थानीय सेवा प्रदाता होने के दावे पर बगैर पंजीकरण काम मिल सकता है पर चूंकि सेवा लेने वाले को टैक्स अपने पास से जमा कराना ही होगा इसलिए सेवा लेने वाला कोई प्राथमिकता नहीं देगा। विचित्र स्थिति है। 

पार्ट एक से बारह तक पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें…

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पार्ट तेरह से तेइस तक पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें…

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