हिन्दुस्तान में छपी ख़बर
गलाकाट व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के बीच क्या एक अखबार किसी दूसरे अखबार की विज्ञापन योजना को प्रोत्साहित कर सकता है? कतई नहीं। लेकिन 9 अक्टूबर को हिन्दुस्तान में छपी एक खबर को इस का उदाहरण कहा जा सकता है।
खबर फिरोजाबाद जिले के शिकोहाबाद से छपी है। ये खबर अमर उजाला के दीवावली विज्ञापन धमाका योजना के अंतर्गत है। इसी दिन ये खबर अमर उजाला में भी लगी है। अपने विशिष्ट विज्ञापनदाताओं की सेल को प्रमोट करने के लिए अमर उजाला में विज्ञापन के साथ खबरें भी छापी जा रही हैं। पेड न्यूज जैसी यह खबरें विज्ञापन परिशिष्ट के पेज पर इस तरह से छापी जा रही हैं कि आम खबर पढ़ने वालों को दिक्कत न हो।
लेकिन हिन्दुस्तान की उदारता और हिम्मत काबिल-ए-तारीफ़ है। उसने एक पेड न्यूज को एक मासूम खबर की तरह छाप दिया है। खबर के कंटेंट वही हैं जो अमर उजाला में हैं और फोटो पूरा का पूरा वही है। अंतर सिर्फ इतना है कि हिन्दुस्तान ने खबर में से अमर उजाला का नाम हटा दिया है।
कई बार विज्ञापन की विषयवस्तु को खबर बना कर छापने के उदाहरण मिलते हैं लेकिन यह तभी संभव होता है जब संस्थान का विज्ञापन तंत्र अनदेखी की सीमा पर टहलकदमी कर रहा हो। या संपादक के विभाग ने साथी विभाग का बेड़ा गर्क करने का अभियान चला रखा हो।
मगर यह खबर और आगे का उदाहरण पेश करती है। सिर्फ विज्ञापन की विषयवस्तु को ही नहीं बल्कि विरोधी अखबार के विज्ञापन अभियान को ही खबर में छाप दिया है। ऐसे में इस अखबार के प्रबन्धन की दृष्टि पर कुछ कहना आसान हो सकता है।
दरअसल फिरोजाबाद में पिछले कुछ समय से हिन्दुस्तान में विज्ञापन को लेकर लचर और खींचतान का माहौल बना हुआ है। काम करने वाले लोग असंतुष्ट हैं। बताते हैं स्ट्रिंगरों की शिकायत रहती है कि उनके विज्ञापन सम्बन्धी काम को ऊपर से कोई तवज्जो नहीं मिल रही है।
अमर उजाला के दीवावली विज्ञापन धमाका योजना के अंतर्गत छपी ख़बर
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित।