Ashok Kumar Pandey : रवीश से कोई दोस्ती तो नहीं पर वह मुझे जानते हैं। उनको तो खैर कौन नहीं जानता। मेले में स्टाल पर आये तो दो किताबें लीं। एक प्रशंसक ऑटोग्राफ के लिए पगलाया था। उसके हाथ में फैज़ का संकलन था आगे बढ़ा दिया। मुझसे रहा नहीं गया। पर मैं कुछ बोलूँ उसके पहले वह बोल पड़े – मैं फैज़ की किताब पर ऑटोग्राफ दूंगा? इतनी औकात नहीं है मेरी। इसे संभाल के रखिये। यह असली साहित्य है। लाइए कोई सादा काग़ज़ उस पर साइन कर देता हूँ। उस आदमी के सामने यह सेलिब्रिटी वगैरह बकवास है। Satyanand Nirupam थे वहां… उस घटना ने सम्मान जगा दिया रवीश के लिए मन में। आज जब उन पर घटिया हमले हो रहे हैं तो मैं कहना चाहता हूँ : रवीश हम आपके साथ हैं। #IStandWithRavishKumar
अशोक कुमार पांडेय के उपरोक्त फेसबुक स्टेटस पर आए कुछ प्रमुख कमेंट्स इस प्रकार हैं….
Mahesh Jaiswal निस्संदेस रवीश कुमार ईलेक्ट्रानिक मीडिया में विवेक के रक्षक पत्रकार हैं। ऐसे ही प्रतिबद्ध बौद्धिकों का आह्वान करते हुए कवि मुक्तिबोध ने कहा है – ‘उठाने ही होंगे अभिव्यक्ति के खतरे/ तोडने ही होंगे गढ़ और मठ सब’।
Vivek Mishra रवीश निसंदेह एक निष्पक्ष, निर्भीक और सरोकारों को समझने और मुद्दों के लिए जूझने वाले पत्रकार हैं। उनके विरोधी भी उनकी ईमानदारी से परिचित हैं इसीलिए बौखलाए रहते हैं.
Navneet Pandey मुझे भी रवीश इस समय के सबसे अधिक जिम्मेदार पत्रकार लगते हैं। कल बहस में जब एक महाशय ने मुद्दे को टीवी स्टूडियो की बहस कह हल्का करने की कोशिश की उन्होंने उन्हें बेबाकी से उनकी औकात दिखा दी।
Poojāditya Nāth मेरे सामने एक युवाओं के पगलाए झुंड को वो ये कह रहे थे कि ‘मै या कोई एंकर सेलिब्रिटी नहीं है हम टीवी में आ गए तो आपने सेलिब्रिटी समझ लिया, हम आपसे कम काम करते हैं और ज़्यादा पैसे पाते हैं, इस तरह के असमानता के तंत्र में हम सेलिब्रिटी नहीं कहे जा सकते।’ बस उस दिन से आज तक मुझे उनमें वो शख्स दिखता रहा जो हमें आइना दिखाता रहता है।
Manoj Kumar सच में आज उनके लिए सम्मान और बढ़ गया है। मैं उन्हें लगभग तीन सालों से पढ़ रहा हूँ देख रहा हूँ। एक बार उनसे बात भी हुई थी उनसे मिलने की जिद पर था पर उनके पास टाइम नहीं। फोन पर बात हुई बोले मेरे पास पांच मिनिट है लेकिन पांच मिनिट में तुम क्या मिलोगे, बोलो। न बात कर पाओगे न अच्छे से मिल पाओगे। फिर कभी मिल लेना। उनका इसारा फोटों और ऑटोग्राफ तक सिमित नहीं था। पांच मिनिट में यही हो सकता था। फिर बोले आराम से फिर कभी मिल लेना।
Rituparna Mudra Rakshasa पूरी सहमति! मुझे उनमें कई बार कुबेर दत्त छवि दीखती है. वही बेबाक तेवर… सच को सच कहने की सलाहियत… और खरी किस्म की भावुकता जो अनजाने ही दर्शको से एक राब्ता कायम कर लेती है. #IStandWithRavishKumar
Firoj Khan इस समय में रवीश जैसे पत्रकारों के साथ यह नहीं होगा तो किसके साथ होगा। इस दौर में मुख्यधारा की पत्रकारिता में रहते हुए कोई इतनी बात कह ले, कर ले, जितनी रवीश कह-कर लेते हैं, तो बहुत बड़ी बात है। हम साथ हैं…
Shyam Krishna रवीश हमारे दौर के कबीर है। देश की अमानत है हमें उनपर गर्व है।
Shashi Bhushan Singh मीडिया के चारण युग में कोई तो है जो न सिर्फ सरोकारी पत्रकारिता कर रहा है,बल्कि रीढ़ की हड्डी भी रखता है। Yes #IStandWithRavishKumar
Sumant Pandya एक ही तो है रवीश. उन जैसे कई होवें मेरी तो यही कामना है .
Vijay Gaur हमलावरों के खिलाफ एकजुटता जरूरी है।
Shyam Vijay बिल्कुल सही कहा आपने,हम सब रवीश के साथ हैं, उनके हौसले को सलाम !
शाहनाज़ इमरानी निस्संदेस रवीश कुमार जुझारू और निर्भीक पत्रकार हैं।
Rohit G Rusia रवीश के अलावा मीडिया में उन जैसा कोई दूसरा नहीं दिखता इस दौर में ।ये समय सच और उनके साथ खड़ा रहने का है। हम सब भी साथ हैं।
Mubarak Ali रवीश का होना पत्रकारिता से पूरी तरह मोहभंग नहीं होने देता..
Dinesh Pandey पता नही क्यों लोग रवीश की बातों में पूर्वाग्रह ढूंढ लेते हैं। खरी बातें सहजता से बिना किसी ऒर विशेष झुकाव के कहना आज के दौर में सचमुच दुर्लभ है।
Brajmohan Singh रवीश का विकल्प नहीं.
Dinesh Semwal आसमान पर थूकने की कोशिस हो रही है। लगे रहो रविश। हम आपके साथ है।
Juhi Shukla रवीश कुमार जी के बारे में इतना जानती हूँ कि वे एक उम्दा इंसान और ईमानदार पत्रकार हैं ।दोनों खूबियों को साधना असाधारण योगदान है समाज के लिए।
Rajesh Semwal धारा के विरुद्ध इतनी मजबूती से खड़े होने वाले पर तो हमले होंगे ही। इसके लिए तैयार रहना जरूरी है।
Gulzar Hussain दिशाहीन होती जा रही मीडिया में रवीश की जन मुद्दों से जुडी पत्रकारिता राहत देती है। वे हमेशा वंचित-शोषित जनता के अधिकारों के लिए बोलते हैं।
Mahender Singh बिल्कुल सही कहा, हम सब रवीश भाई के साथ हैं, उनके हौसले को सलाम !
Omendra Jaipur HUM RAVISH JI KI BAHOOT IZZAT KARTE HAIN….AUR UNKE V AAPKE SAATH HAIN.
Parmendra Singh पत्रकारिता की इज़्ज़त रवीश जैसे लोगों ने बचा रखी है। हम उनके साथ हैं।
Prakash Badal रवीश में एक जुझारू और प्रतिभाशाली पत्रकार हैं।
Kamal Jeet Choudhary Raveesh ji Mere pasandeeda patrakaat hain kuchh kaarnon se… Ve hme nhi Jane isse kya ham to Unhe jante hain…
Anwar Ahmed Khan मै रवीश जी के साथ नही बल्कि मैं रवीश हूँ
Shambhu Nath Shuklla : रवीश कुमार को मनाना चाहिए और हठकर उनके घर के आगे बैठ जाना चाहिए। वे फेसबुक पर आएं और देखें कि उनके लाखों चहेते उनकी बेबाक पोस्ट पढऩे को बेचैन हैं। कुछ लोग तो अल्ल-बल्ल-सल्ल कमेंट करते ही रहते हैं उनसे घबराकर फेसबुक छोड़ देना कोई सही तो नहीं। हालांकि ऐसा लिखने वाले कोई अनपढ़-गँवार नहीं बल्कि खूब पढ़े लिखे गँवार होते हैं। पर उन गँवारों के गँवरपन से अपने को अपने चहेतों से दूर कर लेना तो कोई बुद्घिमत्ता नहीं। मेरा आग्रह है कि रवीश यहां आएं। और पूरा भरोसा है कि रवीश आएंगे जरूर।
वरिष्ठ पत्रकार शंभू नाथ शुक्ला के फेसबुक वॉल से. उपरोक्त स्टेटस पर आए कुछ कमेंट्स इस प्रकार हैं…
Sandeep Verma सहमत. फेसबुक एक चौपाल है जिसमे सभी तरह के लोग हैं. यद्यपि उज्जड किस्म के लोग गुंडागर्दी करके अपना शासन जरूर चलाना चाहते हैं. एक रवीश का हारना या चले जाना अन्य लोगों के लिए भी परेशानी बढाने वाला है.
Vir Vinod Chhabra मैं रवीश को अक्सर सुनता और देखता हूं। बहुत पसंद हैं वो। हमारे जैसों की आवाज़ हैं। परसों उन्होंने अमन सिन्हा की क्लास ले ली। छोड़ा उन्होंने संजय निरुपम को भी नहीं। बहस करते-करते वो अपना आपा भी खो बैठे। कुतर्क को सहने की एक सीमा होती है। उनका यह रूप मुझे अच्छा लगा। इसलिए कि वो हमारी तरह इंसान हैं। भगवान नहीं। अहमकपन की कोई बात करे तो गुस्सा आना ही चाहिए। स्वाभाविक है। अन्याय को शांति से बर्दाश्त करने के दिन गए।
Mohd Zahid सर सहनशीलता की भी एक सीमा होती है। यह संघी चिलगोदे किस तरह की भाषा संस्कृति लेकर कहाँ से आ गये इस देश में यह शोध का विषय है ।यह देश तो ऋषि मुनियों का देश रहा है जहाँ लोग अपने बच्चों को इनसे भाषा संस्कार और देश की संस्कृति सीखने भेजते थे, गुरुकुल से फैली शिक्षा भारत की पहचान थी ।अब तो लगता ही नहीं कि यह मृदु भाषी श्रीराम और मोहक श्रीकृष्ण का देश है , बल्कि अब तो “सत्य अहिंसा और प्रेम” वाले गांधी का देश भी नहीं लगता बल्कि “असत्य हिंसा और घृणा” वाले गोडसे का ही देश लगता है। रवीश जी का जाना बिल्कुल उचित है और उनको अपने आत्मसम्मान की रक्षा करने का भी अधिकार है परन्तु निष्पक्षता से बंध कर वह ऐसा कैसे कर सकते हैं। उनके चाहने वाले तो चाहेंगे ही कि वह पुनः आएं। यह चिलगोदे बस अब कुछ दिन के ही मेहमान हैं।
कृष्णकांत, रतनजीत, रजनीश और यशवंत ने रवीश के सपोर्ट में फेसबुक पर क्या लिखा है, पढ़िए…
Krishna Kant : रवीश कुमार या किसी दूसरे व्यक्ति को सवाल पूछने के लिए गाली देना बहुत आसान है. रवीश सवाल करें तो आपके संस्कार हिलोर मारने लगते हैं और आप उनके परिवार तक को भला बुरा कहते हैं! हो सकता है कि रवीश के फेसबुक या ट्वीटर छोड़ देने से गाली देने वाले आॅनलाइन दहशतगर्त खुश हुए हों. लेकिन वह जज्बा और वह साहस कहां से लाएंगे आप? दो मसीहा आए थे भारत बदलने. दोनों की छाती पर बुखार से 27 मौतें हो चुकी हैं. आपने सवाल किया? उनके फेसबुक पेज या ट्वीटर पर जाकर कितनी बार सवाल पूछा? दोनों ने अपनी सरकारों के छह महीने, साल भर के फर्जीवाड़े को लेकर चैनल और अखबारों को विज्ञापन से पाट दिया और बच्चे बुखार से मर रहे हैं. आपके पैसे से सरकारें अपना विज्ञापन कर रही हैं और आपके बच्चे बुखार से मर रहे हैं. अस्पतालों में बिस्तर नहीं हैं. केंद्र सरकार के एजेंटनुमा राज्यपाल और फर्जी केजरीवाल की अश्लील नूराकुश्ती जारी है. प्रधानमंत्री बनारस में चुनाव प्रचार कर रहे हैं. आपने सवाल नहीं पूछा होगा. बुखार जैसी पिद्दी बीमारियों से आपके बच्चे मरते हैं तो आपका खून नहीं उबलता. सवाल पूछने वाले से आपका खून उबल जाता है और आप रवीश कुमार को गालियां देने लगते हैं. एक विदेशी राजनयिक के यहां दो नेपाली युवतियों को बलात्कार होता है, वह सुरक्षित अपने देश लौट जाता है. आपका संस्कार नहीं जागता. आपका संस्कार हर हाल में उनके प्रति जागता है जो सरकार पर सवाल करते हैं. ऐसा लगता है कि आपने केंद्र और राज्य के सदनों में देवताओं की प्राण—प्रतिष्ठा की है और वे देवता अप्रश्नेय हैं. जो सवाल करेगा वह ईशनिंदा का दोषी होगा. सार्वजनिक मसलों पर सवाल न पूछकर सवाल पूछने वाले को गरियाना ही आपको सौ साल पीछे खड़ा करता है. प्रिय भक्तगण! गालियां सच को नहीं दबा सकती हैं. गालियां आपकी जबान जलाती हैं और सच को और ताकतवर करती हैं. #IStandWithRavishKumar
Ratanjeet Singh : रविश कुमार ने ट्विटर लिखना बन्द कर दिया है और अब फेसबुक पर भी निष्क्रिय हो चले है । क्योंकि राष्ट्रभक्त फ़ौज उनके नए नए खाते बना कर साम्प्रदायिक पोस्ट चेप रहे है निरंतर । रविश ट्विटर लोकतन्त्र के खासे आलोचक रहे है और सेल्फ़ी को राष्ट्रीय रोग के रूप में गाहेबगाहे बताते भी रहते है । लोकतंत्र में सोशल मिडिया की घुसपेठ के बाद से कई तरह की आशंकाए जताई जाती रही है , सोशल मिडिया के हाइपर प्रयोग के आलोचक स्वयम् भी सोशल मिडिया के बड़े मुरीद है और जो सोशल मिडिया के समर्थक है उनमे से कई तो बकायदा इस नवसंचार के अवैतनिक सैनिक भी है । हमे पता है फेसबुक/ट्विटर कोई अलग दुनिया नहीं है ,एक प्रयोगधर्मी मंच है । जिसका प्रयोग सब अपने अपने ढंग से करते है । ऐसे में रविश जैसे लोगो का इसे इतना दिल पर ले लेना , कई तरह के सवाल खड़े करता है – क्या वाकई साम्प्रदायिक तनाव का नया साधन सोशल मिडिया बन रहा है , क्या सच में भारतीय मनोविज्ञान और धार्मिक द्वन्द्व ग्रन्थि एक होकर सोशल मिडिया पर आ गए है ,खुद को साबित करने के लिए । क्या वाकई लोकतंत्र में अधिनायकवाद, धार्मिक असहिष्णुता, विकासशील अर्थव्यवस्था की कमिया और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का बेहोश सपना सोशलमीडिया के सहारे अपना उद्धार खोज रहा है । क्या कोई इस मंच को बड़ी चालाकी से इस्तेमाल कर रहा है । अगर जवाब हाँ में है तो , चिंता की जानी चाहिए और भीड़तंत्र के विवेक की थाह लेकर हमे इस मंच से उपजे खतरों के प्रति सजक रहना चाहिए। #istandwithravishkumar
Rajneesh Dhakray : कल रवीश कुमार को सॉरी बोलते देखा? दो बार सॉरी बोला एक बार अमन सिन्हा से जिनसे वह भड़क गए थे और अंत में दर्शकों से। कोई भी इंसान पैदा होते ही महान नहीं होता । व्यक्ति बनने के क्रम में कुछ गलतियाँ करता है, कुछ समझौते करता है फिर धीरे धीरे उसे अपने व्यक्तित्व और उसका समाज एवं छोटी और आने वाली पीढ़ियों पर पड़ने वाले प्रभाव का अहसास होना शुरू होता है। अपनी प्रवृत्ति के हिसाब से फिर वह इसको उपयोग में लाना शुरू कर देता है । अपनी इस बन गई छवि का का उपयोग लगभग सभी करते हैं वह भी जो महात्मा बन गए और वह भी जो दुरात्मा बन गए। अब ऐसा भी हो सकता है कि रवीश ने कभी बस में बिना टिकट यात्रा की हो या रिपोर्ट करते समय कोई ऐसा काम कर दिया हो जो गलत हो या समझौते की श्रेणी में आता हो लेकिन वह सब उनके व्यक्ति बनने के क्रम में की गई गलतियाँ जिनके लिए रवीश कुमार के वर्तमान को खारिज़ नहीं किया जा सकता । और सिर्फ रवीश कुमार ही ऐसे पत्रकार नहीं होंगे जो अपना काम पूरी हिम्मत और ईमानदारी (जितनी दिखती है) से कर रहे हैं और भी हैं लेकिन वे इतने चर्चित नहीं हुए हैं जितने रवीश कुमार अन्यथा उनकी भी वही हालत हो रही होती। बहुत अंदर का तो मुझे पता नहीं लेकिन जितना पढ़ा है, इंटरव्यू देखे हैं, समझा है और लोगों के द्वारा उनके संस्मरण सुने मुझे रवीश कुमार genuine लगते हैं। और मैं उनके साथ हूँ। #IStandWithRavishKumar
Yashwant Singh : अगर आपको रवीश कुमार पसंद हैं और कथित हिंदूवादी जाहिलों की आनलाइन गुंडागर्दी के कारण रवीश के फेसबुक-ट्वीटर छोड़ने से आपको भी कष्ट है तो आज आपका रवीश के साथ खड़ा होना बनता है. हैश टैग #istandwithravishkumar को अपने वॉल पर लिखकर रवीश कुमार के सपोर्ट में कुछ लिखें, जैसे कि वो आपको क्यों अच्छे लगते हैं… साथ ही अगर संभव हो तो आईस्टैंडविथरवीशकुमार लिखी उपरोक्त तस्वीर अपने वॉल पर किसी रूप में इस्तेमाल करें. ध्यान रखें, संगठित और ताकतवर जाहिलों का अगर मिलजुल कर विरोध नहीं किया गया तो एक-एक कर हम सब मारे जाएंगे. #istandwithravishkumar
पूरे मामले को जानने समझने के लिए इन शीर्षकों पर भी क्लिक कर पढ़ें….
आनलाइन गुंडागर्दी से दुखी रवीश कुमार ने अपना फेसबुक और ट्विटर एकाउंट बंद कर दिया
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ट्वीटर और फेसबुक पर मेरे नाम का दुरुपयोग कर घटिया बातें लिखी जा रही हैं : रवीश कुमार
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Anuj Kumar Srivastav
September 21, 2015 at 5:18 am
Ravish we are with you. Please do not close your facebook / twitter account as that is what these rogue elements want – to shut the voice and trample all opposing ideas.
Walk ahead and look forward the past is there as lesson and not to silence us
tarun
September 19, 2015 at 10:29 am
one of best generalist…..always talk about useful topic,,. darna mat kuch bhade ke gundo se,,,,aiso ki kami na hai dharti per
Kapil Agarwal
September 19, 2015 at 10:57 am
Ravish we are with you . I do not complete me evening without (Ravish) prime time on NDTV. Moreover i believe that i am a very very common man there must be corores of common man in india who like independent ,fair ,unbiased media. May god god bless our so called fourth pillar of democracy with fair, independent,unbiased journalism.
tanzeel ather
September 19, 2015 at 2:12 pm
Modi ke cyber gundon ko jawab dena zarooro hai…ravish hamare desh ke sacche patrakar hai
मनोज पाण्डेय
September 20, 2015 at 11:00 am
विचार को विचार से काटे पर नहीं आपका विचार पसंद नहीं है तो आप को काट देंगे की ये चंगेज खां की ओल्लाद नहीं है आदरनिये रवीश जी हम आप के साथ है
Paresh Kumar Singh
September 20, 2015 at 1:40 pm
हम रविश का सपोर्ट करते हैं। इनके कारण ही आज बीजेपी सत्ता में हैं। बीजेपी के अन्धविरोध में ये अक्सर अतिरेक हो जातेहैं और ISIS के supporter नजर आते हैं। इन जैसे लोग ना होते तो बीजेपी का इतना प्रचार ना होता ना ही बीजेपी 2 से 282 की पार्टी बन पाती । आ रविश आ जाओ 2019 में बीजेपी को 400+ की पार्टी बनाना हैं। आओ थोडा बकवास कर जाओ। अब आ भी जाओ। मान जाओ
Paresh Kumar Singh
September 20, 2015 at 1:44 pm
Ravish you are symbol of communalism India. You have started Anti national campaigns during Batala house encounter and it helped BJP lot. Please return back to support your brother in Law Daud and other terrorist organization of India. Spread anti Hindu propaganda. Hope BJP will cross 400+ in 2019. Please joind fb again.
deepak
September 20, 2015 at 3:41 pm
रवीश जी आपने एकदम सही किया। मैंने भी अपने सभी एकाउंट बंद कर दिये हैं। केवल फेसबुक का एकाउंट चल रहा हैं, लेकिन उस पर मैं गाहे बगाहे ही जाता हूं।
DEEPAK SEN
JOURNALIST PTI-BHASHA
deepak
September 20, 2015 at 3:42 pm
रवीश जी आपने एकदम सही किया। मैंने भी अपने सभी एकाउंट बंद कर दिये हैं। केवल फेसबुक का एकाउंट चल रहा हैं, लेकिन उस पर मैं गाहे बगाहे ही जाता हूं।
DEEPAK SEN
JOURNALIST PTI-BHASHA
Ravi Shankar
September 22, 2015 at 12:11 pm
Ravish Kumar I m with you, inspite of BJP supporter. I respect your reporting.
ABHAY PANDEY
September 26, 2015 at 1:16 am
हिटलर ने कहा है की मुर्ख व्यक्ति स्थिति के बाहरी रूप का हीं निरीक्षण कर पाने में सक्षम होते हैं ,वे किसी स्थिति की वास्तविकता के गहराई तक जाने में समर्थ नहीं होते लिहाजा ऐसे लोग किसी वस्तु की किम्मत उसके सार से नहीं बल्कि उसके बाह्य से लगाते हैं…..मैं कभी रविश जी से मिला नहीं इस लिए व्यक्तिगत रूप से जानता नहीं लेकिन इतना जरुर मानता हूँ की पत्रकारिता के मूल को समेटे वे एक grass rout journalist हैं उनके साथ लोगों का व्यय्व्हार भी सम्मान जनक होना चाहिए …वह बैठा कारागार बीच .हम सब का भला मनाता है
बंधन देकर निज अंगों को माता को मुक्त कराता है
पर हम क्या करते ? हाय . हाय सोंचते शीश झुक जाता है
जिसके मन में जो आता है वो वाही राग चिल्लाता है…
kumar
September 26, 2015 at 11:12 am
ye to ravish ki nautanki ho gayi hai..har baar twitter facebook se tauba karta hai aur phir aa jata hai..is beech uske tathakathit bhakt us se wapas aa jane ki guhar karte hain..ye imran khan ka retirement se wapas aane ka record todega..