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सियासत

इफको की कहानी (14) : संसद में अवस्थी के भ्रष्टाचार पर आवाज उठी तो सरकार ने कान बंद कर लिए!

रविंद्र सिंह-

कौन है जै एन एल श्रीवास्तव.. ?

जेएनएल श्रीवास्तव उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं, उनका जन्म 1 जनवरी 1943 को हुआ था और वह शुरू से पढने में सर्वश्रेष्ठ थे। उन्होने गणित से प्रथम श्रेणी में स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की और आगे की पढाई जारी रखते हुए सिविल सर्विस की तैयारी शुरू कर दी। सन् 1966 में पंजाब कैडर से उनका चयन भारतीय प्रशासनिक सेवा में हो गया।

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लंबे समय तक पंजाब में रहने के बाद 1 मार्च 1980 से 1 मार्च 1981 तक प्रतिनियुक्ति पर केंद्र सरकार के कृषि एवं सहकारिता मंत्रालय में रजिस्ट्रार/निदेशक के पद पर तैनात रहे। प्रथम तैनाती के समय उनकी मुलाकात उदय शंकर अवस्थी से हुई उस समय अवस्थी इफको में वरिष्ठ प्रबंधक पद पर कार्यरत थे। इफको भारत सरकार के नियंत्रण वाली देश की सबसे बडी सहकारी क्षेत्र की उर्वरक कंपनी है. जेएनएल श्रीवास्तव पंजाब वापस चले गए लेकिन दोनों के बीच संवाद बहुत ही मधुर रहा जो आगे चलकर दोस्ती में बदल गया।

1 दिसंबर 1988 को एक बार पुनः वह कृषि मंत्रालय के कृषि सहकारिता विभाग में संयुक्त सचिव के पद पर आसीन हो गए और 1 मई 1991 तक तैनात रहे. अब उदय शंकर से उनकी नजदीकियां और ज्यादा बढती चली गई लेकिन इस बात का किसी को पता नहीं था कि यह दोस्ती देश में क्या गुल खिलाने वाली है। दोनों के बीच हुई दोस्ती से एक दूसरे के बारे में समझते हुए इफको पर अपना अधिकार कैसे जमाया जाए इस पर विचार चलने लगा। अब जेएनएल श्रीवास्तव सहकारिता की गहराई को अच्छी तरह से समझ चुके थे। 1 मई 1991 से 1 दिसंबर 1993 तक प्रबंध निदेशक कृषि मंत्रालय के कृषि और सहकारिता केंद्र में तैनात रहे. इफको के पंजीकरण से लेकर समय-समय पर उपविधि संशोधन इसी विभाग द्वारा निगरानी करने के उपरान्त किया जाता था।

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उधर उदय शंकर अवस्थी अल्प समय के लिए इफको से बाहर अन्य कंपनी में प्रबंध निदेशक के पद पर तैनात हो गए। दोनों के बीच पहले से ही समझौता था इसलिए नवंबर 1993 में उदय शंकर अवस्थी ने पुनः इफको में पर कार्यभार ग्रहण कर लिया। अब जेएनएल श्रीवास्तव सांठ-गांठ के तहत 8 दिसंबर 1993 से 5 अप्रैल 1994 तक अवकाश पर चले गए।

लेकिन अब भी सरकार और इफको बोर्ड इस बात को समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर दोनों के बीच ऐसा क्या है जो जेएनएल श्रीवास्तव लंबे अवकाश पर चले गए। कई सालों तक अन्य विभागों में तैनाती के बाद श्रीवास्तव 1 जनवरी 1996 से पुन: कृषि एवं सहकारिता विभाग में अपर सचिव के पद पर तैनात हो गए। सोची समझी साजिश के तहत दोनों के मन में विचार आया इफको से सरकार का नियंत्रण किस तरह से खत्म किया जा सकता है। चूंकि जेएनएल श्रीवास्तव IAS थे उन्हें अब तक सहकारिता का लंबा अनुभव था काफी समय बाद उदय शंकर ने दोस्ती का हवाला देते हुए कहा कुछ तो करिए इस पर उन्होने ज्ञान देते हुए मंत्र बताया सरकार में तुम्हारे अच्छे रिशते हैं आगे भी रहने के प्रबल आसार हैं ऐसे में सरकार से अपने मधुर रिश्तों का फायदा उठा लीजिए। उदय शंकर ने कहा खुलकर बोलिए न मैं कैसे फायदा उठा सकता हूं? फिर उन्होंने कहा मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव सोसायटी एक्ट संसद में पास करा दीजिए सरकार अपनी है इसलिए संभव भी है।

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अब उदय शंकर ने सरकार में अपने संबन्धों के बल पर यह कहलाना शुरू कर दिया अधिनियम में संशोधन होने से देश के किसानों का भला होगा। उधर नेताओं की चंदा व अन्य जरूरतें पूरी करना शुरू कर दी। यह कहावत शत् प्रतिशत् सच है भारत की नौकरशाह संवैधानिक तौर पर नहीं राजनीतिक इच्छा शक्ति से कार्य करते हैं। बाद में नतीजा चाहे जो भी रहे इसी सोच के साथ सरकार ने ड्राफ्ट रूल तैयार कराने की मंशा जाहिर कर दी। अब बात आकर अटक गई ड्राफ्ट रूल कमेटी में ऐसे कौन-कौन से मंत्रालय को रखा जाए जो बिना अडंगा लगाए मनमाफिक उपविधियां बनाते हुए इफको बायलॉज संशोधन सफल हो सके। कानून मंत्रालय की सलाह पर ड्रॉफ्ट कमेटी में कृषि, उर्वरक एवं वित्त मंत्रालय को रखा गया क्योंकि इन्ही मंत्रालय के इफको बोर्ड में पदेन सदस्य थे। तीनों मंत्रालय को आपसी सामंजस्य के आधार पर 90 दिनों के भीतर ड्रॉफ्ट रूल तैयार कर अपना पक्ष रखना था।

अब उदय शंकर को यह छटपटाहट होने लगी कि वित्त और उर्वरक मंत्रालय ड्रॉफ्ट रूल में केंद्र सरकार का पक्ष मजबूती से रखने की वकालत कर रहे हैं, ऐसे में इफको से सरकार का नियंत्रण खत्म करने का मामला कहीं ऐसा न हो धरा का धरा रह जाए, फिर रणनीति के तहत ड्राफ्ट रूल पर कार्रवाई रूकवा दी गई इधर जेएनएल श्रीवास्तव पूरी तरह से 4 सितंबर 2000 को कृषि सचिव बन गए और सहकारिता विभाग भी उनके ही अधीन आ गया फिर जल्दबाजी में ड्राफ्ट रूल तैयार होने लगा। कृषि सचिव से पहले ही सांठ-गांठ थी और बाकी मंत्रालय के अधिकारों का पूरी तरह से अतिक्रमण करते हुए अधिनियम संशोधन पर कार्रवाई तेज कर दी गई।

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सबसे अहम् बात यह है कि भारत की संसद ने कानून बनाया भी नहीं था उससे पहले इफको बायलॉज में उपनियम 6-7 में संशोधन कर लिया गया। उदय शंकर को इस बात पर पूरा भरोसा था कि वह जो चाहते हैं हर नौकरशाह और अफसर करने को तैयार हैं। सत्ता के गलियारों में पक्ष से लेकर विपक्ष तक चुनावी चंदा और अन्य तरह के प्रलोभन पूरे होने से खुश हैं ऐसे में कोई मंत्रालय अडंगा लगाता भी है तो उसका ड्रॉफ्ट रूल पर किसी तरह का असर नहीं पड़ेगा। सरकार ने आपसी समन्वय के आधार पर कृषि, आसार हैं निर्देश दिए थे। उदय शंकर ने कृषि सचिव से अपनी दोस्ती का फायदा उर्वरक और वित्त मंत्रालय से 90 दिन के भीतर ड्रॉफ्ट रूल तैयार करने के उठाते हुए मन चाहा ड्राफ्ट रूल तैयार करवा लिया। उर्वरक और वित्त 1 दीजिए देखते-देखते इफको बायलॉज संशोधन कर रजिस्टर्ड कर दिया। जब मंत्रालय चीखते रहे लेकिन उनकी कृषि सचिव ने एक न सुनी और उक्त प्रकरण उर्वरक एवं रसायन मंत्री के दरबार में पहुंचा तो वहां भी रणनीति के तहत पहले से सांठ-गांठ थी और मंत्री को हर तरह से खुश कर दिया गया।

कानून के जानकार बताते हैं जब भी इस तरह का निर्णय लिया जाता है खासकर पीएसयू में जहां केंद्र सरकार का 51 प्रतिशत् शेयर होता है। सबसे पहले सत्ता की सरकार कैबीनेट में प्रस्ताव पास कराती है फिर शेयर बढाने और वापस लेने का निर्णय लिया जाता है। परंतु इफको में तो लगभग 70 फीसदी हिस्सेदारी केंद्र सरकार की थी और 30 फीसदी किसानों की ऐसे में 30 फीसदी शेयर धारक किसानों के द्वारा चुने गए निदेशक सरकार की हिस्सेदारी जबरन वापस कैसे कर सकते हैं। उर्वरक मंत्रालय आज भी इफको बोर्ड द्वारा वापस किए गए शेयर को बलपूर्वक, गैरकानूनी और विवादित मानता है। अगर सही मायने में बिवाद है तो 16 साल से आज तक किसी भी किसानों की लोकप्रिय सरकार ने यह विवाद सुलझाने का प्रयास क्यों नहीं किया यह विचारणीय प्रश्न है? सच तो यह है कि भारतीय पंचायतीराज व्यवस्था में ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत का चुनाव सिर्फ धन और बल को आधार बनाकर जीता जा सकता है उसी तरह से उदय शंकर ने इफको से भारत सरकार का शेयर वापस कर लोकतंत्र में अब तक का देश में सबसे बडा घोटाला कर दिखाया है। आखिर किसानों को मुद्दा बनाकर राजनीति करने वाले राजनीतिक दल ने जीते-जी अपनी आत्मा को कैसे मार दिया, यह बात उनकी नीति और नियत पर सवालिया निशान लगाती है।

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जेएनएल श्रीवास्तव उक्त पद पर मंत्रालय में 31 दिसंबर 2002 तक रहे इस बीच उन्होंने पूरी तरह से मुजरा देखते हुए इफको का चीर हरण करवा दिया। मजेदार बात यह है जो किसान इफको के अंश धारक हैं उनको आज भी यही पता है कि इफको भारत सरकार के संयंत्रण में है। यह कहावत चाय की दुकान पर कानून के जानकार की जुबानी सुनी होगी, आईएएस पूरी तरह से प्रशासन में शासक और जुन्यलय में खुद को न्यायधीश मानता है वह जानता है नेताओं में इतनी दम नहीं और वहां तो जज हैं ही, ऐसे में कौन क्या बिगाड सकता है। यही धारणा भारत के विकास में पूरी तरह से बाधक बन गई है। वरन् सरकार की हर लोकप्रिय नीति समाज में अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने से पहले अपना दम क्यों तोड देती है। देश में आईएएस, आईपीएस और आईआरएस पूरी तरह से 100 करोड, 200 करोड के कॉरपोरेटर बनने में लगे हुए हैं उन्हें जनता के सरोकारी मुद्दों से कोई लेना-देना नहीं बचा है।

इसी कड़ी में जो ईमानदारी से अपना दायित्व निर्वहन कर रहे हैं उनकी सरकार भी उपेक्षा करती आयी है।

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जे.एन.एल श्रीवास्तव ने भारत सरकार में कृषि सचिव के संवेदनशील पद पर रहते हुए राष्ट्र के साथ इतना बडा धोखा किया है जिसकी भरपाई हो पाना पूरी तरह से असंभव है। श्रीवास्तव के निकम्मेपन की जितनी आलोचना की जाए कम है। वह भूल गया यह पद संवैधानिक है फिर भी उसने देश के 5.5 करोड किसानों की जिंदगी तबाह कर दी। आईएएस रहते हुए तो गरीबों का खून पीने में कोई कसर नहीं छोडी। सेवा निवृत होने के बाद इफको में बकायदा इफको फाउंडेशन नाम से कंपनी बनाई और बेशर्मी की हद तब पार हो गई जब इस संस्था में स्वयं प्रबंध ट्रस्टी का कार्यभार ग्रहण कर लिया।

यह बात सच है जो नौकरशाह सत्ता पक्ष के तलवे चाटता है उसे सेवा निवृत होने के बाद सरकार जनता के पैसे से ऐश-आराम करने के लिए आयोग का सदस्य-अध्यक्ष बना देती है। ठीक उसी तरह देश के सहकारिता माफिया ने गरीब किसानों के अंश धन से इफको फाउंडेशन में प्रबंध ट्रस्टी बनाकर गिफ्ट दे दिया। बेशर्म श्रीवास्तव ने 2003 से 2016 तक धन की बर्बादी कर खूब पिकनिक मनाई। अब उदय शंकर को लगने लगा कब सरकार दबोच ले उससे पहले फाउंडेशन को भंग कर बेईमान श्रीवास्तव को लात मारकर बाहर कर दिया और वह अब गुडगांव स्थित सेक्टर-17 में रहकर अपना जीवन बिता रहे हैं। लेखक ने श्रीवास्तव से उनके मोबाइल पर पक्ष जानने को फोन किया तो उनका रटा रटाया जबाव था “मैं इफको में नहीं हूँ बहुत पहले था” बातचीत के लहजे में बहुत ही घबराहट थी आवाज साफ नहीं निकल रही थी। इससे साफ होता है चोर चोरी कितनी भी होशियारी से करे परंतु पकड़े जाने का डर हमेशा उसके मन में रहता है। फाउंडेशन के जरिए देश के कोने कोने में घूमकर सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों का विकास करने के नाम पर खूब धन लूटा। लंबे समय तक संस्था में धन की बर्बादी होती रही और देश के नेता व नौकरशाह गूंगे, बहरे और अंधे की तरह नजारा देखते रहे।

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संसद में इफको की बर्बादी और उदय शंकर के भ्रष्टाचार के जब भी किसी ईमानदार सांसद ने सवाल उठाए तो सरकार ने भी इस कान से सुना और उस कान से निकाल दिया। श्रीवास्तव को कृषि सचिव पद से सेवा निवृत हुए 31 दिसंबर 2018 को 16 साल पूरे होने जा रहे हैं। मंत्रालय आज भी भ्रष्टाचार और ताकत से खौफ में है। उर्वरक मंत्रालय पूछे जाने पर कारनामे उजागर कर रहा है तो कृषि मंत्रालय पीएमओ, उर्वरक मंत्रालय के निर्देश की प्रति रद्दी की टोकरी में डालकर पूरा संरक्षण दे रहा है। मंत्रालय को यह भी डर है श्रीवास्तव तो अंतिम समय में हैं कहीं भेद खुल गया तो जो अफसर आज भी नौकरी में है उनकी भी मौत हो जाएगी। इसी तर्ज पर मंत्रालय राज को राज रहने दो की तरह मौन बना बैठा है। देश के 5.5 करोड किसान और उनके परिवार अपनी आजादी के लिए चीख रहे हैं लेकिन सरकार और नौकरशाह बेपरबाह सुनने को तैयार नहीं हैं।

देश के कोने-कोने में घूमकर किसानों की विकास यात्रा के कसीदे पढने वाले श्रीवास्तव ने इफको में उनके अंश धन को बढाने के लिए कभी 2 शब्द नहीं बोले। उदय शंकर की जुबानी माने तो वह कहते हैं सेना में सैनिक की तरह कुत्ता और घोडा भी बफादार होता है। जब तक यह सेना में रहते हुए देश के काम आते है खूब खातिरदारी की जाती है। जब सेना यह जान लेती है यह कुत्ता और घोडा किसी काम के नहीं रहे तो उन्हे गन प्वॉइंट से मौत के घाट उतार दिया जाता है। यही संस्कृति कार्य करने की उदय शंकर की है जब उसे किसी से काम लेना होता है तो तलवे चाटते हुए हर शौक पूरा कराता है और जब काम निकल जाता है तो दूध में गिरी मक्खी की तरह निकाल फेंक देता है।

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बरेली के पत्रकार रविंद्र सिंह द्वारा लिखी किताब इफको किसकी का 14वां पार्ट..

पिछला भाग.. इफको की कहानी (13) : मोदी सरकार को भी सहकारिता माफिया ने समझा दिया!

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