रविंद्र सिंह-
केंद्रीय रजिस्ट्रार सहकारिता हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे हैं और गलत को सही कहते जा रहे हैं. भारत एक लोकतांत्रिक देश है और जनता स्वयं सरकार चुनती है. जिसमें 60 फीसदी किसान भी हैं. चुनावों में किसानों की समृद्धि के वादे किए जाते हैं लेकिन इफको में अंदर ही अंदर क्या चल रहा है आज तक किसी नेता और दल ने यह मुद्दा नहीं उठाया है. क्या किसानों की आय दोगुना संबोधन करने मात्र से हो जाएगी? क्या सरकारें किसानों के मुद्दे पर पूरी तरह से शोकाकुल हैं?
यह कहानी स्वतंत्र देश की है. अंग्रेज भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रमोशन और व्यापार करने आए थे उस समय किसी ने यह नहीं सोचा था कि एक दिन यह गुलाम बनाकर खुद मालिक बन जाएंगे. ऐसा ही इफको के साथ हुआ है पूरे देश के 5 करोड़ किसानों को गुलाम बनाने के पीछे बोर्ड की क्या मंशा थी सरकारें और नेता रत्ती भर भी विरोध नहीं कर सके? क्या इसके पीछे निजी स्वार्थ थे? इफको का उत्पादन बढ़ा बिक्री बढ़ी लेकिन मुनाफा घटता चला गया, यह तर्क दिया जाता है कि कच्चा माल महंगा मिल रहा है. किसी भी ऐसे उपक्रम जिसमें भारत सरकार की हिस्सेदारी 70 फीसदी हो उसकी बाहरी ऑडिट कैग से कराई जाती है लेकिन इफको में ऑडिट सनदी लेखाकार यानी चार्टर्ड एकाउंटेंट करते हैं जिनकी लेखा परीक्षा पर सवाल भी उठते रहे हैं?
किसानों की, किसानों के द्वारा, किसानों के लिए के सिद्धांत पर स्थापित सहकारी समिति अब किसानों की न रहकर चंद बोर्ड सदस्यों की जागीर बन चुकी है. देश संविधान से चलता है और समाज संस्कृति व मूल्यों से चल रहा है तो इफको में संविधान, संस्कृति और मूल्य लागू क्यों नहीं होते हैं?
इफको का उत्पादन वित्त वर्ष 2016-17 में 43 लाख मीट्रिक टन, फास्फेटिक का उत्पादन 42 लाख मीट्रिक टन और बिक्री 1 करोड़ 13 लाख मीट्रिक टन रहा है. कर के बाद लगभग 723 करोड़ है. उक्त लाभ में सहयोगी कंपनी बी सामिल हैं. इसी तरह चंबल केमीकल एंड फर्टिलाइजर का उत्पादन वित्त वर्ष 2016-17 में 20 लाख मीट्रिक टन था, और कर के बाद लाभ 423 करोड़ है. इसी तरह टाटा केमीकल एंड फर्टिलाइजर का उत्पादन वित्त वर्ष 2016-17 में 12 लाख मीट्रिक टन है. कर के बाद लाभ लगभग 1000 करोड़ है. ऐसे में इफको और उक्त कंपनी के उत्पादन व लाभ में तुलना की जाए तो घोटाला साफ दिखाई दे रहा है. इफको खुद को देश व विदेश का सबसे बड़ा उर्वरक उत्पादन इकाई मानता है. लेकिन देश में कुल उर्वरक उत्पादन में इफको का योगदान महज 27 फीसदी है. 73 फीसदी योगदान अन्य कंपनी का है.
इफको घोटाला की पृष्ठ भूमि में सबसे पहले उदय शंकर ने तत्कालीन प्रधानमंत्री कार्यालय के प्रधान सचिव ब्रजेश कुमार मिश्रा से सांठ-गांठ कर कहा कि मल्टी स्टेट को-आपरेटिव एक्ट के अस्तित्व में आने से पूरे देश के किसानों का उद्धार हो सकता है और इफको में लोकतंत्र कायम हो जाएगा. लेकिन वह यह बात भूल गए जब सरकार को जनता द्वारा चुना जाता है और सरकार का ही इफको पर नियंत्रण है तो इससे बड़ा लोकतंत्र और क्या हो सकता है?
सर्व विदित है कि जब कोई गलत व्यक्ति किसी के बहन-बेटी पर कोई गलत नजर डालता है तो घर में आने जाने के लिए कोई न कोई बहाना खोजता है इसी तरह भ्रष्ट उदय शंकर ने अपनी बात पीएम तक पहुंचाने के लिए यह रास्ता चुना अब उन्हें क्या मालूम था इसका मकसद ऐसा होगा? इफको घोटाले में उदय शंकर ने तत्कालीन नौकरशाही से सांठ गांठ की जिसमें सबसे ज्यादा संदिग्ध कार्यशैली कृषि मंत्रालय की रही.
यह बात 16 आने सच है उदय शंकर ने इफको का अपहरण कर लिया है. मनमानी करते हुए भाई-भतीजा वाद को बढ़ावा दिया है. जिसने भी भ्रष्टाचार का विरोद किया उसे इफको सेवा नियम का अतिक्रमण कर अपने पैरों तले कुचल दिया है. ऐसे असंख्य उदाहरण हैं. इफको के अपहरण में तत्कालीन कृषि मंत्री अजीत सिंह ने सन् 2001 से 2003 तक प्रधानमंत्री को धोखे में रखकर उदय शंकर का साथ दिया है. देश में किसानों की समृद्धि के लिए इफको की स्थापना की गई थी. लेकिन उस समय यह बात न तो पंडित जवाहर लाल नेहरू जानते ते और न ही संस्थापक पॉल पोथन ही कि नौकरशाह ऐसा भी आएगा जो संस्था का उद्देश्य बदलकर गैर कृषि निवेश में धन लगाकर हड़प लेगा.
बार-बार इफको बोर्ड को आगे रखकर बात की जाती है सवाल यह है कि क्या बोर्ड में वे किसान हैं जिनकी समृद्धि के लिए स्थापना की गई थी अगर नहीं तो वे क्या जाने खेती और किसानी?
कहते हैं जो इंसान अपनी जिंदगी की शुरूआत कठिनाई से करता है वह हर किसी की कठिनाई आसानी से समझ जाता है. आज से 16 साल पहले देश के सहकारिता माफियाओं ने राष्ट्र के साथ धोखा करते हुए इफको की संरचना ही बिगाड़ दी है. जिसमें सबसे बड़ी भूमिका कृषि सचिव की रही है. उर्वरक और वित्त मंत्रालय के अफसर उक्त संरचना पर बार-बार कृषि सचिव को पत्र लिखकर बचाने का अनुरोध फाइलों में तो करते दिखाई दे रहे हैं लेकिन पीएमओ तक अपना पक्ष रखने में पूरी तरह असफल रहे हैं.
सवाल फिर वही आ रहा है क्या मोदी सरकार उक्त संरचना को वापस लाने के लिए ठोस कदम उठाकर कार्रवाई करने की इच्छा शक्ति जाग्रत कर पाएगी?
भारत के किसान की उन्नति के लिए इफको ने जो सफर शुरू किया था वह आज पूरी तरह से बेईमानी साबित हो रहा है. अगर प्रबंधन खेती में लागत कम करने की दिशा में शोध करता तो गांवो से पलायन भी रूकता और आमदनी में बढ़ोतरी होती जिससे वे खेती से मुंह नहीं मोड़ते. इफको ने खेती का विकास किया है यह बात सही है लेकिन उससे की गुना ज्यादा विनाश भी कर दिया है अधिक उर्वरक की बुवाई करने से जमीन की उर्वरा शक्ति खत्म हो गई है और जब पैदावार में गिरावट आ गई तो इफको की नींद टूटी, अब जैविक उर्वरक से खेती की पैदावार बढ़ाने के महज सपने दिखाए जा रहे हैं जो जमीनी हकीकत से काफी दूर हैं.
बरेली के पत्रकार रविंद्र सिंह द्वारा लिखित किताब ‘इफ़को किसकी?’ का दूसरा पार्ट.
जारी है…
पहला पार्ट.. इफको की कहानी (1) : बड़े-बड़े दावे करने वाले पत्रकार अपनी आत्मा और ईमान बेचते गए!