रविंद्र सिंह-
कब लौटेगा इफको का गौरव, हस्तक्षेप कर पाएगी मोदी सरकार?
यहां सबसे बड़ा सवाल यह है पीएमओ के आदेश पर उर्वरक मंत्रालय ने सीबीआई को जांच सौंपी है, पीएमओ में भी अवस्थी एंड कंपनी के खिलाफ 3 अलग-अलग शिकायतें दर्ज हैं। ऐसे में पीएम की नाक तले बैठे नौकरशाह क्या इतने भ्रष्ट हैं उन्हे रत्ती भर पीएम की छवि का ख्याल नहीं है। फिर पीआर विभाग ने रणनीति के तहत देश के समाचार पत्रों में विज्ञापन की तरह प्रशंसा पत्र छपवाकर अपने ट्वीटर आकाउंट के जरिए खूब प्रचार किया है।
इसी तरह दिल्ली तेलगू अकादमी के जरिए उप राष्ट्रपति एम. वैंकया नायडू के हाथों अवस्थी ने खुद को सम्मानित कराकर प्रचार-प्रसार कराया है। जांच का विषय यह भी है उक्त अकादमी द्वारा देश के सबसे महा भ्रष्ट (सहकारिता माफिया) को सम्मानित कराने के पीछे उद्देश्य क्या है। उप राष्ट्रपति से सम्मानित कराने का आग्रह किसकी पैरवी से स्वीकार कराया गया? देश में जब भी वी.वीआईपी किसी विशेष आयोजन में जाते हैं उससे पहले आयोजक सदस्यों के चाल-चरित्र की जानकारी खुफिया एजेंसी देकर अवगत करा देती हैं।
फिर उक्त प्रकरण में उप राष्ट्रपति कार्यालय को जानकारी देने में एजेंसी की विफलता क्यों रही है। क्या यह सरकार का अंग नहीं हैं या नियंत्रण से बाहर हैं इसलिए उन्हें जबावदेही की चिंता नहीं है। एम. वैंकया नायडू से सम्मानित होने के बाद अवस्थी ने अपने ऑफिशियल ट्वीटर अकाउंट से फोटो का प्रचार-प्रसार कर जग जाहिर कर दिया कि उसने देश के द्वितीय सबसे बडी ताकत को किस तरह जाल में फंसाया है? यह बात सच है आजादी के बाद पं. नेहरू ने नौकरशाही को हद से तरजीह दी थी फिर यह नौकरशाह जनता का सेवक न समझ खुद को मालिक समझने लगे, और अंग्रेजो की तरह व्यवहार कर देश को विकास की राह से पूरी तरह अलग कर दिया था।
पीएमओ में आज भी ईमानदार नौकरशाह नहीं हैं कहने को नृपेंद्र मिश्रा ईमानदार हैं लेकिन वह सबका बोझ कब तक ढोते रहेगे। देश में दल बदले, सरकार बदली, परंतु नौकरशाह के कार्य करने की संस्कृति में किसी तरह का बदलाव नजर नहीं आ रहा है। इसके पीछे यह माना जा सकता है सरकार भ्रष्टाचार मुक्त भारत की बात तो करती है लेकिन इस मुद्दे पर पूरी तरह से गंभीर न होकर सिर्फ शोकाकुल हैं।
महा भ्रष्ट उदय शंकर को आज शक्तिशाली बनाने वाले नौकरशाह हैं यह राजनीतिज्ञ की कमजोरी अच्छी तरह से जानते हैं और अवस्थी खुद एक नौकरशाह है इसलिए हर नौकरशाह की कार्यशैली व कमजोरी अच्छी तरह से जानता है। लेखक ने 13 मार्च 2015 को केंद्रीय सतर्कता आयोग सतर्कता भवन, ब्लॉक-ए जी.पी.ओ कॉम्पलेक्स आई.एन.ए नई दिल्ली से सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत सूचना मांगी तो आयोग ने सी.वी.सी/आर.टी.आई/14/2207/281243 के जरिए जबाव इस तरह दिया पैरा 1 एवं 2 धारा 8 (1) (ज) के अंतर्गत सूचना देने से इंकार किया जाता है क्योंकि उदय शंकर अवस्थी तथा अन्यों के विरुद्ध मामले अभी तार्किक निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे हैं।
इसके अतिरिक्त आई.एफ.एफ.सी.ओ पर आयोग की अधिकारिकता संबन्धि मामला अभी निर्णय अधीन है। यह जबाव आयोग ने उस समय दिया था जब भ्रष्टाचार के मुद्दे पर केंद्र सरकार पूरी तरह से संवेदनशीलता दिखाते हुए कार्रवाई का मन बना रही थी तब गुजरात कैडर के आईएएस अधिकारी मंत्रालयों में मनमानी करते हुए हावी नहीं थे।
लेखक ने 22 जनवरी 2018 को पीएमओ से 150 प्रश्नों का पत्र भेजकर सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत सूचना मांगी थी जिसमें मार्च 2018 को सतर्कता आयोग के केंद्रीय जन सूचना अधिकारी सी.आई.सी प्रश्न संख्या 27, 28, 29, 34, 37, 47 तथा 68 सी.वी.सी से संबन्धित थे। 28 के केस के निर्णय डा. डीबी राव बनाम कानून मंत्रालय की नजीर का हवाला देते हुए सूचना देने से पूरी तरह इंकार कर रहे हैं। ऐसा इसलिए किया जा रहा है अब अवस्थी कभी फोटो तो कभी प्रशंसा पत्र दिखाकर की तरह पिंजरे में कैद किए हुए है।
इसी तरह कृषि मंत्रालय एवं किसान कल्याण सहकारिता विभाग से 20 फरवरी 2016 को लेखक ने मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए ड्राफ्ट रूल (एमएससीएस एक्ट) के नोट की प्रति की मांग एवं पंजीकृत किए गए इफको के उपनियम 6-7 संशोधित बायलॉज के पत्रावली के अध्ययन के लिए सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत मांग की थी। जिसका जबाव संयुक्त सचिव सहकारिता डॉ. एस. एच अब्बास ने 21 मार्च 2018 को इस तरह दिया, मांगी गई सूचना एवं पत्राबली का निरीक्षण करना सूचना के अधिकार अधिनियम की परिभाषा में नहीं आता है, ऐसा कृषि मंत्रालय ने इस वजह से किया है, इफको के बर्बादी की इबारत 80 के दशक से 31 दिसंबर 2002 तक तत्कालीन कृषि सचिव जेएनएल श्रीवास्तव ने लिखी थी।
ऐसे में मंत्रालय कब चाहेगा मखमली जीवन शैली व्यतीत कर रहे पूर्व आईएएस तिहाड जेल में जाकर आम कैदियों की तरह जवानी में किए गए भ्रष्टाचार की सजा बुढापे में भुगते?
लेखक ने रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय, उर्वरक विभाग शास्त्री भवन नई दिल्ली से दिनांक 26 अगस्त 2016 को सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत इफको घोटाले से जुडे मुद्दे पर सूचना मांगी थी जो इस प्रकार है-
प्रश्न 1 : इफको ने भारत सरकार को अंश धन वापस करने से पूर्व अपनी सामान्य सभा में किस दिनांक को स्वीकृति ली थी? सामान्य सभा के निर्णय की प्रति उपलब्ध कराने की कृपा करें।
उत्तर : भारत सरकार का अंश धन वापस करने का निर्णय पहली बार इफको के निदेशक मंडल की 302वीं बैठक दिनांक 27 फरवरी 2003 में लिया गया निर्णय की प्रति विभाग में उपलब्ध नहीं है।
प्रश्न 2 : सहकारी क्षेत्र की सरकारी स्वामित्व वाली भारत सरकार की कंपनी इफको से सरकार का अंश धन वापस लेने का निर्णय किस मंत्री, मंत्री समूह, प्रधान मंत्री द्वारा लिया गया था? निर्णय की प्रति उपलब्ध कराई जाए।
उत्तर : इफको से भारत सरकार का अंश धन वापस लेने का पहली बार निर्णय तत्कालीन रसायन एवं उर्वरक मंत्री सुखदेव सिंह के स्तर पर 6 मार्च • 2003 को लिया गया था, इसके बाद समय-समय पर इफको द्वारा वापस किए गए अंश धन को स्वीकार कर लिया गया। अंश धन वापसी के संबन्ध में निर्णय के लिए फाइल में समय समय पर की गई टिप्पणी के 60 पृष्ठ संलग्न है।
प्रश्न 3 : भारत सरकार का अंश धन इफको ने नकद या चेक द्वारा दिया है? यदि हां तो उसका नंबर, दिनांक और राशि क्या है?
उत्तर : इफको ने भुगतान बैंक द्वारा जारी चेकों द्वारा किया है जिसका विवरण संलग्न है।
प्रश्न 4 :भारत सरकार द्वारा किस आदेश से प्रति अंश धन पर कितना प्रीमियम अंश धन वापस करने के निर्णय की प्रति देने का कष्ट करें।
उत्तर : मल्टी स्टेट कोआपरेटिव सोसाइटी अधिनियम 2002 उपरान्त इफको ने अपने उपनियम 6-7 को गैर कानूनी अवैध एवं बल पूर्वक परिवर्तन कर निदेशक मंडल की 302वीं बैठक में 27 फरवरी 2003 को भारत सरकार का शेयर 14.86 करोड को वापस करने का निर्णय लिया था। सरकार के अंश धन पर मनमानी करते हुए प्रीमियम भी नहीं दिया है।
प्रश्न 5 : भारत सरकार इफको की संस्थापक सदस्य है जिसकी हिस्सेदारी 51 फीसदी थी, इफको ने हिस्सेदारी के हिसाब से कुल धन वापस किया है। या फिर निवेश किया गया धन ही लौटाया है?
उत्तर : इफको के स्थापना के समय दिनांक 3 नवंबर 1967 भारत सरकार/उर्वरक मंत्रालय का कोई अंश धन इफको में नहीं था। कालांतर में भारत सरकार का 289.61 करोड अंश धन हो गया था।
प्रश्न 6 : भारत सरकार को हिस्सेदारी वापसी का निर्णय किन कारणों से करना पड़ा?क्या इफको घाटे में जा रही थी?
उत्तर : मल्टी स्टेट कोआपरेटिव सोसाइटी अधिनियम 2002 के संसद में स्वीकृत हो जाने के बाद इफको बायलॉज के उपनियम 6-7 को गैर कानूनी, अवैध व बल पूर्वक इफको बोर्ड द्वारा परिवर्तन करने पर बोर्ड को भंग करने के बजाए कृषि सचिव ने बायलॉज पंजीकृत कर दिया। उक्त की प्रति इफको एवं कृषि मंत्रालय मांग करने के बाद भी उपलब्ध नहीं करा रहा है। यह जानकारी कुलबंत राणा अवर सचिव रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने उपलब्ध कराई है, विषय की गंभीरता को देखते प्रश्न एवं उसके जबाव को देश के समक्ष रखने के उद्देश्य से पुस्तक में स्थान दिया गया है। यह ऐसा सच है जिसे देश के सामने रखने से सत्ता के हुए मांगी गई सूचना के गलियारों में सुबह शाम भ्रष्टाचार के मुद्दे और किसानों की समृद्धि पर चीखने वाले नेता हमेशा चुनावी मुद्दा बनाने के बजाए बचते रहे हैं। इसके पीछे राजनीतिक दलों की चुप्पी का कारण चुनावी चंदा बताया जाता है?
प्रश्न 7 : भारत सरकार को अंशधन वापसी का निर्णय किन कारणों से करना पड़ा?
उत्तर : भारत सरकार ने शेयर वापसी का निर्णय नहीं लिया है।
बरेली के पत्रकार रविंद्र सिंह द्वारा लिखी किताब इफको किसकी का 20वां पार्ट..
जारी है…
पिछला पार्ट.. इफको की कहानी (19) : कब लौटेगा इफको का गौरव, हस्तक्षेप कर पाएगी मोदी सरकार?