रविंद्र सिंह-
भ्रष्ट आईएएस ने बनाया, भ्रष्टाचार का पीआरओ
इफको का नाम जेहन में आते ही देश के सबसे बड़े कॉरपोरेट घोटाले की यादें तरो-ताजा हो जाती हैं। इस संस्था में नौकरी योग्य, कर्मठ और ईमानदार को नहीं दी जाती है। बल्कि नौकरी लेने के लिए भी भ्रष्टाचार करना पडता है, ऐसे कई उदाहरण हैं। यह बात दीगर है बोर्ड निदेशक से रिश्तेदारी निकल आए तो नौकरी की राह काफी आसान हो जाती है।
अब बात करते हैं उस चेहरे की जो विज्ञापन एवं जन संपर्क में 1 वर्षीय स्नातकोत्तर डिप्लोमा करने के बाद निजी विज्ञापन एजेंसी में बतौर ग्राहक सेवा अधिशासी के रूप में मई 2005 से अगस्त 2005 (मात्र 3 माह) के अनुभव के आधार पर सरकार के नियंत्रण वाली भारत की सबसे बडी सहकारी उर्वरक इफको में बिना विज्ञापन प्रकाशन के प्रबंधक जन संपर्क के पद पर नौकरी पा लेता है।
यह देखने में बहुत ही शातिर दिमाग और चंचल लगता है, यह रणनीति के तहत कुछ ही दिनों में संस्था के बड़े-बड़े पीआर रणनीतिकारो को मात देकर उनकी कुर्सी हथिया लेता है।
अब चर्चा करते हैं यह चेहरा है कौन? हर्षेन्द्र बर्धन सिंह की मां तंत्र-मंत्र विद्या की आचार्या हैं और हिमाचल प्रदेश में प्रचलित साबर क्रिया मंत्र में माहिर हैं इसलिए उनके संपर्क में आईएएस कृषि सचिव जेएनएल श्रीवास्तव थे। यह साहब कृषि सचिव के पद पर रहते हुए भारत की परंपरागत कृषि को तबाह कर माल खाने और कमाने में ज्यादा दिमाग लगाते थे। यही वजह थी अपने कुकर्मों को दबाने के लिए समय-समय पर इन्हे तंत्र विद्या का सहारा लेना पड़ता था। यह बात साफ नहीं हो सकी कि यह खुद आचार्या के दरबार में जाते थे या वह स्वयं साहब के कार्यालय में आती थीं। परन्तु साहब तंत्र विद्या से ही कृषि सचिव जैसे संवेदनशील पद पर रहते हुए भारत सरकार को उसकी इफको से मक्खी की तरह निकाल फेंकने के आरोप में आसानी से पाक-साफ सेवा निवृत्त हो गए।
कुछ ही दिनों बाद सोची समझी साजिश के तहत जेएनएल श्रीवास्तव इफको फाउंडेशन में प्रबंध ट्रस्टी के पद पर विराजमान हो गए। हर्षेन्द्र की मां डॉ अवस्थी एवं श्रीवास्तव की जुगलबंदी कथा से पूरी तरह वाकिफ थीं। अब उन्हे पुत्र की नौकरी की चिंता सताने लगी तो साहब ने अपने प्रभाव से भारतीय जन संचार संस्थान से 1 वर्षीय डिप्लोमा करा दिया इसके बाद महज 3 महीने के अनुभव को आधार बनाकर संस्था में प्रबंधक जन संपर्क के पद पर अगस्त 2005 में नियुक्त करा दिया।
अब तक इफको भारत सरकार के नियंत्रण से पूरी तरह मुक्त होने के कगार पर थी। साहब और हर्ष की मां के अच्छे रिश्ते थे इसी आधार पर उसे गैर कानूनी तरीके से नौकरी दी गई।
इधर इफको को अवस्थी की जागीर बनाने में मुख्य भूमिका साहब की थी। यह बात हर्षेन्द्र की मां, अवस्थी और साहब ही जानते थे। इफको के प्रशासनिक विभाग को छोड़ अधिकारी, कर्मचारी भी पूरी तरह से अनभिज्ञ थे। प्रशिक्षण एवं प्रोबेशन सेवा काल में ही हर्षेन्द्र ने अपनी पहुंच का एहसास कराते हुए कॉरपोरेट में तेवर दिखाना शुरू कर दिया था। इफको पीआर विभाग में कार्यरत कई वरिष्ठ अधिकारी ने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि प्रशिक्षण के दौरान कोई भी अधिकारी नहीं कर्मचारी की तरह अनुशासन में रहकर पीआर बारीकियां सीखता है। हर्षेन्द्र ने तो सीखने के बजाए प्रशिक्षण के दौरान ही ओवर टेक करना शुरू कर दिया था।
जब अधिकारी पी.आर पॉलिसी के अध्ययन की बात करते थे तो वह बीच में साहब और डॉ अवस्थी को ले आते थे। अब अधिकारी भी समझने लगे मंदिर में रहना है तो बाबा जी का घंटा सहना है। इसी तर्ज पर हर्ष का प्रशिक्षण पूरा हुआ। प्रशिक्षण के तुरंत बाद उसे मां और साहब की सिफारिश से पीआर प्रमुख के पद से नवाज दिया गया। देखते ही देखते इफको के लॉबिंग के कार्य भी हर्षेन्द्र को सौंप दिए गए। समय-समय पर कृषि, उर्वरक और वित्त मंत्रालय में आना-जाना होने लगा। अवस्थी और साहब के कारनामों को मैनेज करने के लिए पैसा लेने देने का कार्य की भी जिम्मेदारी दे दी गई।
यह वह समय था जब इफको में आजादी के बाद सबसे बडा घोटाले को अंजाम देने के बाद पाइप में बंद रखने के चौतरफा इंतजाम चल रहे थे। धीरे-धीरे पीएमओ और राष्ट्रपति भवन एवं विदेश में भी भ्रमण पर जाने वाले नेता, पत्रकार और नौकरशाह के रहन-सहन व मेहमान नवाजी की जिम्मेदारी का बोझ भी दे दिया गया।
ऐसा इसलिए किया जा रहा था दोनों का हर्षेन्द्र से ज्यादा वफादार एवं विश्वसनीय इफको में और कोई चेहरा नहीं था जो हर तरह के गलत और सही कार्यों को पूरी मुस्तैदी से अंजाम दे सके। पीआर प्रमुख होने के नाते किसी भी सवाल का जबाव देने की जिम्मेदारी हर्षेन्द्र की थी। इसी बजह से अपने शोध से प्रश्न पत्र तैयार कर 20 जनवरी 2016 को ई-मेल किया जो इस प्रकार है-
1- रिट पिटीशन (सिविल) सं. 2070/2013 भारत के संविधान अनुच्छेद 226 के तहत इफको बनाम यूनियन ऑफ इंडिया दिल्ली उच्च न्यायलय मे योजित की गयी है जिसका उद्देश्य सी.वी.सी और प्रवर्तन निदेशालय की जांच से बचना है?
2- 97वें संविधान संशोधन के अस्तित्व में आने से इफको संवैधानिक संस्था बन गई है या नहीं?
3- 97वें संविधान संशोधन की समीक्षा मा.सुप्रीम कोर्ट द्वारा की जा चुकी है। और भारत के राजपत्र में प्रकाशन हो चुका है या नहीं?
4- क्या डॉ उदय शंकर अवस्थी ने भारत के अलावा अमेरिका की दोहरी नागरिकता ले रखी है?
5– डॉ उदय शंकर अवस्थी को सेवा विस्तार 1 अगस्त 2015 से 31 जुलाई 2020 तक दिया गया है क्या ये बोर्ड संवैधानिक है और 97वें संविधान संशोधन के नियम को पूरा करता है?
6– उच्च न्यायलय में पैरवी रोकने के लिए कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह के लोक सभा मोतिहारी में गरीब किसानों के 100 करोड धन से आदर्श गांव विकसित किये जा रहे हैं?
7- नबंवर 2015 में उर्वरक मंत्री अनंत कुमार डॉ उदय शंकर अवस्थी के साथ हेलीकॉप्टर से आंवला आने वाले थे जिसमें मोटी डील होना थी, क्या प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप से यह यात्रा टाली गई?
हर्षेन्द्र जी मेरे सवाल का उत्तर ई-मेल से जल्द भेजने की कृपा करें क्योंकि आप ही डॉ उदय शंकर अवस्थी का पक्ष मीडिया को बताते आये हैं जैसे कि आप से मोबाइल पर बात हुई है?
भवदीय
रविद्र सिंह विशेष संवाददाता
आर आई न्यज़ मैगजीन
उक्त सवाला के ई-मेल का जबाव देने के बजाए हर्षेन्द्र ने इधर-उधर से दबाव बनाना शुरू कर दिया। जब उन्हे जबाव के लिए पुनः स्मरण कराया गया तो वह पीआर प्रमुख की मर्यादा भूलकर गलत भाषा का इस्तेमाल करने लगे। बात इतनी बढ गई कि उन्होने पुनः सवाल पूछने पर कह दिया जबाव नहीं देता, मेरी मर्जी अगर दोबारा सवालों का सेट ई-मेल किया तो साइबर अपराध अधिनियम के तहत मुकदमा पंजीकृत करा दूंगा।
यह बयान आजाद भारत के मीडिया रिसर्चर के सवालों पर इफको के पीआर प्रमुख का था। सन् जून 2013 में डॉ अवस्थी की इफको सयंत्र आंवला के कॉन्फेस हॉल में प्रेस वार्ता थी मुझे भी आमंत्रण अनुरोध आया था।
प्रेस वार्ता में मैंने सवाल किया, डॉ अवस्थी संसद में बार-बार कोठी प्रकरण क्यों उठ रहा है?
इस पर अवस्थी ने जबाव देने के लिए हर्षेन्द्र को आगे कर दिया, हर्षेन्द्र ने जबाव देते हुए इस तरह कहा, अवस्थी जी ने इफको को अपने जीवन का लंबा समय दिया है अगर संस्था की 200 करोड की कोठी अपने नाम कर ली तो क्या बुराई है।
इस पर मेरा पुनः सवाल था, जीवन देने के बदले सुख सुविधा और मोटा वेतन लेकर जीवन बदला भी है। यही 200 करोड गरीब किसानों की बेटियों के हाथ पीले करने पर खर्च किए जाते तो बाकई किसानों के चौतरफा हित में काम होता।
इतना सुनते ही अवस्थी को मौजूद प्रबंधन घेर लिया और प्रेस वार्ता निरस्त कर आनन-फानन में हैलीकॉप्टर से दिल्ली रवाना हो गए।
यहीं से हर्षेन्द्र ने अघोषित तरीके से इफको के कार्यक्रमों में प्रवेश पर पाबंदी लगा दी और इसके पीछे उसका उद्देय था इफको घोटाला पूरी तरह से पाइप लाइन में ही बंद रहे। भ्रष्टाचार का पीआरओ देश के ख्याति प्राप्त प्रेस क्लब ऑफ इंडिया (पीसीआई) में समय-समय पर कार्यक्रम कराकर देश को यह दिखाने का प्रयास करता है कि उसकी पहुंच और रिश्ते का स्तर क्या है। इसी तरह कई पत्रकारों के साथ फोटो खिंचाकर और नौकरशाही में अपना रुतबा बढाने का काम करता है। अगर यही काम गरीब किसानों के उद्धार के लिए किया जाता तो उनके अच्छे दिन शुरू हो गए होते.
सन् 2017 में केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने अपनी नजर टेढी की तो झट से सुझाव प्रस्ताव रख दिया कि उनके संसदीय क्षेत्र मोतिहारी में 100 करोड के धन से आदर्श गांव विकसित किए जाएंगे। विकास होना चाहिए यह जरूरी भी है लेकिन भ्रष्टाचार का खुलासा न हो इसलिए गरीब किसानों के 100 करोड का अंश धन से कृषि मंत्री के क्षेत्र में खर्चा करना समझ से परे है। अब देश के 5.5 करोड किसानों को भूलकर मंत्री ने अपनी कुर्सी सुरक्षित करने के लिए वोट बैंक को बढावा देते हुए देश का सबसे बडा घोटाला पाइप लाइन में ही रहने दिया।
हर्षेन्द्र ने कृषि मंत्री के साथ फोटो भी खिंचाई और बाद में उसे सोशल मीडिया पर शेयर कर यह दिखाने का प्रयास किया, मंत्री कुछ कर पाते उससे पहले उन्हे भी विकास का झांसा देकर अपने जाल में फंसा लिया। पीआरओ के प्रोफाइल के अंतिम पैरा में लिखा है मैनेजमैंट ऑफ बेरियस एजेंसीज, इसका मतलब साफ है अवस्थी, जेएनएल श्रीवास्तव द्वारा गरीब किसानों के खून पसीने की कमाई का अंश धन जिस तरह से लूटा है अब इस पाप को देश को पता न चले इसलिए जांच एजेंसी और सत्ता के गलियारों को धन के बल पर साधने का काम भी हर्षेन्द्र के कंधों पर है। की-स्ट्रैंथ में सबसे पहले पॉजिटिव एटिट्यूड लिखा है, शायद वह इसका अर्थ नहीं जानते वरना किसानों के मुद्दों पर पूछे जाने वाले सवालों का जबाव सकारात्मक ढंग से देते।
इसी पैरा के अंत में टीम प्लेयर एंड टीम मैनेजर भी अंकित है। पी.आर टीम के साथ उनके अधिकारों के साथ ऐसी खिलवाड की है जिसकी व्याख्या करना उचित नहीं होगा। इसी तरह बढा-चढा कर प्रोफाइल प्रस्तुत कर काबलियत दिखाने का प्रयास किया गया है। पीआर विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं हर्षेन्द्र का व्यवहार इसलिए सही नहीं है वह संस्था में महा भ्रष्ट जेएनएल श्रीवास्तव एवं देश के गद्दार अवस्थी से अपनी साबर क्रिया तंत्र-मंत्र की आचार्या की बदौलत संस्था में फुल पैंट भी नहीं बल्कि घुटन्ना पहनकर आया था। जब यह किसानों की संस्था अवस्थी के जेब की जागीर बन गई तो इसकी नजदीकिया इसे भ्रष्टाचार में डुबोती चली गई।
हर्षेन्द्र ने वेतन के अलावा अरबों की अघोषित और बेनामी संपत्ति बनाई है जो जांच का विषय है। इफको में कॉरपोरेट लॉबिंग का कार्य जितेंद्र तिवारी भी देखते हैं। वर्तमान में साकेत स्थित मुख्यालय में कॉरपोरेट रिलेशन के पद पर तैनात हैं। ऑफिसर्स यूनियन के नेता होने पर संस्था में रुतबा कायम कर लिया है। इसके बाद भाई का चेहरा आगे कर यूरिया पैकिंग बैग की सप्लाई करते हैं।
फूलपुर सयंत्र के अलावा आंवला, कांडला, कलोल व पाराद्वीप तक पैर पसार रखे हैं। तिवारी के चाचा डीपी त्रिपाठी एन.सी.पी कोटे से राज्य सभा सांसद रहे हैं। चाचा के बल पर अवस्थी ने मंत्रालय, पी.एमओ एवं जांच एजेंसी की लॉबिंग का कार्य देकर मालामाल कर दिया है। जितेंद्र तिवारी ने अपने तल्ख तेवर के चलते इफको से कई ईमानदार अधिकारी को नौकरी से बाहर का रास्ता दिखवा दिया है। अवस्थी अपनी प्राकृतिक आंख, नाक और कान का इस्तेमाल करने के बजाए उक्त दोनों अधिकारी को अपना दायां और बायां हाथ मानते हैं इसलिए कई असंवैधानिक कार्यों को अंजाम दे चुके हैं।
हर्षेन्द्र और तिवारी जंगल में जंगली हाथी की तरह जिसे अपने हिसाब से फिट नहीं समझते हैं उसे पैरों तले कुचलकर तबाह कर देते हैं। इफको में ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं। इस तरह भ्रष्टाचार के जरिए नौकरी में आए पीआरओ गर्दन तक भ्रष्टाचा में डूब चुके हैं उन्हे पीआर की परिभाषा भी याद नहीं है इसलिए पी.आर क कार्य कम, दलाली का कार्य अधिक कर रहे हैं।
बरेली के पत्रकार रविंद्र सिंह द्वारा लिखी किताब इफको किसकी का 23वां पार्ट..
जारी है..
पिछला भाग.. इफको की कहानी (22) : मोदी सरकार भी अवस्थी के सामने घुटने टेक चुकी है!